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रिस्क सोसाइटी (Risk Society)

Risk Society

संदर्भ:

समाजशास्त्री उलरिच बेक द्वारा प्रतिपादित Risk Society” की अवधारणा यह दर्शाती है कि आधुनिक दौर में वैश्विक संकट जैसे जलवायु परिवर्तन, महामारी और आर्थिक अस्थिरता नए प्रकार के जोखिमों को जन्म देते हैं। इन जोखिमों का सबसे असमान असर महिलाओं पर पड़ता है, विशेषकर विकासशील देशों में, जहां सामाजिक-आर्थिक असमानताएं और पारंपरिक लैंगिक भूमिकाएं उनकी स्थिति को और भी जटिल बना देती हैं।

रिस्क सोसाइटी (Risk Society)-

  1. परिभाषा:
    • रिस्क सोसाइटी (जो ‘जोखिम समाज’ के रूप में भी जानी जाती है) एक ऐसा समाज है जो औद्योगिक समाज से असुरक्षा और खतरों द्वारा निर्मित एक नए समाज में बदल रहा है।
    • यह बदलाव प्रौद्योगिकी और पर्यावरणीय विकासों द्वारा उत्पन्न अस्थिरता और खतरों से प्रेरित है।
  2. औद्योगिक समाज और उनके जोखिम: औद्योगिक समाजों ने समृद्धि लाई, लेकिन साथ ही जटिल, वैश्विक जोखिम भी उत्पन्न किए, जैसे जलवायु परिवर्तन और महामारी, जो प्राकृतिक कारणों के बजाय मानव प्रगति से उत्पन्न हुए हैं।
  3. उलरिक बेक द्वारा प्रस्तावित:
    • यह अवधारणा जर्मन समाजशास्त्री उलरिक बेक (Ulrich Beck) ने अपनी 1986 की पुस्तक Risk Society: Towards a New Modernity में दी थी।
    • उन्होंने यह बताया कि अब समाज को नई तरह के जोखिमों का सामना करना पड़ता है, जो हमारे विकास और आधुनिकता के परिणाम हैं।

रिस्क सोसाइटी में महिलाओं पर असमान बोझ

  1. स्वास्थ्य जोखिमों का उच्चतम जोखिम:
    • महिलाओं के पानी इकट्ठा करने और बायोमास ईंधन (जैसे लकड़ी) का उपयोग करने के कारण उन्हें प्रदूषित पानी और इनडोर वायु प्रदूषण का सामना करना पड़ता है, जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है।
  2. आपदा में मृत्यु दर का बढ़ना: यूएनडीपी (UNDP) के अध्ययनों के अनुसार, महिलाएँ आपदाओं में पुरुषों से 14 गुना अधिक मरने की संभावना रखती हैं, इसका कारण है:
    • आवागमन में प्रतिबंध,
    • देखभाल की जिम्मेदारियाँ,
    • और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली तक पहुँच में कमी।
  1. आजीविका की सुरक्षा की हानि:
    • भारत की ग्रामीण श्रमिक शक्ति में 43% महिलाएँ कृषि क्षेत्र में कार्यरत हैं।
    • जब जलवायु परिवर्तन के कारण सूखा, बाढ़ या मिट्टी की हानि होती है, तो महिलाएँ सबसे पहले प्रभावित होती हैं, जिससे कृषि उत्पादन और ग्रामीण आय में गिरावट आती है। (FAO 2023 रिपोर्ट)
  2. अदृश्य और बिना वेतन वाली देखभाल जिम्मेदारी:
    • आपदाओं के बाद की सुधार प्रक्रिया जैसे देखभाल, भोजन तैयार करना, और स्वास्थ्य सेवाएँ महिलाओं पर भारी होती हैं, जबकि इन कार्यों के लिए कोई आर्थिक पहचान नहीं मिलती।
  3. जल और खाद्य असुरक्षा का वृद्धि:
    • जलवायु परिवर्तन के कारण संसाधनों की कमी होने पर महिलाएँ पानी के लिए लंबी यात्रा करती हैं और खाद्य संकट के दौरान कम भोजन प्राप्त करती हैं।

आगे की राह (Way Ahead):

  1. देखभाल अवसंरचना में निवेश: क्रेच, स्वास्थ्य बीमा और सामुदायिक रसोई जैसी सुविधाएं महिलाओं के बिना वेतन वाले देखभाल कार्य के बोझ को कम करने में मदद करेंगी।
  2. आर्थिक सशक्तिकरण: महिलाओं को भूमि अधिकार, वित्तीय सेवाओं तक पहुंच और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में प्राथमिकता देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है।
  3. लैंगिक मुख्यधारा में लाना: जलवायु संकट और महामारी जैसे जोखिमों से निपटने की नीतियों में महिलाओं की भूमिका को केंद्र में लाना आवश्यक है।

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