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त्रिपुरा में दो विद्रोही समूहों के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर

चर्चा मे क्यों ?

  • त्रिपुरा में हिंसा समाप्त करने और शांति लाने के लिए बुधवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की उपस्थिति में केंद्र और प्रदेश सरकार तथा राज्य के दो उग्रवादी समूहों राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा त्रिपुरा (NLFT) और सभी त्रिपुरा टाइगर फोर्स (ATTF) के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
  • इस समझौते पर बुधवार को दिल्ली में केंद्रीय और त्रिपुरा सरकारों के साथ दस्तखत किए गए।
  • केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा, TIPRA मोथा के संस्थापक प्रद्योत किशोर देबबर्मा और गृह मंत्रालय के अधिकारी की उपस्थित मे हस्ताक्षर किए गए।
  • यह उत्तर-पूर्व के लिए 12वां समझौता है और त्रिपुरा के लिए तीसरा है।
  • केंद्र सरकार ने विद्रोहियों के पुनर्वास के लिए 250 करोड़ रुपये का पैकेज स्वीकृत किया है।

त्रिपुरा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (NLFT) और ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स (ATTF)-

  1. त्रिपुरा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (National Liberation Front of Tripura – NLFT):

  • स्थापना (Founded): 1989
  • उद्देश्य (Objective): NLFT का मुख्य उद्देश्य त्रिपुरा राज्य को स्वतंत्र बनाना और आदिवासी समुदायों की पहचान (identity) को संरक्षित करना है।
  • गतिविधियां (Activities): यह संगठन सशस्त्र विद्रोह, फिरौती और अपहरण जैसी हिंसक गतिविधियों में शामिल रहा है। इसने नागरिकों, सरकारी कर्मियों और बुनियादी ढांचे पर हमले किए हैं।
  • समर्थन आधार (Support Base): यह मुख्य रूप से उन आदिवासी समुदायों से समर्थन प्राप्त करता है जो त्रिपुरा में जनसांख्यिकीय बदलाव (demographic changes) के कारण हाशिये पर महसूस करते हैं।
  • प्रतिबंधित स्थिति (Banned Status): भारत सरकार ने NLFT को आतंकवादी संगठन घोषित किया है और इसे गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया है।
  1. ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स (All Tripura Tiger Force – ATTF):

  • स्थापना (Founded): 1990
  • उद्देश्य (Objective): ATTF भी त्रिपुरा की स्वतंत्रता की मांग करता है, लेकिन इसका मुख्य ध्यान गैर-आदिवासी बस्तियों, विशेषकर बंगाली समुदाय से भूमि को वापस लेने पर है।
  • गतिविधियां (Activities): ATTF हिंसक गतिविधियों, गैर-आदिवासी समुदायों पर हमले, फिरौती और हथियारों की तस्करी (arms smuggling) में शामिल रहा है।
  • प्रतिबंधित स्थिति (Banned Status): ATTF को भी UAPA के तहत प्रतिबंधित कर आतंकवादी संगठन घोषित किया गया है।

उत्तर-पूर्व भारत में संघर्षों  के कारण (History of Conflicts in North-East India):

  • ऐतिहासिक कारण (Historical Causes): ब्रिटिश भारत के समय से ही यह क्षेत्र ढीले-ढाले तरीके से प्रशासित किया गया था, जिससे शासन और नियंत्रण में कमी रही।
  • केंद्र और राज्य सरकार के बीच तनाव (Tension between the central and state governmen): इन राज्यों और केंद्र सरकार के बीच राजनीतिक और प्रशासनिक मुद्दों पर लगातार टकराव रहा है।
  • बाहरी समर्थन (External support): चीन, पाकिस्तान और म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों से भी उग्रवादियों को समर्थन मिला है, जिससे संघर्ष और बढ़ता है।
  • जनजातीय और प्रवासी लोगों के बीच तनाव (Tension between tribal and migrant people): उत्तर-पूर्व के मूल निवासियों और अन्य हिस्सों से आए प्रवासी लोगों के बीच संसाधनों और पहचान को लेकर संघर्ष होता रहा है।
  • भौगोलिक कारण (Geographical Reasons): यह क्षेत्र भारतीय मुख्य भूमि से अच्छी तरह से जुड़ा नहीं है, जिससे अलगाव की भावना बनी रहती है।
  • विकासात्मक कारण (Developmental Reasons): राज्यों और केंद्र से वित्तीय सहायता की कमी के कारण यह क्षेत्र विकास की दृष्टि से पिछड़ा हुआ है।
  • पर्यावरणीय कारण (Environmental Reasons): पर्यावरणीय समस्याएं और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन भी संघर्ष का एक प्रमुख कारण हैं।
  • सैन्य कारण (AFSPA): सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) का विरोध, जो सेना को विशेष अधिकार देता है, तनाव और हिंसा को जन्म देता है।
  • विदेश नीति (Foreign policy): आसान नीतियों और बाजार परिवर्तनों की खोज में गलत विदेशी नीतियों का प्रभाव भी देखा गया है।

