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लद्दाख की राज्यत्व और छठी अनुसूची की मांग (Ladakh demand for statehood and the Sixth Schedule) UPSC

Ladakh demand for statehood and the Sixth Schedule

Ladakh demand for statehood and the Sixth Schedule

संदर्भ:

लद्दाख में पिछले कुछ वर्षों से राज्यत्व और संवैधानिक संरक्षण की मांग लगातार तेज हो गई है। इसी संदर्भ में Leh Apex Body (LAB) और Kargil Democratic Alliance (KDA) ने मिलकर एक 29-पृष्ठीय संशोधित प्रस्ताव गृह मंत्रालय को सौंपा है, जिसमें लद्दाख को राज्य का दर्जा और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग दोहराई गई है।

लद्दाख की वर्तमान प्रशासनिक स्थिति:

2019 में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के तहत लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश (UT) बनाया गया। हालांकि, इसे विधानसभा रहित UT बनाया गया, जिसके कारण राजनीतिक निर्णयों में नागरिकों की भागीदारी सीमित हो गई। प्रशासनिक मुद्दों में तेज निर्णय लेने की क्षमता मिली, परंतु स्थानीय निकायों, स्वशासन और पारंपरिक संस्थाओं की भूमिका कमजोर मानी गई। बहु-जातीय और सांस्कृतिक रूप से विविध लद्दाख में भूमि, नौकरियों और खनिज संसाधनों पर बाहरी प्रभाव बढ़ रहा है।

राज्यत्व क्या है? (What is Statehood?)

    • परिभाषा: राज्यत्व वह संवैधानिक स्थिति है, जिसके तहत किसी क्षेत्र को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलता है। इसके साथ विधानसभा, मुख्यमंत्री, मंत्रिमंडल, अपना बजट और व्यापक विधायी शक्तियाँ प्रदान की जाती हैं। अर्थात, राज्य बनने के बाद वह क्षेत्र अपने अधिकांश प्रशासनिक एवं विकासात्मक निर्णय स्वयं ले सकता है। इसके तहत भूमि, नौकरियाँ, जिला-प्रशासन, संसाधन और सामाजिक कल्याण योजनाओं पर नियंत्रण बढ़ जाता है।
  • मांग के आधार: लद्दाख के प्रतिनिधि समूहों का तर्क है कि राज्य का दर्जा मिलने से लोकतांत्रिक संस्थाएं मजबूत होंगी और स्थानीय जनता शासन प्रणाली में प्रत्यक्ष भूमिका निभा सकेगी। विधानसभा होने से नीति निर्माण, बजट आवंटन और विकास योजनाओं में स्थानीय प्राथमिकताओं को शामिल करना संभव होगा। 

छठी अनुसूची क्या है?

    • परिचय: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 244(2) और अनुच्छेद 275(1) के तहत, छठी अनुसूची पूर्वोत्तर भारत के जनजातीय बहुल क्षेत्रों के लिए बनाई गई है। यह अनुसूची विशेष स्वायत्तता (Autonomous Governance) और सांस्कृतिक–भूमि संरक्षण प्रदान करती है।
  • वर्तमान स्थिति: यह चार राज्यों में लागू है— असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा। इन राज्यों में 10 से अधिक स्वायत्त जिला परिषदें कार्य करती हैं।
  • विशेषताएँ
    • स्वायत्त जिला परिषदें (Autonomous District Councils): इन परिषदों को कानून बनाने की शक्तियाँ होती हैं, जैसे— भूमि, वन, संसाधन, स्थानीय रीति-रिवाज, रोजगार, जनजातीय परंपराएँ।
    • कराधान के अधिकार (Taxation Powers): परिषदें स्थानीय कर, टोल, बाजार शुल्क आदि वसूल सकती हैं।
    • भूमि संरक्षण (Land Protection): गैर-जनजातीय लोगों को भूमि खरीदने पर प्रतिबंध हो सकता है, जिससे बाहरी हस्तक्षेप कम होता है।
    • पारंपरिक संस्थाओं का संरक्षण: जनजातीय रीति–रिवाजों पर आधारित न्याय व्यवस्था भी मान्य होती है।
    • वित्तीय अनुदान (Financial Grants): केंद्र सरकार से विकास के लिए विशेष अनुदान मिलता है।

छठी अनुसूची की मांग का महत्व:

छठी अनुसूची भारत के आदिवासी बहुल क्षेत्रों को विशेष स्वायत्तता और संरक्षण प्रदान करती है। लद्दाख के नेता मानते हैं कि:

  • यह क्षेत्र की जनजातीय संरचना को पहचान और सुरक्षा देगा।
  • भूमि एवं आजीविका के संसाधनों पर बाहरी हस्तक्षेप कम होगा।
  • पारंपरिक संस्कृति और हिमालयी पर्यावरण को विशेष संरक्षण मिलेगा।

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