Mining ban in Aravalli ranges

संदर्भ:
हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने दिल्ली से गुजरात तक फैली संपूर्ण अरावली श्रृंखला में नए खनन पट्टों (Mining Leases) के आवंटन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का निर्देश जारी किया है।
प्रमुख दिशा-निर्देश:
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- नए पट्टों पर रोक: केंद्र ने स्पष्ट किया है कि अब अरावली के किसी भी हिस्से में नए खनन पट्टे नहीं दिए जाएंगे। इसका उद्देश्य अरावली को एक ‘निरंतर भूवैज्ञानिक रिज’ (Continuous Geological Ridge) के रूप में संरक्षित करना है।
- मौजूदा खदानों पर कड़ाई: जो खदानें वर्तमान में संचालित हैं, उन्हें बंद नहीं किया गया है, लेकिन राज्य सरकारों को निर्देश दिया गया है कि वे उच्चतम न्यायालय के आदेशों और पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करें।
- ICFRE की भूमिका: भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (ICFRE) को उन अतिरिक्त क्षेत्रों की पहचान करने का कार्य सौंपा गया है जहाँ पारिस्थितिक और भूवैज्ञानिक आधार पर खनन को पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।
- सतत खनन प्रबंधन योजना (MPSM): केंद्र ने ICFRE को अरावली के लिए एक विज्ञान-आधारित ‘सतत खनन प्रबंधन योजना’ (Management Plan for Sustainable Mining) तैयार करने का निर्देश दिया है। इस योजना के मुख्य घटक होंगे:
- पारिस्थितिक वहन क्षमता (Carrying Capacity): यह आकलन करना कि अरावली का पर्यावरण कितना दबाव सह सकता है।
- संचयी प्रभाव आकलन: खनन गतिविधियों के सामूहिक पर्यावरणीय प्रभावों का अध्ययन।
- पुनर्वास और बहाली: खनन प्रभावित क्षेत्रों के पारिस्थितिक पुनरुद्धार के लिए उपाय निर्धारित करना।
प्रतिबंध की आवश्यकता क्यों पड़ी?
- पहाड़ियों का गायब होना: रिपोर्टों के अनुसार, राजस्थान में अरावली की लगभग 31 पहाड़ियाँ अवैध खनन के कारण पूरी तरह गायब हो चुकी हैं।
- मरुस्थलीकरण (Desertification): पहाड़ियों के कटने से मरुस्थलीय हवाएँ दिल्ली-एनसीआर की ओर बढ़ रही हैं, जिससे वायु गुणवत्ता खराब हो रही है।
- अवैध खनन: कानूनी पट्टों की आड़ में होने वाले अवैध खनन ने भूजल स्तर को गंभीर नुकसान पहुँचाया है। खनन गतिविधियों से सरिस्का और अन्य वन्यजीव क्षेत्रों के बीच का गलियारा खंडित हो गया है।
- न्यायिक हस्तक्षेप: उच्चतम न्यायालय ने बार-बार अरावली के क्षरण पर चिंता व्यक्त की है। केंद्र का यह निर्णय न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप है।
अरावली पर्वतमाला:
- अरावली विश्व की सबसे प्राचीन वलित पर्वत श्रृंखलाओं (Old Fold Mountains) में से एक है, जिसका निर्माण प्री-कैम्ब्रियन काल (लगभग 2 बिलियन वर्ष पूर्व) में हुआ था।
- यह उत्तर-पश्चिम भारत में गुजरात (पालनपुर) से शुरू होकर राजस्थान और हरियाणा होते हुए दिल्ली (रायसीना हिल्स) तक लगभग 692 किलोमीटर में फैली है।
- यह ‘थार मरुस्थल’ की धूल भरी हवाओं और रेत को गंगा के मैदानों (दिल्ली-एनसीआर) की ओर बढ़ने से रोकने वाली एक प्राकृतिक दीवार है।
- यह क्षेत्र उत्तर भारत के लिए एक प्रमुख ‘वाटर डिवाइडर’ है। यह अरावली के आसपास के क्षेत्रों में भूजल स्तर (Aquifers) को रिचार्ज करने में प्राथमिक भूमिका निभाता है।
- यहाँ सरिस्का, कुंभलगढ़ और माउंट आबू जैसे महत्वपूर्ण वन्यजीव अभयारण्य हैं, जो तेंदुए और विभिन्न लुप्तप्राय प्रजातियों का घर हैं।
- अरावली की मौजूदगी स्थानीय वर्षा के पैटर्न को प्रभावित करती है और दिल्ली-एनसीआर के बढ़ते तापमान को नियंत्रित करने में मदद करती है।
अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट:
अफ्रीका की ‘ग्रेट ग्रीन वॉल’ से प्रेरित होकर केंद्र सरकार अरावली के चारों ओर 5 किमी चौड़ी ‘बफर जोन’ या ग्रीन बेल्ट विकसित कर रही है। इसका उद्देश्य मरुस्थलीकरण को रोकना और भूमि क्षरण को कम करना है।