उत्तर-पूर्व भारत में अलग-अलग राज्यों के विद्रोही समूह और संघर्ष (Insurgent groups and conflicts in different states in North-East India):

  1. असम (Assam):

यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA):

  • 1979 में गठित ULFA ने असम की स्वतंत्रता की मांग की थी। यह संगठन सशस्त्र संघर्ष, बम धमाकों और सुरक्षा बलों पर हमलों में शामिल रहा है।
  • आंतरिक विभाजन के बाद, इसके एक धड़े ने शांति वार्ता शुरू की, जबकि दूसरा धड़ा, जिसका नेतृत्व परेश बरुआ कर रहे हैं, अब भी हथियारबंद संघर्ष जारी रखे हुए है।

नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (National Democratic Front of Bodoland- NDFB):

  • 1980 के दशक के अंत में बना NDFB बोडो लोगों के लिए स्वतंत्र बोडोलैंड की मांग करता है। इस संघर्ष से हिंसा और विस्थापन हुआ है।
  • NDFB के कुछ गुटों के साथ युद्धविराम समझौते हुए हैं और शांति वार्ताएं जारी हैं।

 अन्य समूह (Other groups):

  • करबी लोंगरी एन.सी. हिल्स लिबरेशन फ्रंट (KLNLF) जैसे छोटे समूह भी स्वायत्तता या स्वतंत्रता की मांग के लिए संघर्ष में शामिल रहे हैं।
  1. मणिपुर (Manipur):

पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) और यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (UNLF): मणिपुर के कई समूह, जैसे PLA और UNLF, स्वतंत्रता या अधिक स्वायत्तता की मांग कर रहे हैं। इस संघर्ष में सुरक्षा बलों और राजनीतिक नेताओं पर हमले शामिल हैं।

  • वार्ताएं जारी हैं, लेकिन कुछ गुट अभी भी सक्रिय हैं।

कांगलेइपक कम्युनिस्ट पार्टी (KCP) और अन्य (Kangleipak ​​Communist Party (KCP) and others):

  • मणिपुर के कई समूह, जिनमें KCP भी शामिल है, राजनीतिक और जातीय अधिकारों के लिए सशस्त्र संघर्ष में लगे हुए हैं।
  • इनकी शिकायतों को दूर करने और शांति स्थापित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
  1. नगालैंड (Nagaland):

नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (National Socialist Council of Nagaland – NSCN): 1980 में गठित NSCN ने नगालिम की स्वतंत्रता की मांग की थी। इस संघर्ष के तहत कई दौर की वार्ताएं हो चुकी हैं।

  • भारतीय संघ के भीतर स्वायत्तता पर चर्चाएं और युद्धविराम समझौते जारी हैं।
  1. त्रिपुरा (Tripura):

नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (NLFT) और ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स (ATTF): NLFT और ATTF ने त्रिपुरा को भारत से अलग करने की मांग की, जिससे हिंसा और विस्थापन हुआ।

  • युद्धविराम समझौतों पर हस्ताक्षर हुए हैं और राजनीतिक एकीकरण के प्रयास किए जा रहे हैं।
  1. मिजोरम (Mizoram):

