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भारत छोड़ो आंदोलन दिवस 2024

Quit India Movement

चर्चा में क्यों ?

भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) दिवस 2024, 8 अगस्त 1942 को शुरू हुए महत्वपूर्ण ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की याद में मनाया जाता है।

हर साल 9 अगस्त को पूरे देश में भारत छोड़ो आंदोलन दिवस मनाया जाता है। इस दिन को महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता सेनानियों के साहसिक प्रयासों और उनके भारत की आजादी की राह पर प्रभाव को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है।

मुख्य बिन्दु (Key Points):

  • अन्य नाम (Other Names): अगस्त क्रांति (August Revolution)
  • स्थान (Location): बंबई (Bombay)
  • प्रस्ताव (Resolution): अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) द्वारा भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित किया गया।
  • प्रस्ताव तारीख (Resolution date): 8 अगस्त 1942मुख्य नेता
  • (Main Leader): महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi)
  • महत्वपूर्ण घटना (नारा/Slogan): “करो या मरो” (“Do or Die”)
  • शुरुआत का वास्तविक दिन (Actual date of starting): 9 अगस्त
  • उद्देश्य (Objective): ब्रिटिश शासन का अंत और भारत को पूर्ण स्वतंत्रता दिलाना
  • मुख्य परिणाम (Main Outcome): स्वतंत्रता संग्राम में तेजी और ब्रिटिश सरकार को भारत छोड़ने के लिए मजबूर करना

भारत छोड़ो आंदोलन दिवस का ऐतिहासिक संदर्भ (Historical Context of Quit India Movement Day)

Quit India Movement Day

भारत छोड़ो आंदोलन, जिसे ‘अगस्त क्रांति’ (‘August Revolution’) के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे महत्वपूर्ण और निर्णायक आंदोलनों में से एक था। यह आंदोलन द्वितीय विश्व युद्ध (Second World War) के दौरान, 8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी के नेतृत्व ( leadership of Mahatma Gandhi) में शुरू हुआ था।

भारत छोड़ो आंदोलन के प्रमुख कारण (Major reasons for the Quit India Movement)

  1. स्वशासन के वादों में विफलता (Failure in promises of self-rule): ब्रिटिश सरकार ने भारत को स्वशासन देने के अपने वादों को पूरा करने में असफलता दिखाई, जिससे भारतीय जनता निराश और असंतुष्ट हो गई। और भारतीयों को लगने लगा कि उन्हें अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए खुद संघर्ष करना होगा।
  2. सत्ता हस्तांतरण में अनिच्छा (Reluctance to transfer power): हालांकि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार को भारत का समर्थन मिला, फिर भी वे सत्ता का हस्तांतरण सहजता से नहीं करना चाहते थे।
  3. बढ़ता राष्ट्रवाद (Growing Nationalism): भारत छोड़ो आंदोलन के प्रमुख कारणों में से एक था। इस भावना ने भारतीय जनता को ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष के लिए प्रेरित किया।
  • भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई कई दशकों से चल रही थी, और इस दौरान राष्ट्रवादी भावनाएं तीव्र होती गईं। लोग ब्रिटिश शासन से थक चुके थे और स्वाधीनता की ओर दृढ़ संकल्पित हो गए थे।
  • 1942 तक, राष्ट्रवादी आंदोलन ने भारतीय जनता को एकजुट किया और सक्रिय किया। भारत छोड़ो आंदोलन में लोगों की भागीदारी ने इस भावना को और मजबूत किया।
  • 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलनों में लोगों ने पूरी तत्परता के साथ भाग लिया। किसान सभा आंदोलनों ने भी साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ संघर्ष की दिशा तैयार की।
  • 1937-39 के बीच कांग्रेस शासन के दौरान स्वशासन का अनुभव लोगों ने किया था, जिसने उन्हें और अधिक स्वतंत्रता की मांग करने के लिए प्रेरित किया।
  1. अगस्त प्रस्ताव और क्रिप्स मिशन की असफलता (Failure of August proposal and Cripps Mission): अगस्त प्रस्ताव और क्रिप्स मिशन भारतीय राष्ट्रवादियों की मांगों को पूरा करने में असफल रहे, जिससे आंदोलन और तीव्र हो गया।
  2. असंतोष और आर्थिक संकट (Discontent and economic crisis): युद्ध के कारण भारत में भारी आर्थिक संकट (economic crisis) उत्पन्न हो गया था। खाद्य सामग्री की कमी ( Food shortages), महंगाई और बेरोजगारी (inflation and unemployment) ने आम जनता के जीवन को मुश्किल बना दिया। ब्रिटिश सरकार की नीतियों से जनता में असंतोष और भी गहरा हो गया।
  3. मुस्लिम लीग और पाकिस्तान की मांग (Muslim League and Demand for Pakistan): मुस्लिम लीग द्वारा पाकिस्तान की मांग को ब्रिटिश समर्थन (British support) मिलने से भारतीय राष्ट्रवादी, विशेषकर महात्मा गांधी, और अधिक नाराज हो गए।
  4. गांधीजी का नेतृत्व और दृष्टिकोण(Gandhiji’s Leadership and Vision): महात्मा गांधी का मानना था कि अब समय आ गया है कि भारतीय जनता को स्वतंत्रता के लिए अंतिम और निर्णायक संघर्ष करना चाहिए। उनके “करो या मरो” (Do or Die) नारे ने देशभर में जोश भर दिया और जनता को स्वतंत्रता के लिए एकजुट कर दिया।

