None of the Above
संदर्भ:
हाल ही में विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी ने एक जनहित याचिका (PIL) दाखिल की है, जिसमें मांग की गई है कि ‘उपरोक्त में से कोई नहीं’ (NOTA) विकल्प को सभी चुनावों में अनिवार्य रूप से शामिल किया जाए — यहां तक कि उन क्षेत्रों में भी जहां केवल एक ही उम्मीदवार मैदान में हो।
NOTA (None of the Above)
क्या है?: NOTA एक मतदान विकल्प है, जो मतदाताओं को चुनाव में सभी प्रत्याशियों को अस्वीकार करने की अनुमति देता है, जबकि उनकी पसंद की गोपनीयता बनाए रखता है।
उद्भव: 2013 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले (PUCL बनाम भारत संघ) के परिणामस्वरूप शुरू हुआ।
- इसे मतदाता असंतोष के प्रतीक के रूप में मान्यता दी गई।
पहली बार कार्यान्वयन:
- 2013 विधानसभा चुनाव: छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान, दिल्ली और मध्य प्रदेश।
- 2014 के आम चुनाव में भी लागू।
वर्तमान कानूनी स्थिति और कार्य:
- गिनती: NOTA मतों की गिनती होती है, लेकिन उन्हें अवैध मतों के रूप में माना जाता है।
- चुनावी परिणाम पर प्रभाव: यदि NOTA को सबसे अधिक मत मिलते हैं, तो भी दूसरे सबसे अधिक वैध मत वाले उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाता है।
- लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति: चुनाव परिणाम को प्रभावित नहीं करता, लेकिन लोकतांत्रिक असंतोष व्यक्त करने का साधन है।
चुनाव आयोग की स्थिति:
NOTA को अनिवार्य बनाने का विरोध: सभी चुनावों में NOTA को अनिवार्य बनाने का समर्थन नहीं।
कारण:
बिना मुकाबले के चुनाव:
- 1971 से लोकसभा चुनाव में केवल 6 ऐसे मामले।
- 1952 से अब तक केवल 9 मामले जब उम्मीदवार बिना मुकाबले के निर्वाचित हुए।
कानूनी संशोधन की आवश्यकता:
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951।
चुनाव आचरण नियम, 1961।