मिजो नेशनल फ्रंट (Mizo National Front – MNF): MNF ने 1960 और 1970 के दशकों में मिजो स्वतंत्रता की मांग करते हुए सशस्त्र संघर्ष किया था।

  • 1986 में हुए मिजोरम समझौते के बाद राजनीतिक एकीकरण हो गया और अब MNF एक राजनीतिक पार्टी है।
  1. अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh):

  • अरुणाचल प्रदेश में अन्य पूर्वोत्तर राज्यों की तुलना में प्रमुख विद्रोह नहीं हुए हैं, लेकिन सीमा विवादों से जुड़े छिटपुट घटनाएं और चिंताएं सामने आई हैं।

पड़ोसी देशों की भूमिका (Role of Neighbouring Countries):

  • चीन और म्यांमार की भूमिका (Role of China and Myanmar): चीन और म्यांमार पर उत्तर-पूर्व भारत में उग्रवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाया जाता है।
  • पाकिस्तान और S.I. का समर्थन (Support of Pakistan and I.S.I): पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी I.S.I. पर यह आरोप है कि उसने विद्रोही समूहों को प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता प्रदान की है।
  • चीन का समर्थन (1980 का दशक) (Support of China (1980s): 1980 के दशक में चीन ने नागालैंड के नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (S.C.N.) जैसे समूहों को कुछ सहायता प्रदान की थी।
  • म्यांमार के सीमा क्षेत्रों में उग्रवादी शिविर (Insurgent camps in Myanmar border areas): नागालैंड और मणिपुर के उग्रवादी समूहों के शिविर म्यांमार की सीमा से लगे इलाकों में मौजूद हैं। L.F.A. और N.D.F.B. जैसे संगठनों ने इन शिविरों का उपयोग किया है।
  • भूटान का सैन्य अभियान (Bhutan’s military operation): भूटान एकमात्र ऐसा देश है जिसने दिसंबर 2003 में एक सैन्य अभियान चलाकर उत्तर-पूर्व के विद्रोही समूहों के कई शिविरों को सफलतापूर्वक हटा दिया था।

हाल ही में हस्ताक्षरित अन्य समझौते (Other agreements signed recently):

  1. असम-मेघालय अंतर-राज्यीय सीमा समझौता (Assam-Meghalaya Inter-State Border Agreement) 2022: यह समझौता छह क्षेत्रों में विवादों को सुलझाने का लक्ष्य रखता है। इस समझौते के तहत, असम को लगभग 181 वर्ग किलोमीटर और मेघालय को लगभग 18 वर्ग किलोमीटर विवादित क्षेत्र मिले हैं।
  2. करबी आंगलोंग समझौता (Karbi Anglong Agreement) 2021): यह त्रिपक्षीय समझौता असम के पांच उग्रवादी समूहों, केंद्र और राज्य सरकार के बीच हुआ। इसमें पांच उग्रवादी संगठनों (KLNLF, PDCK, UPLA, KPLT, और KLF) ने हथियार डाले, और 1,000 से अधिक सशस्त्र कैडर मुख्यधारा में शामिल हुए।
  3. बोडो समझौता (Bodo Accord) 2020: इस समझौते पर केंद्र सरकार, असम सरकार और बोडो समूहों (NDFB के गुटों सहित) ने हस्ताक्षर किए। इसके तहत बोडोलैंड टेरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट (BTAD) का नाम बदलकर बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन (BTR) कर दिया गया है।
  4. ब्रू-रियांग समझौता (Bru-Reang Agreement) 2020: यह चार पक्षों वाला समझौता केंद्र, मिजोरम, त्रिपुरा सरकारों और ब्रू नेताओं के बीच हुआ। इसका उद्देश्य उत्तर-पूर्व भारत के ब्रू समुदाय के लोगों को त्रिपुरा में बसाना है, जिसकी लागत गृह मंत्रालय वहन करेगा।
  5. NLFT-त्रिपुरा समझौता (NLFT-Tripura Agreement) 2019: 1997 से प्रतिबंधित NLFT ने इस समझौते के तहत 88 कैडरों ने 44 हथियारों के साथ आत्मसमर्पण किया। नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा अंतरराष्ट्रीय सीमा पार से अपने शिविरों का संचालन करता था।
  6. टिपरा मोथासे समझौता (Agreement with ‘Tipra Motha’): इसी साल मार्च में त्रिपुरा के मूल निवासियों की समस्याओं के समाधान के लिए एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ था। इसमें इंडिजीनस प्रोग्रेसिव रीजनल अलायन्स (टिपरा मोथा), त्रिपुरा सरकार, और केंद्र सरकार शामिल थीं।
  7. सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) की वापसी (Withdrawal of Armed Forces Special Powers Act (AFSPA): सरकार ने उत्तर-पूर्व के बड़े हिस्से, जैसे त्रिपुरा और मेघालय से AFSPA को हटा लिया। अरुणाचल प्रदेश में, AFSPA अब केवल तीन जिलों में लागू है।

