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भारत में न्यायिक स्थानांतरण

संदर्भ:

भारत में न्यायिक स्थानांतरण: दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के स्थानांतरण ने न्यायपालिका में स्थानांतरण की प्रक्रिया और उसकी भूमिका पर चिंताओं और बहस को जन्म दिया है।

न्यायिक स्थानांतरण (Judicial Transfers):

परिभाषा: स्थानांतरण में एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करना शामिल होता है, जो सार्वजनिक प्रशासन या न्यायिक कार्यप्रणाली के हित में होता है।

संवैधानिक प्रावधान (Constitutional Provisions):

  • धारा 222(1) के तहत, राष्ट्रपति को भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) से परामर्श करके एक न्यायाधीश को एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने का अधिकार प्राप्त है।

भारत में उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के स्थानांतरण की प्रक्रिया कुछ महत्वपूर्ण सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों द्वारा विकसित हुई है, जिन्हें “न्यायाधीशों के मामले” के नाम से जाना जाता है।

  1. पहला न्यायाधीश मामला (S.P. Gupta बनाम भारत के राष्ट्रपति, 1981):
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि CJI से परामर्श का मतलब केवल विचारों का आदान-प्रदान है, इससे सहमति की आवश्यकता नहीं है।
    • CJI की राय राष्ट्रपति पर न्यायिक नियुक्तियों और स्थानांतरण के मामले में बाध्यकारी नहीं थी।
    • यह निर्णय कार्यपालिका की प्राथमिकता को न्यायिक नियुक्तियों और स्थानांतरण में मान्यता देता है।
  2. दूसरा न्यायाधीश मामला (Supreme Court Advocates-on-Record Association बनाम भारत संघ, 1993):
    • सर्वोच्च न्यायालय ने पहले न्यायाधीश मामले को पलटते हुए “कोलेजियम सिस्टम” की अवधारणा को संस्थागत रूप से लागू किया।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि परामर्श का मतलब सहमति होता है, और यदि राष्ट्रपति और CJI के बीच असहमतिता हो, तो CJI की राय को प्राथमिकता दी जाएगी।
    • CJI को संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों और अन्य वरिष्ठ न्यायधीशों से परामर्श करना अनिवार्य किया गया।
    • न्यायिक स्थानांतरणों को सार्वजनिक हित में होना चाहिए और न्याय के प्रशासन में सुधार लाना चाहिए।
  3. तीसरा न्यायाधीश मामला (1998):
    • इस मामले में कोलेजियम प्रणाली को और भी परिष्कृत किया गया, जिसमें CJI को चार सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों के साथ परामर्श करने की आवश्यकता बताई गई।
    • स्थानांतरण की सिफारिशें CJI को करनी होती हैं, जिनमें उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों से भी परामर्श लिया जाता है, जिनसे न्यायाधीश स्थानांतरित हो रहा है।
    • कोलेजियम की सिफारिश के बाद, विधि मंत्री इसकी समीक्षा करते हैं और प्रधानमंत्री को सलाह देते हैं। प्रधानमंत्री के माध्यम से यह सिफारिश राष्ट्रपति को भेजी जाती है।
    • राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी मिलने पर, स्थानांतरण को आधिकारिक रूप से लागू किया जाता है और न्यायाधीश को नए उच्च न्यायालय में पदभार ग्रहण करना होता है।

न्यायिक स्थानांतरण की प्रक्रिया:

  1. आरंभ (Initiation): CJI न्यायिक और प्रशासनिक आधार पर स्थानांतरण का मूल्यांकन कर प्रस्ताव रखते हैं।
  2. परामर्श (Consultation): संबंधित उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों से अनिवार्य परामर्श किया जाता है।
  3. सिफारिश: कोलेजियम अंतिम निर्णय लेकर इसे विधि मंत्रालय को भेजता है।
  4. मंजूरी (Approval): प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को सलाह देते हैं, जिसके बाद राष्ट्रपति स्थानांतरण को मंजूरी देते हैं।
  5. अधिसूचना (Notification): न्याय विभाग इसे राजपत्र (Gazette of India) में प्रकाशित करता है।

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