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दिल्ली के LG को मिली नई शक्तियां: राष्ट्रपति ने दिया बोर्ड-पैनल बनाने का अधिकार

Mains

●   GS II- भारतीय संविधान संशोधन, संघीय ढांचे से संबंधित मुद्दे और चुनौतियाँ, विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्ति।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दिल्ली के उपराज्यपाल (LG) को नए अधिकार दिए गए हैं, जिससे दिल्ली की राजनीति और प्रशासनिक व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण बदलाव आने की उम्मीद हैं। LG को यह अधिकार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा दिए गए हैं। इसके अंतर्गत LG को बोर्ड या वैधानिक निकाय का गठन करने का अधिकार प्राप्त होगा। इसे गृह मंत्रालय द्वारा जारी एक अधिसूचना के माध्यम से सार्वजनिक किया गया है।

क्या है गृह मंत्रालय की अधिसूचना (राष्ट्रपति का आदेश)?

  • गृह मंत्रालय द्वारा जारी की गई राजपत्र अधिसूचना में कहा गया है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली शासन अधिनियम, 1991 की धारा 45डी और संविधान के अनुच्छेद 239 के खंड (1) के अनुसार राष्ट्रपति ने निर्देश जारी किया है कि दिल्ली के उपराज्यपाल को विशेष शक्तियां प्रदान की जाती हैं।
  • इन शक्तियों के तहत, उपराज्यपाल (जो राष्ट्रपति के नियंत्रण में रहेंगे) अगले आदेश तक किसी भी प्राधिकरण, बोर्ड, आयोग या वैधानिक निकाय का गठन कर सकते हैं या ऐसे निकायों में सरकारी अधिकारियों या पदेन सदस्यों की नियुक्ति कर सकते हैं।
  • इस अधिसूचना का मुख्य उद्देश्य दिल्ली के प्रशासनिक ढांचे में नए प्राधिकरण और बोर्डों का गठन करना और उनके संचालन की शक्ति उपराज्यपाल को सौंपना है, जो राष्ट्रपति की शक्तियों के अधीन होगा।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली शासन अधिनियम, 1991

  • इस अधिनियम को वर्ष 1991 में लागू किया गया था, जिसका उद्देश्य दिल्ली में एक निर्वाचित सरकार की स्थापना करना था।
  • यह अधिनियम संविधान के प्रावधानों के पूरक के रूप में कार्य करता है और दिल्ली में एक लोकतांत्रिक सरकार के गठन की प्रक्रिया को सक्षम बनाता है।
  • इस अधिनियम के तहत, दिल्ली को एक विधानसभा और मंत्रिपरिषद प्राप्त हुई, जो स्थानीय मामलों में निर्णय ले सकती है।
  • धारा 45डी इस अधिनियम की एक महत्वपूर्ण धारा है। यह धारा राष्ट्रपति को प्रशासनिक मामलों में हस्तक्षेप करने की अनुमति देती है।

संविधान का अनुच्छेद 239 

संविधान के अनुच्छेद 239 के अनुसार, केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासन के लिए राष्ट्रपति जिम्मेदार होते हैं। इसमें निम्नलिखित प्रमुख प्रावधान शामिल हैं:

  • केंद्रशासित प्रदेश की व्यवस्था: अनुच्छेद 239 के तहत, राष्ट्रपति केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासन के लिए नियम और निर्देश जारी कर सकते हैं।
  • प्रशासक की नियुक्ति: राष्ट्रपति केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासक (उपराज्यपाल) की नियुक्ति करते हैं और उनके कर्तव्यों और शक्तियों को निर्धारित करते हैं।

69वाँ संशोधन अधिनियम, 1992

इस संशोधन के अंतर्गत, संविधान में दो नए अनुच्छेद जोड़े गए:

  • अनुच्छेद 239AA: दिल्ली को ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली’ का दर्जा प्रदान करता है और उपराज्यपाल को प्रशासक के रूप में नियुक्त करता है। इसमें विधानसभा और मंत्रिपरिषद का भी प्रावधान है। दिल्ली की विधानसभा को कानून प्रवर्तन, लोक व्यवस्था और भूमि से संबंधित मामलों को छोड़कर, राज्य सूची या समवर्ती सूची के किसी भी मामले में कानून बनाने की शक्ति दी गई है। इसका मतलब है कि विधानसभा उन विषयों पर कानून बना सकती है जो संविधान के तहत केंद्रशासित प्रदेशों पर लागू होते हैं, बशर्ते वे कानून प्रवर्तन, लोक व्यवस्था और भूमि के मुद्दों से संबंधित न हों। अगर मंत्रिपरिषद और उपराज्यपाल किसी भी मामले पर असहमत होते हैं, तो अनुच्छेद 239AA उपराज्यपाल को राष्ट्रपति से परामर्श करने का अधिकार प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद 239AB: राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है कि वह अनुच्छेद 239AA या इसके तहत बनाए गए कानूनों को निलंबित कर सकते हैं, जो राष्ट्रपति शासन की स्थिति से मिलता-जुलता है।

इन प्रावधानों के माध्यम से, दिल्ली को विशेष दर्जा और प्रशासनिक संरचना प्रदान की गई है, जिससे दिल्ली की सरकार और उपराज्यपाल के बीच का संबंध और प्रशासनिक अधिकार स्पष्ट होते हैं।

केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली में उपराज्यपाल (LG) को विशेष अधिकार दिए जाने के पीछे कारण:

  • संवैधानिक व्यवस्था और प्रशासनिक नियंत्रण: दिल्ली को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के उपयुक्त वर्णित अनुच्छेद के तहत, उपराज्यपाल को दिल्ली के प्रशासनिक मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अधिकार दिया गया है। इसके तहत, उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार के विभिन्न प्राधिकरण, बोर्ड, आयोग आदि के गठन और उनके कार्यों पर नियंत्रण रखने का अधिकार प्राप्त है।
  • केंद्र सरकार का नियंत्रण: दिल्ली एक विशेष केंद्रशासित प्रदेश है, जिसे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCT) के रूप में मान्यता प्राप्त है। दिल्ली की प्रशासनिक और राजनीतिक जटिलताओं को देखते हुए, केंद्र सरकार को दिल्ली में अधिक नियंत्रण बनाए रखने की आवश्यकता महसूस होती है। उपराज्यपाल केंद्रीय सरकार का प्रतिनिधि होता है और यह सुनिश्चित करता है कि दिल्ली के मामलों में केंद्रीय सरकार की नीतियों और निर्णयों का पालन किया जाए।

उपराज्यपाल

●    उपराज्यपाल (Lieutenant Governor) एक केंद्रशासित प्रदेश के प्रशासन का प्रमुख होता है।

●   वह राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है और केंद्रीय सरकार के निर्देशों के अनुसार प्रदेश का प्रशासन करता है।

●   उपराज्यपाल राज्यपाल की तरह प्रदेश की विधायी व्यवस्था, कानून और आदेश की स्थिति की देखरेख करता है।

●   यदि उपराज्यपाल और मंत्रिपरिषद के बीच किसी मुद्दे पर असहमति होती है, तो उपराज्यपाल राष्ट्रपति से परामर्श ले सकता है।

केंद्रशासित प्रदेश

●   केंद्रशासित प्रदेश (Union Territory) ऐसे क्षेत्र होते हैं जो भारत सरकार के सीधे नियंत्रण में होते हैं और जिनकी प्रशासनिक व्यवस्था राज्यों की तुलना में अलग होती है।

●   केंद्रशासित प्रदेशों को आमतौर पर विशिष्ट परिस्थितियों या प्रशासनिक सुविधा के लिए विशेष दर्जा दिया जाता है।

भारत में केंद्रशासित प्रदेशों का प्रशासन

●   भारत के संविधान का भाग VIII (अनुच्छेद 239 से 241) केंद्रशासित प्रदेशों से संबंधित है।

●   कुछ केंद्रशासित प्रदेश, जैसे दिल्ली और पुद्दुचेरी, में प्रशासक के पास महत्वपूर्ण शक्तियाँ होती हैं, जिनमें कानून और नियम बनाने की शक्ति भी शामिल है।

●   वहीं, लक्षद्वीप और दादरा और नगर हवेली जैसे केंद्रशासित प्रदेशों में प्रशासक की शक्तियाँ केवल चुनी हुई सरकार को सलाह देने तक सीमित होती हैं।

●   केंद्रशासित प्रदेशों में न्यायपालिका का संचालन भी संविधान और संसद द्वारा बनाए गए कानूनों के अनुसार होता है।

●   हालांकि, दिल्ली उच्च न्यायालय जैसे कुछ न्यायालयों को लक्षद्वीप जैसे अन्य केंद्रशासित प्रदेशों की तुलना में व्यापक अधिकार प्राप्त हैं।

●    पुद्दुचेरी (1963), दिल्ली (1992), और जम्मू और कश्मीर (2019) में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में विधानसभा और मंत्रिपरिषद का प्रावधान किया गया है।

●   अगर किसी कारण से दिल्ली की सरकार अनुपस्थित हो या कामकाज न कर पाए, तो उपराज्यपाल को सरकार का कार्यभार संभालने की जिम्मेदारी दी जाती है।

●   उपराज्यपाल दिल्ली की महानगर परिषद का नेतृत्व भी करते हैं।

केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच शक्तियों का विभाजन

विधानसभा की शक्तियाँ: दिल्ली की विधानसभा को संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्य सूची और समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाने की शक्ति दी गई है, जिसमें से कुछ महत्वपूर्ण अपवाद भी हैं। दिल्ली विधानसभा को पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था, और भूमि के मामलों को छोड़कर अन्य सभी मामलों में कानून बनाने की शक्ति प्राप्त है। इन अपवादों को छोड़कर, दिल्ली सरकार अपने क्षेत्राधिकार में आने वाले मामलों पर विधायी और प्रशासनिक कार्य कर सकती है।

केंद्र सरकार की शक्तियाँ: केंद्र सरकार के पास दिल्ली में पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था (लॉ एंड ऑर्डर), और भूमि से संबंधित मामलों का पूर्ण नियंत्रण है। ये विषय राज्य सूची के बावजूद केंद्र सरकार के नियंत्रण में रखे गए हैं। दिल्ली के उपराज्यपाल, जो कि केंद्र सरकार के प्रतिनिधि होते हैं, को यह अधिकार होता है कि वह दिल्ली सरकार के निर्णयों पर सवाल उठा सकते हैं और उन्हें राष्ट्रपति के पास समीक्षा के लिए भेज सकते हैं। केंद्र सरकार, उपराज्यपाल के माध्यम से, दिल्ली सरकार के कार्यों और नीतियों पर निगरानी रखती है और आवश्यकतानुसार हस्तक्षेप कर सकती है।

UPSC: PYQ

प्रश्न.क्या सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय (जुलाई 2018) दिल्ली के उपराज्यपाल और निर्वाचित सरकार के बीच राजनीतिक कशमकश को निपटा सकता है? परीक्षण कीजिये। (2018)

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