संवैधानिक प्रावधान (Constitutional Provision):

  • अनुच्छेद 371 (A) के तहत नागालैंड को विशेष दर्जा: नागालैंड को विशेष दर्जा प्रदान किया गया है, जिसके तहत इस राज्य को विशेष संवैधानिक अधिकार दिए गए हैं।
  • अनुच्छेद 244 (1): इस प्रावधान के तहत पांचवीं अनुसूची के नियम उन क्षेत्रों और जनजातियों पर लागू होते हैं, जिन्हें अनुसूचित क्षेत्र और अनुसूचित जनजाति के रूप में नामित किया गया है।
  • अनुच्छेद 244 (2): इस प्रावधान के अनुसार, छठी अनुसूची के नियम असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के अनुसूचित क्षेत्रों पर लागू होते हैं, ताकि इन राज्यों में स्वायत्त जिला परिषदों (Autonomous District Councils) का गठन किया जा सके।
  • स्वायत्त जिला परिषदों का गठन (Formation of Autonomous District Councils): इन प्रावधानों के तहत विभिन्न स्वायत्त जिलों का गठन किया गया है, ताकि करबी आंगलोंग, खासी हिल्स, चकमा जिला आदि जैसे विभिन्न जातीय समूहों की मांगों को संतुलित किया जा सके।

हिंसा के परिणाम (Consequences of violence):

  • गृह मंत्रालय के अनुसार, उत्तर-पूर्व में हिंसा के कारण नागरिकों और सुरक्षा बलों, दोनों की भारी संख्या में मौतें हुई हैं।
  • तेल-समृद्ध असम में उग्रवादी समय-समय पर तेल और गैस पाइपलाइनों को निशाना बनाते हैं, उनका आरोप है कि भारत राज्य के प्राकृतिक संसाधनों का शोषण कर रहा है।
  • रेल लाइनों के विस्तार जैसे राष्ट्रीय परियोजनाएं या तो ठप हो गई हैं या बहुत धीमी गति से आगे बढ़ी हैं, क्योंकि उग्रवादियों ने निर्माण स्थलों पर हमले किए और कामगारों का अपहरण किया।
  • उग्रवाद ने उत्तर-पूर्व की अर्थव्यवस्था को दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से जोड़ने की संभावनाओं को भी बाधित कर दिया है।
  • प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर उत्तर-पूर्व का पर्यटन, जो बहुत उन्नत हो सकता था, क्षेत्र में अस्थिरता के कारण काफी प्रभावित हुआ है।
  • शिक्षा क्षेत्र भी उग्रवाद से प्रभावित हुआ है। त्रिपुरा जैसे राज्यों के आंतरिक क्षेत्रों में कई स्कूल बंद हो गए हैं, क्योंकि शिक्षक उग्रवादी हमलों के डर से इन क्षेत्रों में जाने से बचते हैं।
  • जो राजमार्ग उत्तर-पूर्वी राज्यों को भारत के मुख्य भाग से जोड़ते हैं, उन पर उग्रवादी समूहों द्वारा जबरन वसूली के कारण आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में भारी वृद्धि हो गई है।

उत्तर-पूर्व भारत में उग्रवाद से निपटने के लिए संस्थागत उपाय (Institutional Measures to Deal With Insurgency in North-East India):

