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लद्दाख विरोध प्रदर्शन (Ladakh Protests) | UPSC Preparation

Ladakh Protests

Ladakh Protests

संदर्भ:

लेह, लद्दाख में राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग को लेकर हुए हिंसक प्रदर्शनों में अब तक 4 लोगों की मौत और 80 से अधिक लोग घायल हुए हैं। इसी बीच, बढ़ते तनाव और अशांति के बीच सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने अपना 15 दिन का अनशन समाप्त कर दिया।

मुद्दे की पृष्ठभूमि (Background of the Issue):

  • 2019 पुनर्गठन: अनुच्छेद 370 हटाने के बाद, जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम पारित हुआ। इसके तहत पुराने राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बाँटा गया —
    1. जम्मू और कश्मीर (विधानसभा सहित)
    2. लद्दाख (बिना विधानसभा)
  • प्रारंभिक प्रतिक्रिया: जहाँ जम्मू-कश्मीर में अशांति देखी गई, वहीं लद्दाख ने UT दर्जा मिलने का स्वागत किया। लोगों को उम्मीद थी कि इससे उन्हें जम्मू-कश्मीर से अलग सीधा प्रतिनिधित्व और अधिक स्वायत्तता मिलेगी।

लद्दाख आंदोलन की मुख्य माँगें (Core Demands of the Ladakh Protest):

  1. राज्य का दर्जा (Statehood):
    • लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए।
    • इससे विधायी शक्तियाँ (Legislative Powers) और आत्म-शासन (Self-Governance) बहाल हो सकेगा।
  2. छठी अनुसूची (Sixth Schedule):
    • लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल किया जाए ताकि जनजातीय पहचान और अधिकार सुरक्षित रह सकें।
    • उल्लेखनीय है लद्दाख की 90% से अधिक आबादी अनुसूचित जनजातियों से आती है।
  3. रोजगार: बढ़ती बेरोजगारी से निपटने के लिए एक अलग लोक सेवा आयोग की स्थापना की माँग।
  4. राजनीतिक प्रतिनिधित्व (Representation):
    • वर्तमान में लद्दाख के पास केवल 1 लोकसभा सीट है।
    • माँग: लेह और कारगिल के लिए दो लोकसभा सीटें और केंद्र में अधिक आवाज़ उठाने के लिए एक राज्यसभा सीट।

राज्य का दर्जा देने के पक्ष में तर्क:

  1. लोकतांत्रिक कमी: वर्तमान में लद्दाखियों पर एलजी और नौकरशाह शासन करते हैं, न कि चुने हुए प्रतिनिधि।
    • इससे जनता को स्वशासन और जवाबदेही से वंचित होना पड़ता है।
  2. सांस्कृतिक सुरक्षा: राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची में शामिल होने से जमीन, रोजगार और संस्कृति की सुरक्षा होगी।
    • यह जरूरी है क्योंकि लद्दाख की 90% आबादी जनजातीय (tribal) है।
  1. भूराजनीतिक स्थिरता (Geopolitical Stability)
    • शासन में स्थानीय लोगों की भागीदारी से विश्वास बढ़ेगा।
    • यह महत्वपूर्ण है क्योंकि लद्दाख की सीमाएँ चीन (LAC) और पाकिस्तान (LoC) से लगती हैं।
  2. युवाओं की आकांक्षाएँ (Youth Aspirations)
    • स्थानीय भर्ती संस्थाओं से रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
    • इससे शिक्षित युवाओं का विस्थापन और अलगाव रोका जा सकेगा।
  3. वादों की पूर्ति (Promise Fulfillment)
    • 2019 में किए गए वादे पूरे करने से लोकतांत्रिक विश्वसनीयता मजबूत होगी।
    • इससे केंद्र और लद्दाख के बीच भरोसा बढ़ेगा।

राज्य का दर्जा देने के खिलाफ तर्क:

  1. राष्ट्रीय सुरक्षा: संवेदनशील सीमावर्ती इलाकों की वजह से प्रत्यक्ष केंद्रीय नियंत्रण जरूरी है।
  2. कम आबादी: केवल लगभग 3 लाख की जनसंख्या होने से पूर्ण राज्य का दर्जा व्यावहारिक नहीं लगता।
  3. पहाड़ी परिषद पहले से मौजूद: लेह और कारगिल की हिल काउंसिल्स पहले से ही स्थानीय स्वायत्तता प्रदान करती हैं।
  4. गुटबाजी का खतरा: लेह और कारगिल की अलग-अलग माँगें शासन को अस्थिर कर सकती हैं।
  5. संसाधन निर्भरता: लद्दाख का बजट और विकास केंद्रीय सहायता पर बहुत निर्भर है, जिससे आर्थिक आत्मनिर्भरता मुश्किल है।

सरकार के प्रयास (Government Efforts So Far)

  • उच्चस्तरीय समिति गठित की गई है – LAB और KDA से संवाद के लिए।
  • एसटी आरक्षण 45% से बढ़ाकर 84% किया गया।
  • हिल काउंसिल्स में महिलाओं को एकतिहाई आरक्षण मिला।
  • भोटी और पुरगी भाषाओं को आधिकारिक भाषा का दर्जा मिला।
  • 1,800 पदों पर भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई।

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