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UNGA अध्यक्ष ने कहा, भारत ने स्मार्टफोन के इस्तेमाल से 80 million लोगों को गरीबी से बाहर निकाला

poverty

चर्चा मे क्यों (Why in news) ?

संयुक्त राष्ट्र महासभा के 78वें सत्र (78th session of the United Nations General Assembly) के अध्यक्ष (President) डेनिस फ्रांसिस (Denis Francis) ने रोम में वैश्विक बैठक मे भारत की प्रशंसा करते हुए बताया की  भारत ने डिजिटलीकरण (digitalization) के माध्यम पिछले 5-6 वर्षों में 800 मिलियन लोग गरीबी (poverty) से बाहर निकालने मे सक्षम हो पाया हैं।

उन्होंने भारत का उदाहरण देते हुए इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों (rural areas) में लोग स्मार्टफोन के माध्यम से भुगतान और बिलों का भुगतान ( payments and pay bills) करने में सक्षम हैं।

फ्रांसिस के अनुसार, भारत में इंटरनेट की उच्च पहुंच (high internet penetration) ने आर्थिक प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

भारत में वर्तमान गरीबी दर (Current poverty rate in India):

भारतीय स्टेट बैंक (State Bank of India) द्वारा फरवरी 2024 में जारी रिपोर्ट के अनुसार, देश में गरीबी दर (poverty rate) 2022-23 में गिरकर 4.5-5 प्रतिशत हो गयी है।

वही घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण डेटा (Household consumption expenditure survey) के आकडे के अनुसार ग्रामीण गरीबी (rural poverty) 2011-12 में 25.7 प्रतिशत से घटकर 7.2 प्रतिशत हो गई है।

Global Multidimensional Poverty Index (MPI) 2023

वैश्विक दृष्टिकोण (Global Outlook):

  • दुनिया भर में, 1 अरब लोगों में से 1.1 अरब लोग (कुल जनसंख्या का 18%) गहरी बहुआयामी गरीबी (multidimensional poverty) में जीवनयापन कर रहे हैं। ये लोग 110 देशों में फैले हुए हैं।
  • सब-सहारा अफ्रीका में 534 मिलियन गरीब लोग हैं।
  • दक्षिण एशिया में 389 मिलियन गरीब लोग हैं।
  • इन दोनों क्षेत्रों में दुनिया के हर छह गरीब लोगों में से पांच रहते हैं।

बच्चों की स्थिति (Children’s situation):

  • 18 साल से कम उम्र के बच्चे बहुआयामी गरीबी में जीवनयापन कर रहे, कुल गरीब लोगों का आधा हिस्सा (566 मिलियन) हैं।
  • बच्चों में गरीबी दर 27.7% है, जबकि वयस्कों में यह दर 13.4% है।
  • यहां तक कि बच्चों में गरीबी का अनुपात वयस्कों की तुलना में काफी अधिक है।

भारत की स्थिति: (Outlook for India)

  • भारत में 230 मिलियन से अधिक लोग गरीबी में जीवन यापन कर रहे हैं।
  • भारत की लगभग 18.7% जनसंख्या “असुरक्षा” (vulnerable) की श्रेणी में आती है, जिसका मतलब है कि ये लोग 20-33.3% प्रमुख संकेतकों में अभाव झेल रहे हैं।

Multidimensional Poverty Index:

  • बहुआयामी गरीबी सूचकांक (Multidimensional Poverty Index) संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और ऑक्सफोर्ड गरीबी एवं मानव विकास पहल (OPHI) द्वारा 2010 में शुरू किया गया था।
  • गरीबी का आकलन आय या व्यय (income or expenditure) के स्तर पर निर्भर करता है।
  • लेकिन MPI- स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर को कवर करने वाले संकेतकों का उपयोग करके गरीबी निर्धारित करता है, यह बहुआयामी (multidimensional) क्षेत्रों को ध्यान मे रखकर गरीबी की एक अधिक सूक्ष्म समझ प्रदान करता है।
  • यदि कोई व्यक्ति भारित संकेतकों के एक-तिहाई या उससे अधिक में वंचित है, तो उसे बहुआयामी (multidimensionally) रूप से गरीब माना जाता है। अत्यधिक बहुआयामी गरीबी उन लोगों के लिए लागू होती है जो भारित संकेतकों के आधे या उससे अधिक में वंचित हैं।

भारत में MPI की गणना (Calculation of MPI in India):

भारत में MPI की गणना नीति आयोग (NITI Aayog), OPHI और UNDP के सहयोग से की जाती है।

