Nanotechnology offers new opportunities for the plastics industry
संदर्भ:
भारत के प्रमुख संस्थानों—IIT बॉम्बे, IIT मद्रास और IIT कानपुर—के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा वैज्ञानिक समाधान प्रस्तुत किया है जो प्लास्टिक प्रसंस्करण को ऊर्जा-कुशल, तेज और अधिक पर्यावरण-सम्मत बना सकता है। इस अध्ययन के अनुसार कुछ पोलिमरों में टेट्रापॉड-आकृति वाले नैनोकण मिलाए जाएँ, तो उनकी viscosity (चिपचिपाहट) कम हो जाती है, जिससे प्लास्टिक को पिघलाना, ढालना और मिश्रित करना आसान हो जाता है।
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष:
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Viscosity में कमी: गोले (spheres) या डंडे (rods) के विपरीत, टेट्रापॉड-आकृति वाले नैनोकण polymer की चिपचिपाहट को बढ़ाते हैं। यह खोज प्लास्टिक प्रसंस्करण उद्योग में ऊर्जा लागत को कम कर सकती है।
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कंप्यूटर सिमुलेशन की भूमिका:IIT मद्रास के सिमुलेशन बताते हैं कि: टेट्रापॉड की आंतरिक वक्रताएँ ऐसी जगहें बनाती हैं जहाँ लंबे polymer chains जाना पसंद नहीं करते। इससे polymer–nanoparticle घनत्व कम होता है और polymer chains अधिक आसानी से एक-दूसरे पर फिसल जाते हैं।
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Flow Tuning की क्षमता: शोध से स्पष्ट हुआ कि नैनोकणों का आकार polymer flow को दोनों दिशाओं में नियंत्रित कर सकता है। यह coatings, adhesives, 3D printing resins में अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकता है।
नैनोप्रौद्योगिकी क्या हैं?
नैनोप्रौद्योगिकी वह तकनीक है जिसमें पदार्थों का अध्ययन और उपयोग 1 से 100 नैनोमीटर (मीटर का एक अरबवाँ भाग) के बीच किए जाने वाले कणों या संरचनाओं के रूप में किया जाता है। इस स्तर पर पदार्थों के गुण—जैसे मजबूती, चालकता, चुंबकीय व्यवहार, प्रतिक्रियाशीलता—सामान्य आकार की तुलना में पूरी तरह बदल जाते हैं। इसका उपयोग चिकित्सा, रक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऊर्जा और पर्यावरण संरक्षण में तेजी से बढ़ रहा है। इस प्रौद्योगिकी में प्रयुक्त नैनोकण बहुउपयोगी होते हैं। ये दवा-वाहक प्रणाली, सेंसर, पॉलिमर सुधार, जल शोधन और नई सामग्रियों के विकास में उपयोग किए जाते हैं।
भारत के प्लास्टिक उद्योग के लिए निहितार्थ:
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ऊर्जा दक्षता और लागत में कमी: प्लास्टिक प्रसंस्करण में ऊष्मा और ऊर्जा की भारी खपत होती है। viscosity कम होने से कम ऊर्जा में पिघलाना संभव, मशीनों की दक्षता में वृद्धि, उत्पादन लागत में कमी।
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3D प्रिंटिंग: इस तकनीक से 3D printing resins का viscosity नियंत्रण आसान होगा, जिससे— प्रिंटिंग गुणवत्ता बढ़ेगी, सामग्री की स्थिरता में सुधार होगा।
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पुनर्चक्रण (Recycling) क्षेत्र: भारत का plastic waste management एक बड़ी चुनौती है। आने वाले समय में यह तकनीक recycled polymers के स्तर को बेहतर बना सकती है। ये कम गुणवत्ता वाले recycled plastic को उच्च गुणवत्ता में प्रोसेस करने में सहायक होगी।
अनुसंधान से जुड़े मुद्दे:
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Mass-scale synthesis की चुनौती: टेट्रापॉड नैनोकणों का बड़े पैमाने पर निर्माण अभी कठिन और महँगा है। इसके लिए— precise shape control और sustainable raw materials की आवश्यकता है।
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Cadmium आधारित नैनोकण: वर्तमान प्रयोगों में CdSe (Cadmium Selenide) nanoparticles उपयोग किए गए, जो— विषैले, पर्यावरण के लिए जोखिमपूर्ण, मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकार है। अतः पर्यावरण-अनुकूल विकल्प विकसित करना अनिवार्य है।

