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रेगुलेटरी एसेट्स (Regulatory Assets) | Ankit Avasthi Sir

Regulatory Assets

Regulatory Assets

संदर्भ:

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि राज्य विद्युत विनियामक आयोग (SERCs) और वितरण कंपनियाँ (DISCOMs) अपनी जमा हुई रेगुलेटरी एसेट्स (Regulatory Assets) को एक निश्चित समयसीमा के भीतर निपटाएँ।

रेगुलेटरी एसेट्स (Regulatory Assets):

परिभाषा

  • रेगुलेटरी एसेट्स बिजली वितरण कंपनियों (DISCOMs) केराजस्व घाटे को दर्शाते हैं।
  • यह घाटा तब होता है जबAverage Cost of Supply (ACS) यानी बिजली सप्लाई करने की वास्तविक लागत, Annual Revenue Requirement (ARR) यानी उपभोक्ताओं से वसूली गई दर और राज्य सरकार की सब्सिडी से ज़्यादा हो जाता है।

मुख्य शब्दावली

  • Average Cost of Supply (ACS):डिस्कॉम द्वारा एक यूनिट बिजली उपलब्ध कराने की वास्तविक लागत।
  • Annual Revenue Requirement (ARR):उपभोक्ता टैरिफ़ + राज्य सरकार की सब्सिडी से प्राप्त राजस्व।

कैसे बनते हैं रेगुलेटरी एसेट्स?

  • यदि ACS > ARR, तो हर यूनिट पर DISCOM को घाटा होता है।
  • उपभोक्ताओं पर अचानक बिजली दर (Tariff) बढ़ाने का दबाव न पड़े, इसलिए नियामक संस्थाएँ इस घाटे को स्थगित लागत मानकर भविष्य में वसूलने की अनुमति देती हैं।
  • इस Deferred Cost को हीRegulatory Asset कहा जाता है, जिसे बाद में ब्याज सहित रिकवर किया जा सकता है।

उदाहरण

  • यदिACS = ₹7.20 प्रति यूनिट और ARR = ₹7.00 प्रति यूनिट है, प्रति यूनिट घाटा = ₹0.20।
  • यदि कुल 10 अरब (10 Billion) यूनिट बिजली दी गई → घाटा = ₹2,000 करोड़।
  • इस घाटे को तुरंत वसूलने के बजाय रेगुलेटरी एसेट्स के रूप में दर्ज किया जाएगा।

एसीएसएआरआर (ACS–ARR) अंतर के कारण:

  1. दबाए हुए टैरिफ: सामाजिक या चुनावी कारणों से बिजली की कीमतें वास्तविक लागत से कम रखी जाती हैं।
  2. सरकारी सब्सिडी में देरी: किसानों या कमजोर वर्गों को दी जाने वाली सब्सिडी समय पर जारी नहीं होती।
  3. इनपुट लागत में उतारचढ़ाव: कोयले और ईंधन की कीमतों में अस्थिरता से उत्पादन लागत बढ़ जाती है।
  4. तकनीकी और वाणिज्यिक हानियां: बिजली चोरी, गलत बिलिंग और ट्रांसमिशन की अक्षमताओं से राजस्व घाटा बढ़ता है।

नियामक परिसंपत्तियों (Regulatory Assets) के प्रभाव

उपभोक्ताओं पर (For Consumers):

  1. अल्पकालिक लाभ (Short-term Benefit):उपभोक्ताओं को शुरू में स्थिर टैरिफ का फायदा मिलता है।
  2. दीर्घकालिक बोझ (Long-term Burden):भविष्य में स्थगित वसूली के कारण अचानक अधिक टैरिफ वृद्धि करनी पड़ती है, जिसमें ब्याज भी जुड़ जाता है।

डिस्कॉम्स पर (For DISCOMs):

  1. नकदी प्रवाह की समस्या (Cash-flow Problems):नियामक परिसंपत्तियों के बढ़ने से डिस्कॉम्स को बिजली उत्पादकों को भुगतान करने में कठिनाई होती है।
  2. वित्तीय दबाव (Financial Stress):भुगतान के लिए अधिक उधारी लेनी पड़ती है, जिससे वित्तीय बोझ बढ़ता है।
  3. निवेश में बाधा (Hindrance to Investment):तरलता की कमी से बुनियादी ढांचे, नवीकरणीय ऊर्जा और ग्रिड आधुनिकीकरण में निवेश प्रभावित होता है।

वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ:

Regulated Asset Base (RAB) मॉडल

  • इस मॉडल में यूटिलिटी कंपनियों को टैरिफ के जरिए अपने निवेश की रिकवरी और सुनिश्चित रिटर्न की अनुमति मिलती है।
  • इससे लंबी अवधि के लिएराजस्व की स्थिरता बनी रहती है।

UK का RIIO Framework: (Revenue = Incentives + Innovation + Outputs)

  • राजस्व कोप्रदर्शन लक्ष्यों (जैसे विश्वसनीयता, सेवा गुणवत्ता और कार्बन उत्सर्जन में कमी) से जोड़ा जाता है।
  • इसका उद्देश्यकुशलता और नवाचार को बढ़ावा देना है।

Digital Infrastructure (डिजिटल अवसंरचना)

  • स्मार्ट ग्रिडऔर India Energy Stack जैसे सिस्टम, संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और efficiency-based recovery को मजबूत कर सकते हैं।

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