  1. बहुआयामी गरीबी की घटना / Incidence of Multidimensional Poverty (H): यह दर्शाता है कि कुल जनसंख्या में कितने लोग बहुआयामी (multidimensionally) रूप से गरीब हैं। इसे प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है।
  2. गरीबी की तीव्रता / Intensity of Poverty (A): यह मापता है कि गरीब व्यक्तियों द्वारा अनुभव किए गए अभाव का औसत स्तर क्या है।
  3. MPI मूल्य: MPI मूल्य घटना (incidence) (H) और तीव्रता (intensity) (A) को गुणा करके प्राप्त किया जाता है।

यह मापता है कि बहुआयामी गरीबी कितनी व्यापक और गहरी है।

स्वतंत्रता के बाद गरीबी मापन (Poverty Measurement after Independence):

स्वतंत्रता के बाद, विभिन्न समितियों और समूहों ने गरीबी मापन के तरीकों के विकास में योगदान दिया।

योजना आयोग विशेषज्ञ समूह (Planning Commission Expert Group) 1962: ग्रामीण क्षेत्रों के लिए ₹20 और शहरी क्षेत्रों के लिए ₹25 प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष की अलग-अलग गरीबी रेखाएँ शुरू कीं।

वी.एम. दांडेकर और एन. राठ (V.M. Dandekar and N. Rath)1971: गरीबी रेखा के लिए प्रति दिन 2250 कैलोरी प्रदान करने वाले खर्च से निर्धारित करने का सुझाव दिया, जिससे जीविका के न्यूनतम मानदंड से हटकर एक नया मानदंड आया।

आलाग समिति (Alag Committee) 1979: योजना आयोग द्वारा गठित कार्य बल ने मुद्रास्फीति के लिए गरीबी अनुमान को समायोजित किया और पोषण आवश्यकताओं के आधार पर गरीबी रेखाओं की गणना की।

लक्षद्वाला समिति (Lakshdwala Committee) 1993: राज्य-विशिष्ट गरीबी रेखाओं को पेश किया और राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी पर आधारित माप को बंद कर दिया।

तेंदुलकर समिति (Tendulkar Committee) 2009: कैलोरी खपत से हटकर एक व्यापक आइटम सेट पर ध्यान केंद्रित किया और एक समान गरीबी रेखा पेश की। निजी खर्चों के लिए समायोजित किया और गरीबी रेखाओं को अपडेट करने के लिए एक नई विधि की सिफारिश की।

रंगराजन समिति (Tendulkar Committee) 2014: समिति ने पोषण और सामान्य खपत पैटर्न दोनों पर विचार करते हुए गरीबी रेखा का सुझाव दिया।

  • गरीबी रेखा (2011-12): ग्रामीण क्षेत्रों में ₹32 प्रति दिन और शहरी क्षेत्रों में ₹47 प्रति दिन।
  • तेंदुलकर समिति के फार्मूले की तुलना में, ग्रामीण क्षेत्रों में 19% और शहरी क्षेत्रों में 41% अधिक गरीबों की संख्या का अनुमान लगाया गया।

पीएम मोदी ने डिजिटलीकरण के उपयोग को बढ़ावा दिया (PM Modi promotes use of digitalisation):

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने JAM पहल – जन धन, आधार और मोबाइल के माध्यम से डिजिटलीकरण के उपयोग को बढ़ावा दिया है। इसके तहत लोगों को अपना बैंक खाता खोलने के लिए प्रोत्साहित किया गया है और हर खाते को आधार से जोड़ा गया है।

2009 में, भारत में केवल 17 प्रतिशत वयस्कों (adults) के पास बैंक खाते थे, 15 प्रतिशत डिजिटल भुगतान (digital payments) करते थे, 25 में से एक के पास एक विशिष्ट पहचान दस्तावेज (unique identity document) था और लगभग 37 प्रतिशत के पास मोबाइल फोन (mobile) थे।

ये संख्याएँ तेजी से बढ़ी हैं और आज, टेलीडेंसिटी (teledensity) 93 प्रतिशत तक पहुँच गई है, एक अरब से अधिक लोगों के पास डिजिटल आईडी दस्तावेज़ (digital ID documents) हैं और 80 प्रतिशत से अधिक लोगों के पास बैंक खाते (bank accounts) हैं। 2022 तक, प्रति माह 600 करोड़ से अधिक डिजिटल भुगतान लेनदेन (digital payment transactions) पूरे किए गए।

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