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मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक अधिनियम, 2002 (Prevention of Money Laundering Act 2002)

Prevention of Money Laundering Act 2002

संदर्भ:

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) पर वर्ष 2022 में दिए गए अपने निर्णय की समीक्षा प्रक्रिया शुरू की है, जिसमें प्रवर्तन निदेशालय (ED) को व्यापक अधिकार प्रदान किए गए थे।

मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक अधिनियम, 2002 (PMLA)

अधिनियम का परिचय:

  • पूर्ण नाम: मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक अधिनियम, 2002 (Prevention of Money Laundering Act, 2002 – PMLA)
  • लागू तिथि: 1 जुलाई 2005
  • उद्देश्य:
    • मनी लॉन्ड्रिंग और संबंधित वित्तीय अपराधों से निपटने के लिए एक विधायी ढांचा प्रदान करना।
  • विधान:
    • यह अधिनियम भारतीय संसद द्वारा पारित किया गया था।
    • अधिनियम का मुख्य उद्देश्य अवैध धन के शोधन को रोकना और शोधन किए गए धन से अर्जित संपत्ति को जब्त करना है।

मुख्य उद्देश्य:

  1. मनी लॉन्ड्रिंग की रोकथाम और नियंत्रण: अवैध वित्तीय लेन-देन पर रोक लगाने के लिए कड़े प्रावधान।
  2. अवैध संपत्ति की जब्ती और कुर्की: शोधन किए गए धन से अर्जित संपत्ति को कुर्क और जब्त करना।
  3. मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े मुद्दों का समाधान: मनी लॉन्ड्रिंग से उत्पन्न वित्तीय अनियमितताओं को दूर करना।

न्यायिक समीक्षा के अधीन प्रमुख मुद्दे (PMLA)

  1. प्रवर्तन मामले की जानकारी रिपोर्ट (ECIR) तक पहुंच:
  • ECIR का स्वरूप: मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में ECIR को एफआईआर के समान माना जाता है।
  • पारदर्शिता की कमी: ECIR की प्रतिलिपि आरोपी को नहीं दी जाती, जिससे पारदर्शिता में कमी आती है।
  • उच्चतम न्यायालय का रुख (2022): सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) को ECIR साझा न करने के विवेकाधिकार को बरकरार रखा।
  • विपरीत निर्णय (हालिया): एक अन्य सुप्रीम कोर्ट निर्णय में कहा गया कि ECIR की प्रतिलिपि साझा की जानी चाहिए, जिससे पुनर्विचार की आवश्यकता उत्पन्न हुई।
  • मूलभूत अधिकारों का हनन: ECIR न मिलने से आरोपी की कानूनी रक्षा में बाधा आती है, जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
  1. आरोपी पर प्रमाण का भार:
  • आरोपी का दायित्व: PMLA के तहत प्रमाण का भार आरोपी पर स्थानांतरित हो जाता है, अर्थात आरोपी को अपनी निर्दोषता साबित करनी होती है।
  • न्यायिक दृष्टिकोण: यह सिद्धांत प्राकृतिक न्याय और निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार के विपरीत माना जाता है।
  • संवैधानिक समीक्षा: सुप्रीम कोर्ट इस प्रावधान की पुनर्विचार कर सकता है ताकि इसे संवैधानिक सुरक्षा के अनुरूप बनाया जा सके।
  1. PMLA का विस्तारित दायरा:
  • परिभाषा का विस्तार: संशोधनों ने मनी लॉन्ड्रिंग की परिभाषा को व्यापक बना दिया है।
  • अन्य कानूनों के तहत अपराध: अब PMLA के तहत कई कानूनों के अंतर्गत आने वाले आपराधिक कृत्यों को भी शामिल किया गया है।
  • अनुपालन का बढ़ा बोझ: इससे कंपनियों और व्यक्तियों पर अतिरिक्त अनुपालन का दबाव बढ़ गया है।
  • दुरुपयोग की आशंका: व्यापक परिभाषा से अधिनियम के दुरुपयोग की संभावना बढ़ जाती है।

निष्कर्ष: इन प्रमुख मुद्दों पर न्यायिक समीक्षा से PMLA के प्रावधानों में संवैधानिकता और न्यायिक संतुलन लाने का प्रयास किया जा रहा है। अदालत के निर्णयों का प्रभाव आरोपियों के मौलिक अधिकारों और विधिक प्रक्रिया की पारदर्शिता पर पड़ेगा।

 

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