भारत छोड़ो आंदोलन की प्रमुख घटनाएँ (Major Events of Quit India Movement):

  1. नेताओं की गिरफ्तारी (Arrest of leaders): भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत के कुछ घंटों के भीतर ही ब्रिटिश सरकार ने प्रमुख नेताओं, जैसे महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi), जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru), और सरदार वल्लभभाई पटेल (Sardar Vallabhai Patel) को तुरंत गिरफ्तार कर लिया।
  2. जन विरोध और हड़तालें (Mass protests and strikes): देशभर में लोगों ने हड़तालें (strikes), प्रदर्शन (demonstrations), और सविनय अवज्ञा के कार्यों का आयोजन किया। सरकारी इमारतों, रेलवे स्टेशनों, और संचार लाइनों को निशाना बनाया गया।
  3. महिलाओं और छात्रों की भूमिका (Role of women and students): महिलाओं और छात्रों (Women and students) ने आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने प्रदर्शनों में भाग लिया और जनता का समर्थन जुटाने में सक्रिय भूमिका निभाई।
  4. ब्रिटिश दमन (British repressive measures): ब्रिटिश सरकार ने इस आंदोलन को दमन के साथ कुचलने के लिए तुरंत कठोर कदम उठाए। सेना तैनात की गई, कर्फ्यू लागू किया गया, और बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियाँ की गईं। हजारों लोग मारे गए, घायल हुए, या जेल में डाले गए।

भारत छोड़ो आंदोलन का महत्व (Significance of Quit India Movement)

