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निवारक निरोध मामलों में बंदियों के अधिकार

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13 सितंबर 2024 को, सुप्रीम कोर्ट ने जसीला शाजी बनाम भारत संघ मामले में निवारक निरोध के खिलाफ प्रभावी प्रतिनिधित्व करने के लिए बंदियों के अधिकारों पर महत्वपूर्ण निर्णय दिया। निवारक निरोध का अर्थ है किसी व्यक्ति को बिना परीक्षण के हिरासत में रखना।

फैसले की मुख्य बातें:

  • हिरासत की जानकारी: हिरासत में लिए गए व्यक्ति को हिरासत के आधार और आवश्यक दस्तावेजों की जानकारी प्रदान करने का अधिकार है।
  • दस्तावेजों की विफलता: यदि दस्तावेजों की प्रस्तुतिकरण में विफलता या देरी होती है, तो यह संविधान के अनुच्छेद 22(5) के तहत प्रभावी प्रतिनिधित्व के अधिकार का उल्लंघन माना जाएगा।
  • अनुच्छेद 22(5): इस अनुच्छेद के तहत, हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी को बंदी को शीघ्र सूचित करना होगा कि उसे किस आधार पर हिरासत में लिया गया है, और हिरासत आदेश के खिलाफ अभ्यावेदन का अवसर प्रदान करना होगा।

निवारक निरोध का कानूनी आधार:

  • अनुच्छेद 22(3): यह अनुच्छेद प्राधिकारियों को निवारक कारणों, जैसे सार्वजनिक व्यवस्था या राष्ट्रीय सुरक्षा बनाए रखने के लिए व्यक्तियों को हिरासत में लेने की अनुमति देता है।

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संविधान द्वारा प्रदान की गई सुरक्षा उपाय:

  • अधिकतम अवधि: किसी भी निवारक निरोध कानून के तहत हिरासत की अवधि तीन महीने से अधिक नहीं होनी चाहिए, जब तक कि सलाहकार बोर्ड इसकी मंजूरी न दे।
  • सूचना: निवारक निरोध के आधार की सूचना शीघ्रता से दी जानी चाहिए।
  • अभ्यावेदन का अवसर: बंदियों को शीघ्रता से अभ्यावेदन करने का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए।

निवारक निरोध के लिए प्रचलित कानून:

  • राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980
  • गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन अधिनियम, 1967
  • विदेशी मुद्रा संरक्षण और तस्करी गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम (COFEPOSA), 1974

कालाबाजारी निवारण एवं आवश्यक वस्तु आपूर्ति रखरखाव अधिनियम (पीबीएमएसईसीए), 1980

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