Martyrdom Day of Guru Tegh Bahadur Ji
संदर्भ:
आज 24 नवंबर 2025 को पूरे भारतवर्ष में गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी दिवस को गहरी श्रद्धा के साथ स्मरण किया जा रहा है। यह दिन न केवल सिख इतिहास बल्कि भारतीय इतिहास में धार्मिक स्वतंत्रता, अंतरात्मा की रक्षा और अत्याचार के विरुद्ध प्रतिरोध का एक असाधारण उदाहरण प्रस्तुत करता है।
गुरु तेग बहादुर का जीवन परिचय:
- गुरु तेग बहादुर (1621–1675) सिख धर्म के नौवें गुरु थे, जिनका जन्म अमृतसर में गुरु हरगोबिंद जी के पुत्र त्याग मल के रूप में हुआ।
- किशोरावस्था में उन्होंने मुग़लों के खिलाफ लड़े गए कपूरथला और करतारपुर के युद्ध में अतुलनीय साहस दिखाया, जिसके बाद उन्हें “तेग बहादुर”—अर्थात् बहादुर तलवार—की उपाधि मिली।
- वे एक वैरागी, चिंतनशील, विद्वान और कवि थे जिनकी 116 बाणियां गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज की गई हैं। उनकी रचनाएँ मानव जीवन की क्षणभंगुरता, मन की एकाग्रता, सेवा, सत्य और मुक्ति पर केंद्रित हैं।
सिख परंपरा में गुरु तेग बहादुर का स्थान:
सिख धर्म में गुरु तेग बहादुर का स्थान इसलिए विशिष्ट है कि उन्होंने हिंसा के प्रतिरोध में धार्मिक स्वतंत्रता के पक्ष में आत्म-बलिदान का मार्ग चुना। उन्होंने असंख्य यात्राएँ कर पूर्वी भारत, बंगाल, बिहार, असम, राजस्थान और पंजाब में गुरु नानक की शिक्षाओं का प्रसार किया। उनके द्वारा अनंदपुर साहिब की स्थापना सिख इतिहास में एक निर्णायक मोड़ साबित हुई, जहाँ आगे चलकर गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की नींव रखी।
राजनीतिक-सामाजिक पृष्ठभूमि:
17वीं शताब्दी के मध्य में मुगल सम्राट औरंगज़ेब द्वारा धार्मिक कट्टरता और जबरन इस्लाम परिवर्तन की नीति ने व्यापक असंतोष पैदा किया। कश्मीर के कश्मीरी पंडित, इफ्तिखार खान के दमन से त्रस्त होकर, गुरु तेग बहादुर से संरक्षण की विनती करने अनंदपुर साहिब पहुँचे। यह घटना भारतीय इतिहास में धार्मिक स्वतंत्रता की लड़ाई के रूप में अंकित है।
गुरु तेग बहादुर ने उनके अधिकारों की रक्षा हेतु आगे बढ़ने का निर्णय लिया और कहा— “धर्म के लिए सिर देना पड़े तो भी पीछे नहीं हटूँगा।”
गिरफ़्तारी और शहादत:
अपने धर्म का त्याग न करने के कारण गुरु तेग बहादुर को रूपनगर के समीप गिरफ्तार किया गया और चार महीने कैद में रखकर दिल्ली के चांदनी चौक में पेश किया गया। उनसे कहा गया कि वे या तो इस्लाम स्वीकार करें या चमत्कार दिखाएँ। उन्होंने दोनों से इनकार कर दिया। उनके तीन साथियों— भाई मति दास, भाई दयाल दास, भाई सती दास को उनके सामने अमानवीय यातनाओं से मारा गया। 11 नवंबर 1675 को गुरु तेग बहादुर को विचार और आस्था की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए शहीद कर दिया गया।
उनकी शहादत का स्थल आज गुरुद्वारा शीश गंज साहिब (दिल्ली) है, जबकि उनके शरीर का अंतिम संस्कार गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब में किया गया।
शहादत का ऐतिहासिक महत्व:
गुरु तेग बहादुर की शहादत भारत के इतिहास में मानवाधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता के पहले और सबसे शक्तिशाली उदाहरणों में से एक है। यह घटना सिख समुदाय में नई ऊर्जा लेकर आई और उनके पुत्र गुरु गोबिंद सिंह ने आगे चलकर 1699 में खालसा पंथ का गठन किया।गुरु तेग बहादुर को “हिंद-दी-चादर (भारत की ढाल)” कहा जाता है क्योंकि उन्होंने केवल सिखों के लिए नहीं, बल्कि पूरे भारतीय समाज के लिए बलिदान दिया।