  1. स्वतंत्रता संग्राम की दिशा बदलना (Changing the direction of the freedom struggle): भारत छोड़ो आंदोलन ने स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। इस आंदोलन ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ व्यापक जन समर्थन ( public support) को उजागर किया और इसे स्वतंत्रता संग्राम का एक निर्णायक मोड़ बनाया।
  2. जन जागरूकता और एकता (Public awareness and unity): इस आंदोलन ने भारतीय जनता को एकजुट किया और उन्हें स्वतंत्रता की ओर संकल्पित (determined towards independence) किया। लोगों ने विभिन्न जातियों, धर्मों और वर्गों से एकजुट होकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष किया।
  3. ब्रिटिश सरकार की असहायता (Helplessness of the British government): आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को यह एहसास दिलाया कि उनका शासन अब भारत में लंबे समय तक नहीं चल सकता। आंदोलन के दबाव में ब्रिटिश सरकार ने स्वतंत्रता की दिशा में कदम बढ़ाने पर विचार किया।
  4. नेतृत्व का महत्व (Importance of leadership): महात्मा गांधी के नेतृत्व में इस आंदोलन ने दिखाया कि अहिंसात्मक संघर्ष (non-violent struggle) के बावजूद बड़े पैमाने पर परिवर्तन संभव है। गांधीजी के “करो या मरो” (Do or Die”) नारे ने देश को स्वतंत्रता के लिए प्रेरित किया।
  5. राजनीतिक परिवर्तन (Political Changes): आंदोलन के परिणामस्वरूप, भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण बदलाव हुए। कांग्रेस पार्टी और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों की मांगों को मानते हुए ब्रिटिश सरकार ने भारत के स्वतंत्रता की प्रक्रिया को तेज किया।
  6. साम्राज्यवादी नीतियों का विरोध (Opposition to Imperialist Policies): इस आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद (British imperialism) की नीतियों का विरोध किया और भारतीय जनता की आज़ादी की मांग को मजबूती दी। इसने साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ एक प्रभावी जन आंदोलन को जन्म दिया।
  7. स्वतंत्रता की ओर तेजी (Acceleration towards Independence): भारत छोड़ो आंदोलन ने स्वतंत्रता की दिशा में तेजी लाई और अंततः 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय था।
महत्वपूर्ण व्यक्तित्व (Important Personalities) कार्य (Work)
महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ब्रिटिश शासन के खिलाफ अहिंसात्मक संघर्ष का नेतृत्व किया।
जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) जेल में रहते हुए भी आंदोलन को प्रोत्साहित किया और स्वतंत्रता की दिशा में प्रयास किए।
सरदार वल्लभभाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) विभिन्न क्षेत्रों में आंदोलन को समर्थन और दिशा देने का कार्य किया।
सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए विदेशी समर्थन जुटाने का प्रयास किया।
अरुणा आसफ अली (Aruna Asaf Ali) आंदोलन के प्रचार और महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा दिया।
बिपिन चंद्र पाल (Bipin Chandra Pal) आंदोलन के विचारधारा को बढ़ावा दिया और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया।
कस्तूरबा गांधी (Kasturba Gandhi) महिलाओं और सामाजिक सुधारों के लिए संघर्ष किया और आंदोलन के दौरान महत्वपूर्ण योगदान दिया।

भारत छोड़ो आंदोलन की चुनौतियाँ (Challenges of Quit India Movement)

उद्देश्य पूरे नहीं हुए (Objectives not achieved): आंदोलन के तुरंत बाद भारत को स्वतंत्रता नहीं मिली। स्वतंत्रता पाने के लिए कई वर्षों तक संघर्ष और बातचीत चलती रही।

केंद्रीय नेतृत्व की कमी (Lack of central leadership): नेताओं की गिरफ्तारी के कारण आंदोलन का केंद्रीय नेतृत्व नहीं था, जिससे समन्वय और निर्णय (coordination and decision) लेने में कठिनाई आई और आंदोलन में भ्रम और विघटन हुआ।

आम सहमति की कमी (Lack of consensus): कई राजनीतिक दल और नेता आंदोलन के खिलाफ थे।

  • मुस्लिम लीग (Muslim League), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (Communist Party of India), और हिंदू महासभा (Hindu Mahasabha)ने इस आंदोलन का विरोध किया।
  • बी.आर. अंबेडकर और पेरियार (R. Ambedkar and Periyar) भी इसके खिलाफ थे।

सांप्रदायिक विभाजन (Communal division): आंदोलन में मुसलमानों की भागीदारी कम थी।

  • जिन्ना (Jinnah) ने मुसलमानों को सशस्त्र बलों (armed forces) में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।
  • मुस्लिम लीग ने इस समय का उपयोग अपने समर्थन को बढ़ाने के लिए किया, जिससे अंततः भारत का विभाजन हुआ।

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