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कोल्हान की मानकी-मुंडा व्यवस्था (Kolhan Manki-Munda System) | UPSC Preparation

Kolhan Manki-Munda System

Kolhan Manki-Munda System

संदर्भ:

झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले में हो जनजाति के आदिवासियों ने पारंपरिक आत्म-शासन प्रणाली ‘मानकी-मुंडा’ में हस्तक्षेप के आरोप लगाते हुए उपायुक्त (DC) के खिलाफ जोरदार विरोध प्रदर्शन किया।

मांकीमुंडा व्यवस्था:

पारंपरिक शासन व्यवस्था:

  • मांकी-मुंडा प्रणाली झारखंड के कोल्हान क्षेत्र में हो जनजाति की पारंपरिक स्वशासन प्रणाली है।
  • यह एक विकेन्द्रीकृत ढांचा है, जो सदियों से अस्तित्व में है और आज भी राज्य की औपचारिक प्रशासनिक प्रणाली के साथ समानांतर रूप से कार्य करता है।

संरचना:

  • मुंडा (ग्राम प्रधान): वंशानुगत ग्राम प्रमुख, जो गाँव के सामाजिक और राजनीतिक विवादों का निपटारा करते हैं।
  • मांकी (मुखिया): 8–15 गाँवों के समूह (पीर) का नेतृत्व करता है और वे मामले देखता है जिन्हें मुंडा सुलझा नहीं पाते।
  • प्रारंभ में मांकी और मुंडा का भूमि या राजस्व संबंधी कार्यों से कोई सरोकार नहीं था।

ब्रिटिश हस्तक्षेप:

  • स्थायी बंदोबस्त अधिनियम (1793): जमींदारों ने हो जनजाति की भूमि हड़पनी शुरू की, जिससे हो विद्रोह (1821–22) और कोल विद्रोह (1831–32) जैसे आंदोलन हुए।
  • विल्किंसन नियम (1833):
    • ब्रिटिश अधिकारी कैप्टन थॉमस विल्किंसन ने मांकी-मुंडा व्यवस्था को 31 नियमों में संहिताबद्ध किया।
    • मांकी और मुंडा को सामुदायिक नेता तो माना गया, पर उन्हें औपनिवेशिक प्रशासन का एजेंट बना दिया गया।
    • इसके जरिए कोल्हान क्षेत्र ब्रिटिश भारत में शामिल हुआ, निजी संपत्ति, पट्टे और गैर-आदिवासी (दिक्कुओं) का प्रवेश शुरू हुआ।
    • हो लोगों को रैयत (किरायेदार) घोषित किया गया।

स्वतंत्रता के बाद:

  • 1947 के बाद कोल्हान गवर्नमेंट एस्टेट समाप्त कर दिया गया, लेकिन विल्किंसन नियम को भारतीय न्यायालयों ने रिवाज (Custom) के रूप में मान्यता दी।
  • 2021 में झारखंड सरकार ने पारंपरिक न्याय प्रणाली न्याय पंचायत को मान्यता दी, जिसे राजस्व कार्य, कर संग्रह, भूमि लेन-देन, कानून-व्यवस्था और विवाद निपटान जैसे कार्य भी सौंपे गए।

मांकीमुंडा प्रणाली की समस्याएँ

  1. वंशानुगत उत्तराधिकार:
    • मांकी और मुंडा के पद प्रायः पिता से पुत्र को मिलते हैं।
    • इससे योग्य व्यक्तियों को नेतृत्व के अवसर नहीं मिल पाते।
  2. औपचारिक शिक्षा का अभाव: कई पारंपरिक नेता निरक्षर हैं और उन्हें भूमि अभिलेख, दस्तावेज़ प्रबंधन तथा आधुनिक प्रशासनिक कार्यों का प्रशिक्षण नहीं है।
  3. अनुपस्थित नेतृत्व: कई बार मुंडा लंबे समय तक गाँव से बाहर रहते हैं, जिससे ग्रामीणों को बुनियादी सेवाओं तक पहुँच नहीं मिल पाती।
  4. गैरआदिवासी समुदायों के साथ तनाव: अनुसूचित जाति (SC) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) जैसे गैर-आदिवासी समूहों ने भेदभाव और आजीविका पर प्रतिबंध की शिकायत की है।
  5. रिक्त पद: पश्चिम सिंहभूम में लगभग 1,850 स्वीकृत पदों में से करीब 200 पद खाली हैं, जिससे जमीनी स्तर पर शासन प्रभावित होता है।
  6. नियमों की सीमित समझ: अधिकांश नेता विल्किंसन नियम (1833) या 1837 के हुक़ूकनामा को पूरी तरह नहीं समझते, जिससे विवाद निपटान जटिल हो जाता है।
  7. राज्य अधिकारियों पर निर्भरता: कई बार ग्रामीण सीधे उपायुक्त (Deputy Commissioner) से संपर्क करते हैं, जिससे मांकी-मुंडा प्रणाली की प्रभावशीलता और अधिकारिता कम हो जाती है।
  8. सुधार की मांग: हो समुदाय का एक वर्ग, विशेषकर युवा पीढ़ी, मांकी-मुंडा प्रणाली में सुधार चाहता है।

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