  • युद्धविराम समझौते (Ceasefire Agreements): विभिन्न राज्यों में उग्रवादी समूहों के साथ लगातार युद्धविराम समझौते किए जा रहे हैं। सबसे पुराना समझौता S.C.N.-I.M. के साथ 25 जुलाई 1997 को हुआ था।
  • शांति वार्ता (Ceasefire Agreements): विभिन्न राज्यों में उग्रवादी समूहों के साथ लगातार शांति वार्ता किए जा रहे हैं।उदाहरण के लिए, 2015 में नागालैंड शांति समझौता S.C.N. के साथ हुआ, जिसका उद्देश्य उग्रवाद को समाप्त करना था।
  • सैन्य अभियान (Military Operations): सेना, राज्य पुलिस, और अर्धसैनिक बलों द्वारा उग्रवाद को नियंत्रित करने के लिए सुरक्षा बलों के अभियान चलाए जाते हैं। जैसे मिजोरम में हवाई हमले और L.F.A. उग्रवादियों के खिलाफ राइनो और बजरंग जैसे अभियान।
  • AFSPA (सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम): असम, नागालैंड, मणिपुर, और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में AFSPA लागू है।
  • सूक्ष्म-लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत बनाना (Strengthening micro-democratic institutions): स्थानीय शासन संस्थानों जैसे स्वायत्त विकास परिषद, ग्राम पंचायत और ग्राम परिषदों को सशक्त करना। इन संस्थानों की कार्यक्षमता और वैधता को बढ़ाकर विभिन्न समुदायों को विकास की मुख्यधारा में लाना।
  • विकासात्मक उपाय (Developmental measures):
  1. सीमा क्षेत्र विकास और पहाड़ी क्षेत्र विकास जैसे कार्यक्रमों का कार्यान्वयन।
  2. उत्तर-पूर्व राज्यों को विशेष श्रेणी का दर्जा देना; भारतमाला परियोजना के तहत बुनियादी ढांचे के विकास के लिए सहायता।
  • क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना (RCS)-उड़ान; कलादान मल्टी-मोडल ट्रांजिट प्रोजेक्ट, भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग, डिजिटल नॉर्थ ईस्ट विजन 2022 और राष्ट्रीय बांस मिशन।

त्रिपुरा में हुए इस समझौते का प्रभाव (Effect of this agreement in Tripura):

  • स्थिरता और शांति की स्थापना (Establishment of stability and peace): समझौते के तहत उग्रवादी समूहों के हथियार डालने से राज्य में शांति और स्थिरता स्थापित होने की संभावना बढ़ेगी। इससे लंबे समय से चल रहे हिंसक संघर्षों में कमी आएगी।
  • विकास कार्यों में तेजी (Acceleration in development work): उग्रवाद की कमी से त्रिपुरा में विकास परियोजनाओं, जैसे सड़क निर्माण, बिजली और अन्य बुनियादी ढांचे के कार्यों में तेजी आने की उम्मीद है।
  • पर्यटन को बढ़ावा (Promotion of tourism): क्षेत्र में शांति बहाल होने के साथ ही पर्यटन क्षेत्र में भी उछाल देखने को मिलेगा, जिससे राज्य की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।
  • रोजगार के नए अवसर (New employment opportunities): उग्रवादी समूहों के आत्मसमर्पण और मुख्यधारा में लौटने के बाद, सरकार द्वारा उन्हें रोजगार और पुनर्वास के अवसर प्रदान किए जा सकते हैं, जिससे बेरोजगारी की समस्या कम होगी।
  • सामाजिक एकता में सुधार (Improvement in social unity): इस समझौते से राज्य के विभिन्न समुदायों के बीच आपसी विश्वास और एकता में सुधार होगा, जिससे सामाजिक समरसता को बढ़ावा मिलेगा।
  • कानून और व्यवस्था में सुधार (Improvement in law and order): उग्रवादियों के आत्मसमर्पण के बाद कानून और व्यवस्था की स्थिति में सुधार होगा, जिससे राज्य में सुरक्षा का माहौल बेहतर होगा।

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