Monsoon in India
Monsoon in India –
संदर्भ:
इस वर्ष दक्षिण-पश्चिम मानसून ने सामान्य तिथि से काफी पहले दस्तक दी है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने घोषणा की है कि केरल में मानसून 24 मई को पहुंच गया, जो 2009 के बाद अब तक की सबसे जल्दी शुरुआत है।
भारत में मानसून की शुरुआत (Onset of Monsoon):
भारत में मानसून वर्षा ऋतु आमतौर पर जून से सितंबर तक रहती है। हालांकि, इसका आगमन और तीव्रता भौगोलिक क्षेत्रों के अनुसार भिन्न होती है। मानसून का आगमन (onset) न केवल कृषि और जल प्रबंधन के लिए, बल्कि आर्थिक योजना के दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।
पूर्व–मानसून अवधि (Pre-Monsoon Period): मार्च से मई
- इस दौरान सूर्य की तीव्रता के कारण पूरे देश में तापमान बढ़ता है।
- भूमध्यरेखीय क्षेत्र की भूमि महासागरों की तुलना में तेजी से गर्म होती है, जिससे उत्तर भारत के ऊपर एक तीव्र निम्न–दाब क्षेत्र विकसित होता है।
- यह निम्न-दाब क्षेत्र मानसून की शुरुआत के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बनाता है।
दक्षिण–पश्चिम मानसून का आगमन (End of May to Mid-June)
- मानसून की शुरुआत अंडमान सागर और बंगाल की खाड़ी में होती है।
- भारतीय महासागर से नमी से भरी हवाएँ इस निम्न-दाब क्षेत्र की ओर आकर्षित होती हैं, जिससे मानसून ट्रफ बनता है।
- यह हवाएँ भारत में मुख्य वर्षा ऋतु की शुरुआत करती हैं।
मानसून के आगमन को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक:
- भारतीय भूभाग का तीव्र ऊष्मन: यह तीव्र निम्न-दाब क्षेत्र के निर्माण में सहायक होता है।
- ITCZ (Inter-Tropical Convergence Zone) का उत्तर की ओर खिसकना: यह रेखा मानसून ट्रफ के अनुरूप चलती है और वर्षा को प्रेरित करती है।
- Subtropical Westerly Jet Stream का पीछे हटना: इसके हटने से मानसूनी हवाओं को भारत में प्रवेश करने के लिए मार्ग मिलता है।
- दक्षिण–पूर्व व्यापारिक हवाओं (SE Trade Winds) की दिशा में मोड़: भूमध्यरेखा पार करते ही ये हवाएँ भारतीय पश्चिमी तट की ओर मुड़ जाती हैं, जिससे मानसून प्रारंभ होता है।
मानसून की प्रगति (Advancement: June to July)
- मानसून की शुरुआत सामान्यतः केरल से होती है और फिर उत्तर दिशा की ओर बढ़ता है।
- इस “Monsoon Onset Line” को मौसम विभाग द्वारा प्रतिदिन ट्रैक किया जाता है।
समयपूर्व मॉनसून आगमन के प्रमुख कारण
मैडेन–जूलियन ऑस्सीलेशन (Madden-Julian Oscillation – MJO):
- यह एक महत्वपूर्ण महासागरीय–वायुमंडलीय परिघटना है जो भारतीय मानसून को गहराई से प्रभावित करती है।
- MJO में बादल, हवा और दबाव की अशांति पश्चिम से पूर्व दिशा में 4–8 m/s की गति से चलती है।
- इसकी अनुकूल स्थिति भारतीय उपमहाद्वीप में वर्षा को बढ़ावा देती है।
मस्करीन उच्च दबाव (Mascarene High):
- यह दक्षिण हिंद महासागर में मस्करीन द्वीपों के पास बना उच्च दबाव क्षेत्र होता है।
- इसके तीव्रता में उतार–चढ़ाव भारत के पश्चिमी तट पर भारी वर्षा में सहायक होते हैं।
ऊर्ध्वपातन (Convection):
- वायुमंडल में ऊष्मा और आर्द्रता का ऊर्ध्वगामी संचार वर्षा उत्पन्न करता है।
- मई मध्य में हरियाणा में बना एक कंवेक्टिव सिस्टम दक्षिण-पूर्व की ओर बढ़कर दिल्ली में वर्षा का कारण बना।
सोमाली जेट (Somali Jet):
- यह कम ऊँचाई वाली हवाओं की पट्टी होती है जो मारीशस और मेडागास्कर से चलकर अरब सागर तक पहुँचती है।
- मजबूत सोमाली जेट भारतीय उपमहाद्वीप पर मानसूनी हवाओं को सशक्त बनाता है।
हीट–लो (Heat Low):
- उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य के स्थानांतरण से अरब सागर और पाकिस्तान क्षेत्र में कम दबाव क्षेत्र बनता है।
- यह नमी युक्त हवाओं को खींचने वाला ‘सक्शन डिवाइस‘ की तरह कार्य करता है, जिससे मानसून मज़बूत होता है।
मानसून ट्रफ (Monsoon Trough):
- यह एक लंबवत निम्न–दाब क्षेत्र होता है जो हीट-लो से लेकर बंगाल की उत्तरी खाड़ी तक फैला होता है।
- इसके उत्तर–दक्षिण झूलने से कोर मानसून क्षेत्र में वर्षा होती है।
- साथ ही, मानसून ऑन्सेट वॉर्टेक्स (अरब सागर में चक्रवाती गठन) भी महत्वपूर्ण होता है।
न्यूट्रल एल–नीनो दक्षिणी दोलन (ENSO) स्थितियाँ:
ENSO की न्यूट्रल स्थिति इस अवधि में देखी गई, जो सामान्य या मजबूत मानसून को समर्थन प्रदान करती है।