Pollution Control Board is now authorized to impose environmental compensation
Pollution Control Board is now authorized to impose environmental compensation –
संदर्भ:
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (PCB) को जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 तथा वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत प्रदूषण फैलाने वाले इकाइयों पर पर्यावरणीय मुआवजा लगाने का विधिक अधिकार प्राप्त है।
निर्णय की प्रमुख विशेषताएँ:
- पुनर्स्थापन (Restoration): न्यायालय ने ज़ोर दिया किप्रदूषित वायु और जल स्रोतों को उनके मूल और शुद्ध स्वरूप में पुनर्स्थापित करनाही लक्ष्य होना चाहिए।
- वैधानिक अधिकार (Statutory Authority):
- प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (PCB) मुआवज़ा या क्षतिपूर्ति (restitutionary/compensatory damages) वसूल सकता है— Post
- facto: जब पर्यावरण को पहले ही नुकसान हो चुका हो।
- Ex-ante: संभावित नुकसान को रोकने के लिए पहले से।
- लागू धाराएँ (Sections Invoked):
- धारा 33A – जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974
- धारा 31A – वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1981
ये धाराएँ PCB को आर्थिक निर्देशों सहित प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों को आदेश देने का अधिकार देती हैं।
यह अधिकार पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 5 के समान है।
- विधायिका को निर्देश (Direction to the Legislature):
- ये शक्तियाँ तभी प्रयोग की जा सकती हैं जब उपविधि बनाई गई हो।
- ये नियम प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करते हों।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थापित कानूनी सिद्धांत:
- पुनर्स्थापनात्मक बनाम दंडात्मक हर्जाना (Restitutionary vs Punitive Damages):
- पुनर्स्थापनात्मक हर्जाना: पर्यावरण को उसके मूल या लगभग मूल स्थिति में लाने पर केंद्रित होता है।
- दंडात्मक हर्जाना: उल्लंघन करने वाले को दंडित करने के उद्देश्य से लगाया जाता है।
- न्यायालय की स्पष्टता: दोनों प्रकार के हर्जाने अलग-अलग उपाय हैं और इन्हें पृथक रूप से माना जाना चाहिए।
- प्रदूषण फैलाने वाला भुगतान करे सिद्धांत (Polluter Pays Principle):
- इसे भारतीय पर्यावरणीय कानून में एक संवैधानिक और वैधानिक दायित्व के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- न्यायालय ने दोहराया कि प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को ही क्षति की भरपाई और पर्यावरण की बहाली का खर्च उठाना होगा।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB)
स्थापना:
- 1974 में, जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के तहत।
- बाद मेंवायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के अंतर्गत इसके अधिकारों का विस्तार किया गया।
भूमिका:
- भारत में प्रदूषण नियंत्रण की शीर्ष संस्था (Apex Body) है।
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत यह पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को तकनीकी सहायता प्रदान करती है।
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCBs)
स्थापना: राज्य सरकारों द्वारा जल अधिनियम, 1974 की धारा 4 और वायु अधिनियम, 1981 के तहत की जाती है।
भूमिका: अपने राज्य में पर्यावरणीय कानूनों को लागू करना और CPCB द्वारा जारी दिशा–निर्देशों का पालन सुनिश्चित करना।
संरचना: सदस्यों का नामांकन संबंधित राज्य सरकार द्वारा किया जाता है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले में उद्धृत प्रमुख निर्णय:
- वेल्लोर सिटिज़न्स वेलफेयर फोरम बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1996): इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरणीय पुनर्स्थापन (Environmental Restitution) को संविधानिक और वैधानिक जिम्मेदारी माना था, न कि केवल दंडात्मक कार्रवाई।
- इंडियन काउंसिल फॉर एनवायरो–लीगल एक्शन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1996): इस फैसले में भी कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि पर्यावरणीय हानि की भरपाई करना प्रदूषक की ज़िम्मेदारी है और यह “Polluter Pays Principle” के तहत आता है।
- दोनों मामलों में प्रमुख सिद्धांत:
- पर्यावरणीय पुनर्स्थापन को कानूनी दायित्व माना गया।
- “प्रदूषक भुगतान करे सिद्धांत”को न्यायिक मान्यता दी गई।
- यह सिद्ध किया गया कि पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई करना आवश्यक है, भले ही वह दंडात्मक कार्रवाई न हो।