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राव बहादुर महादेव विश्वनाथ धुरंधर (Rao Bahadur Mahadev Vishwanath Dhurandhar) | Apni Pathshala

Rao Bahadur Mahadev Vishwanath Dhurandhar

Rao Bahadur Mahadev Vishwanath Dhurandhar

संदर्भ:

राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय (NGMA), मुंबई ने प्रसिद्ध भारतीय चित्रकार राव बहादुर महादेव विश्वनाथ धुरंधर (M. V. Dhurandhar) के जीवन और कला पर केंद्रित एक महत्वपूर्ण पुस्तक का विमोचन किया है। संदीप दहिसरकर द्वारा लिखित, “Rao Bahadur M. V. Dhurandhar: A Painter from the Bombay School of Art” शीर्षक वाली यह पुस्तक उनके व्यापक कलात्मक योगदान का दस्तावेजीकरण करती है। 

राव बहादुर महादेव विश्वनाथ धुरंधर का परिचय:

  • महादेव विश्वनाथ धुरंधर का जन्म 18 मार्च 1867 को कोल्हापुर, महाराष्ट्र के एक ‘पाथरे प्रभु’ परिवार में हुआ।
  • उन्होंने अपनी प्रारंभिक कला शिक्षा कोल्हापुर के राजाराम हाई स्कूल में ली और बाद में 1890 में मुंबई के प्रसिद्ध सर जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट (Sir J. J. School of Art) में प्रवेश लिया।
  • प्वे राजा रवि वर्मा की शैली और अबलाल रहमान के जलरंगों से अत्यधिक प्रेरित थे। 
  • धुरंधर की कला शैली को अकादमिक यथार्थवाद (Academic Realism) कहा जाता है, जिसमें यूरोपीय तकनीक और भारतीय संवेदनाओं का अनूठा मेल था।
  • उन्होंने पश्चिमी तेल चित्रण (Oil Painting) और शरीर रचना (Anatomy) के सूक्ष्म चित्रण में महारत हासिल की थी।
  • उनके चित्रों में हिंदू पौराणिक कथाओं, ऐतिहासिक घटनाओं (विशेषकर शिवाजी महाराज के जीवन) और तत्कालीन मुंबई के सामाजिक जीवन का सजीव चित्रण मिलता है।
  • वे सर जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट से शिक्षक के रूप में जुड़े और 1930 में इस प्रतिष्ठित संस्थान के पहले भारतीय निदेशक बने।
  • उन्होंने अपनी आत्मकथा “कलामंदिरातील एक्केचाळीस वर्षे” (Kalamandiratil Ekkechalis Varshe) लिखी, जो तत्कालीन कला जगत का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज है।
  • उन्होंने ऑटो रोथफेल्ड की पुस्तक “Women of India” (1920) और फारसी कवि उमर खय्याम की “रुबाइयात” के लिए शानदार चित्रण किए। 
  • उनके चित्र तत्कालीन भारतीय वेशभूषा, रीति-रिवाजों और सामाजिक संरचना (विशेषकर महिलाओं की स्थिति) को समझने के लिए प्राथमिक स्रोत माने जाते हैं। 

पुरस्कार:

  • राव बहादुर (Rao Bahadur): कला के प्रति उनकी निष्ठा और योगदान के लिए 1927 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘राव बहादुर’ की उपाधि से सम्मानित किया।
  • बॉम्बे आर्ट सोसाइटी गोल्ड मेडल: 1895 में अपने प्रसिद्ध चित्र ‘Have You Come Laxmi?’ के लिए वे यह स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय बने।
  • रॉयल सोसाइटी ऑफ आर्ट्स: 1938 में उन्हें लंदन की रॉयल सोसाइटी ऑफ आर्ट्स (FRSA) का फेलो चुना गया।

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