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मेलघाट में कुपोषण संकट (Malnutrition crisis in Melghat) | Ankit Avasthi Sir

Malnutrition crisis in Melghat

Malnutrition crisis in Melghat

संदर्भ:

हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र और केंद्र सरकार की मेलघाट में कुपोषण संकट से निपटने के लिए किए गए प्रयासों की कड़ी आलोचना की है। मेलघाट, जो मुख्यतः कोरकू जनजाति का क्षेत्र है, लंबे समय से कुपोषण, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और सामाजिक-आर्थिक वंचना से जूझ रहा है। सरकार द्वारा जारी प्रयासों के बाद भी इस क्षेत्र में कुपोषण से संबंधित शिशु मृत्यु में चिंताजनक वृद्धि देखने को मिली है।

मेलघाट का सामाजिक-भौगोलिक परिप्रेक्ष्य:

मेलघाट, अमरावती जिले का एक दुर्गम, पहाड़ी और घने जंगलों वाला क्षेत्र है, जो लगभग मुंबई से 650 किमी दूर स्थित है। क्षेत्रीय असमानताओं, अपर्याप्त सड़क संपर्क और सामाजिक रूप से हाशिए पर स्थित कोरकू जनजाति की जीवन-स्थितियों ने इसे पोषण-संकट के केंद्र में ला दिया है। इसके अधिकांश गांव कच्ची, टूटी, गैर-मोटरेबल सड़कों से जुड़े हैं, जिसके कारण गर्भवती महिलाओं, शिशुओं और रोगियों तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुँचाना अत्यंत कठिन है। दशकों से चला आ रहा कुपोषण-मृत्यु का चक्र, सामाजिक-आर्थिक अभाव, प्रशासनिक विफलता और मानव विकास के अंतर का यह परिणाम काफी चिंताजनक है।

वर्तमान स्थिति और संरचनात्मक स्वास्थ्य चुनौतियाँ:

  • 10,000 से अधिक बच्चे 2024 तक कुपोषित मिले, जिनमें 1,290 SAM मामले धर्नी में और 788 चिक्घलदरा में पाए गए।
  • प्रस्तुत आंकड़े बताते हैं कि जून से नवंबर 2025 के बीच 65 शिशुओं की मृत्यु कुपोषण के कारण हुई, जबकि 220 से अधिक बच्चे SAM वर्ग में हैं।
  • कई PHCs में 60% से अधिक डॉक्टरों के पद रिक्त हैं।
  • डिलीवरी टॉर्च की रोशनी में और कई बार बिना प्रशिक्षित स्टाफ के हो रही हैं।
  • ब्लड ट्रांसफ्यूजन यूनिट्स, एम्बुलेंस, नवजात उपकरण जैसी मूलभूत सुविधाएं अनुपलब्ध हैं।
  • कई स्वास्थ्यकर्मियों को पांच वर्षों से वेतन नहीं मिला, जिसके कारण सेवाएँ लगभग ठप हो चुकी हैं।
  • इन संरचनात्मक कमियों ने कुपोषण-मृत्यु के चक्र को और अधिक गहरा कर दिया है।

हाई कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियाँ और हस्तक्षेप:

बॉम्बे हाई कोर्ट की खंडपीठ (न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और संदीश पाटिल) ने कहा कि सरकारें “गंभीर समस्या को केवल कागजी कार्यवाही तक सीमित कर रही हैं”, जबकि जमीनी स्थिति गिरता स्वास्थ्य ढांचा, अनुपस्थित डॉक्टर, अपर्याप्त उपकरण, और वर्षों से भुगतान न मिलने वाली स्वास्थ्य सेवाएँ दर्शाती है। कोर्ट ने —

  • अधिकारियों द्वारा पहले के आदेशों की अवहेलना को गंभीर प्रशासनिक लापरवाही बताया गया।
  • स्वास्थ्य सचिव, जनजातीय विकास सचिव, महिला एवं बाल विकास सचिव, वित्त सचिव और PWD सचिव को दो सप्ताह में संयुक्त दौरा करने का आदेश दिया गया।
  • प्रत्येक चार सप्ताह में समीक्षा बैठक अनिवार्य करने का आदेश दिया।

कुपोषण क्या है?
कुपोषण वह स्थिति है जब शरीर को पर्याप्त पोषक तत्व, कैलोरी या आवश्यक विटामिन–खनिज नहीं मिल पाते, जिससे विकास, प्रतिरोधक क्षमता और शारीरिक कार्य प्रभावित होते हैं। इसमें दो पहलू शामिल होते हैं—

  • अल्पपोषण (Undernutrition): जैसे कम वजन, बौनापन (Stunting), दुबलापन (Wasting), माइक्रोन्यूट्रिएंट की कमी।
  • अधिपोषण (Overnutrition): अधिक कैलोरी या असंतुलित भोजन के कारण मोटापा आदि।

कुपोषण विशेष रूप से शिशुओं, बच्चों और गर्भवती महिलाओं में गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा करता है।

कुपोषण के मूल कारण:

मेलघाट में कुपोषण केवल भोजन की कमी से नहीं, बल्कि बहु-स्तरीय समस्याओं से उत्पन्न होता है—

  • गरीबी और खाद्य असुरक्षा—जनजातीय परिवारों में आय के सीमित स्रोत।
  • स्वास्थ्य प्रणाली का अभाव—PHCs/CHCs में कर्मचारी और उपकरणों की कमी।
  • भौगोलिक अलगाव—दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्रों में सेवाओं की पहुंच कठिन।
  • सामाजिक प्रथाएँ और जागरूकता की कमी—अशिक्षा, महिलाओं की स्वास्थ्य सेवाओं तक कम पहुंच।
  • एनीमिया, कम जन्म-भार और संक्रमण—जो SAM को और बढ़ाते हैं।

नीति-आधारित समाधान:

  • स्वास्थ्य अवसंरचना का पुनर्गठन: PHCs/CHCs को मानक-आधारित उपकरण, डॉक्टरों की तैनाती, मोबाइल स्वास्थ्य इकाइयाँ और 24×7 एम्बुलेंस सुविधाओं से लैस किया जाना आवश्यक है।
  • पोषण-आधारित कार्यक्रमों का एकीकरण: POSHAN Abhiyaan, ICDS, JFY (Janani Suraksha Yojana), और जनजातीय समुदायों के लिए विशेष पोषण पैकेजों को प्रभावी ढंग से लागू करना पड़ेगा।
  • सड़क और अवसंरचना सुधार: गैर-मोटरेबल सड़कों को प्राथमिकता पर अपग्रेड कर ‘लास्ट-माइल हेल्थ डिलीवरी’ को मजबूत करना आवश्यक है।
  • स्थानीय समुदाय की भागीदारी: ASHA, Anganwadi Workers, और Tribal Health Volunteers को विशेष प्रशिक्षण और प्रोत्साहन देकर समुदाय-आधारित पोषण निगरानी विकसित की जा सकती है।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही: नियमित ऑडिट, कोर्ट-मॉनिटरिंग और समयबद्ध कार्रवाई रिपोर्ट यह सुनिश्चित कर सकती है कि सुधार केवल कागजी स्तर पर न रह जाएँ।

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