Restoration of the statehood
Restoration of the statehood –
संदर्भ:
जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा वापस देने की मांग एक बार फिर सुर्खियों में है। इस मुद्दे को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में 8 अगस्त को सुनवाई होनी थी। यह याचिका जम्मू-कश्मीर के प्रोफेसर जहूर अहमद भट्ट और सामाजिक कार्यकर्ता खुर्शीद अहमद मलिक ने दाखिल की है। याचिकाकर्ताओं ने केंद्र सरकार को तय समयसीमा में जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने का निर्देश देने की मांग की है। यह मामला न केवल संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा है, बल्कि जम्मू-कश्मीर के लोगों की राजनीतिक आकांक्षाओं और आत्मनिर्णय के सवाल को भी केंद्र में लाता है।
क्या होता है ‘पूर्ण राज्य’ का दर्जा?
‘पूर्ण राज्य’ का दर्जा वह संवैधानिक मान्यता है, जिसके तहत किसी क्षेत्र को स्वशासित राज्य के रूप में स्थापित किया जाता है। इसे स्वतंत्र विधायिका (विधानसभा), कार्यपालिका (मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद), तथा व्यापक वित्तीय और विधायी अधिकार प्राप्त होते हैं।
भारत में प्रशासनिक दृष्टि से दो प्रमुख व्यवस्थाएं हैं:
- पूर्ण राज्य– जहां जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनती है और स्थानीय सरकार नीतियां तय करती है।
- केंद्रशासित प्रदेश– जहां अधिकतर अधिकार केंद्र सरकार के अधीन होते हैं और शासन-प्रशासन की जिम्मेदारी केंद्र द्वारा नियुक्त उपराज्यपाल या प्रशासक के पास होती है। कई केंद्रशासित प्रदेशों में तो विधानसभा भी नहीं होती।
कैसे मिलता है पूर्ण राज्य का दर्जा?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के अंतर्गत केंद्र सरकार को यह अधिकार प्राप्त है कि वह किसी क्षेत्र को पूर्ण राज्य का दर्जा दे सके। प्रक्रिया इस प्रकार होती है:
- सबसे पहले गृह मंत्रालय उस क्षेत्र की ज़मीनी स्थिति, जनता की भावना, प्रशासनिक आवश्यकताओं और नेताओं की राय को ध्यान में रखते हुए एक प्रस्ताव तैयार करता है।
- इसके बाद संसद में एक विधेयक लाया जाता है, जिसमें सीमाओं में बदलाव, नाम परिवर्तन या नया राज्य बनाए जाने का प्रस्ताव होता है।
- लोकसभा और राज्यसभा में यह विधेयक साधारण बहुमत से पारित होना आवश्यक होता है।
- अंतिम मंजूरी राष्ट्रपति द्वारा दी जाती है, जिसके बाद संबंधित क्षेत्र को संवैधानिक रूप से पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त हो जाता है।
जम्मू–कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने से क्या होंगे बड़े बदलाव?
- यदि जम्मू-कश्मीर को पुनः पूर्ण राज्य का दर्जा मिलता है, तो वहां शासन-प्रशासन में निम्नलिखित बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे:
- विधायी शक्तियों का विस्तार: राज्य की विधानसभा सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस, शिक्षा जैसे विषयों पर स्वतंत्र रूप से कानून बना सकेगी।
- वित्तीय स्वायत्तता में वृद्धि: राज्य सरकार को बजट और अन्य वित्तीय विधेयकों के लिए उपराज्यपाल की मंजूरी नहीं लेनी पड़ेगी।
- प्रशासनिक नियंत्रण राज्य सरकार के पास होगा:
- एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) और अखिल भारतीय सेवाओं (IAS, IPS) पर सीधा नियंत्रण राज्य सरकार के पास होगा।
- अधिकारियों की नियुक्ति, तबादले और पदस्थापन का निर्णय राज्य सरकार करेगी। उपराज्यपाल की भूमिका सीमित हो जाएगी।
- व्यापार व वाणिज्य में सशक्त भूमिका: संविधान के अनुच्छेद 286, 287, 288 और 304 के तहत राज्य को टैक्स व व्यापारिक फैसलों में अधिक स्वतंत्रता मिलेगी।
- मंत्रिपरिषद में वृद्धि की संभावना: केंद्रशासित प्रदेशों में मंत्रियों की संख्या केवल 10% तक सीमित होती है, जबकि राज्य बनने पर यह सीमा 15% तक बढ़ाई जा सकेगी।
- कानून–व्यवस्था पर नियंत्रण: राज्य सरकार के पास पुलिस और कानून-व्यवस्था का पूर्ण नियंत्रण होगा।
- भूमि और खनिज पर अधिकार: राज्य सरकार भूमि, खनिज और राजस्व नीति पर अपने स्तर पर निर्णय
- राज्यपाल की भूमिका होगी प्रतीकात्मक: उपराज्यपाल की जगह राज्यपाल की नियुक्ति होगी, जिनकी भूमिका अधिकतर औपचारिक होगी, जैसा भारत के अन्य राज्यों में होता है।
किन केंद्रशासित प्रदेशों को अब तक मिला पूर्ण राज्य का दर्जा?
भारत में कुछ केंद्रशासित प्रदेशों को समय-समय पर पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया है। प्रमुख उदाहरण:
- आंध्र प्रदेश (1956):पहले मद्रास राज्य का हिस्सा था।
- महाराष्ट्र और गुजरात (1960):पहले बॉम्बे राज्य में शामिल थे; भाषायी आधार पर विभाजन हुआ।
- नागालैंड (1963):पूर्वोत्तर क्षेत्र को अलग पहचान
- तेलंगाना (2014):आंध्र प्रदेश से अलग होकर भारत का 29वां राज्य बना।