Pangenome
संदर्भ:
वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने एशियाई चावल का पहली बार ‘पैन्जीनोम‘ (Pangenome) तैयार किया है। यह पैनजीनोम एशिया की 144 किस्मों — जिनमें वन्य (wild) और खेती योग्य (cultivated) दोनों प्रकार की चावल की किस्में शामिल हैं — के जीनोम के प्रमुख हिस्सों को जोड़कर विकसित किया गया है।
पैन्जीनोम क्या है?
- परिभाषा:
- पैन्जीनोम किसी प्रजाति में मौजूद सभी जीनों का पूर्ण संग्रह है।
- इसमें दो प्रमुख घटक होते हैं:
- कोर जीनोम: सभी व्यक्तियों में मौजूद सामान्य जीन।
- एक्सेसरी जीनोम: केवल कुछ व्यक्तियों या उपभेदों में पाए जाने वाले जीन।
- पैन्जीनोम मानचित्रण:
- इसमें किसी प्रजाति के भीतर जीनों की पहचान और उनके जीनोमिक स्थान का अंकन शामिल है।
- यह प्रजाति के भीतर आनुवंशिक विविधता और विशिष्ट जीन या जीन वेरिएंट की उपस्थिति को दर्शाता है।
एशियाई चावल का पहला पैन्जीनोम
- परिभाषा:
- यह चावल की विभिन्न किस्मों में पाए जाने वाले सामान्य और अनोखे जीनों का व्यापक संग्रह है।
- यह चावल में मौजूद आनुवंशिक विविधता का पूरा ज्ञान प्रदान करता है।
- तकनीकी दृष्टिकोण:
- ‘PacBio हाई-फिडेलिटी’ (HiFi) अनुक्रमण तकनीक और कम्प्यूटेशनल विधियों का उपयोग करके पैन्जीनोम का निर्माण किया गया।
- मुख्य निष्कर्ष:
- कुल जीन: 69,531
- कोर जीन: 28,907
- वन्य–चावल–विशिष्ट जीन: 13,728
- विशिष्टता:
- कुल जीनों में से लगभग 20% जंगली चावल के लिए विशेष।
- कुल जीन: 69,531
महत्व:
विकासीय अंतर्दृष्टि: अध्ययन ने इस सिद्धांत का समर्थन किया कि सभी एशियाई खेती वाले चावल का विकासात्मक स्रोत एक जंगली किस्म Or-IIIa (जापोनिका का पूर्वज) है।
शोध और कृषि में लाभ:
- उच्च उपज वाली नई किस्मों का विकास: आनुवंशिक विविधता का उपयोग कर अधिक उत्पादक चावल प्रजातियों का निर्माण।
- रोग–सहिष्णुता में वृद्धि: नए गुणों का समावेश कर रोग प्रतिरोधी किस्में विकसित करना।
- जलवायु झटकों से निपटने की क्षमता: प्रतिकूल मौसम परिस्थितियों के प्रति सहनशीलता बढ़ाना।
- क्षेत्र–विशिष्ट किस्मों का विकास: स्थानीय कृषि-जलवायु के अनुसार अनुकूलित किस्मों का उत्पादन।
निष्कर्ष:
- एशियाई चावल का पहला पैन्जीनोम आनुवंशिक विविधता का व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करता है।
- यह शोध न केवल चावल की उत्पत्ति को समझने में मदद करता है, बल्कि नई, उच्च उपज वाली और रोग-प्रतिरोधी किस्मों के विकास का मार्ग भी प्रशस्त करता है।
इस पैन्जीनोम अध्ययन से जलवायु अनुकूलन और क्षेत्र-विशिष्ट किस्मों के विकास में भी महत्वपूर्ण प्रगति की संभावना है।