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डीएनए पर सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश (SC Guidelines on DNA) | Ankit Avasthi Sir

SC Guidelines on DNA

SC Guidelines on DNA

संदर्भ:

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कट्टावेल्लई देवकर बनाम तमिलनाडु राज्य मामले में आपराधिक मामलों में डीएनए (DNA) नमूनों की शुचिता बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण दिशानिर्देश जारी किए हैं। अदालत ने सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशकों को निर्देश दिया है कि वे चेन ऑफ कस्टडी रजिस्टर और अन्य आवश्यक दस्तावेजों के नमूना प्रारूप तैयार करें तथा इन्हें सभी जिलों में आवश्यक निर्देशों के साथ भेजना सुनिश्चित करें।

आपराधिक मामलों में डीएनए साक्ष्य का महत्व:

डीएनए क्या है: डीएनए (DNA) एक अणु है जिसमें सभी जीवित प्राणियों की आनुवंशिक जानकारी (Genetic Information) होती है।

  • इसे हड्डी, रक्त, वीर्य, लार, बाल या त्वचा जैसी जैविक सामग्रियों से प्राप्त किया जा सकता है।

अपराध जांच में उपयोग:

  • यदि अपराध स्थल से मिले नमूने का डीएनए प्रोफ़ाइल किसी संदिग्ध के डीएनए प्रोफ़ाइल से मेल खाता है, तो यह माना जा सकता है कि दोनों का जैविक स्रोत समान है।
  • लेकिन, यह अपने आप में निष्कर्षात्मक (Substantive) साक्ष्य नहीं माना जाता।

कानूनी दृष्टिकोण:

  • देवाकर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डीएनए साक्ष्य केवल विशेषज्ञ की राय है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 (Section 45 of Evidence Act) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 39 (Section 39 of Bharatiya Sakshya Adhiniyam, 2023) के तहत इसे रखा गया है।
  • किसी भी राय की तरह, इसकी महत्ता हर केस के हिसाब से बदलती है।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की आवश्यकता:

  1. प्रक्रिया में देरी (Procedural Delays):
  • अदालत ने पाया कि डीएनए जांच के लिए नमूने फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (FSL) भेजने में अनुचित देरी होती है।
  • नमूनों की चेन ऑफ कस्टडी (Chain of Custody) स्थापित नहीं हो पाई, जिससे नमूने के दूषित होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
  1. समानता की कमी (Lack of Uniformity):
  • विभिन्न निकायों ने कुछ दिशानिर्देश जारी किए हैं, लेकिन सभी जांच एजेंसियों के लिए कोई समान और अनिवार्य प्रक्रिया मौजूद नहीं है।

डीएनए साक्ष्य मामलों में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश

  1. संग्रह की प्रक्रिया: संग्रह का रिकॉर्ड रखने वाले दस्तावेज़ में चिकित्सक, जांच अधिकारी और स्वतंत्र गवाहों के हस्ताक्षर और पदनाम होना आवश्यक है।
  2. परिवहन (Transportation):
  • डीएनए नमूनों को संबंधित पुलिस स्टेशन या अस्पताल तक ले जाने की जिम्मेदारी जांच अधिकारी की होगी।
  • संग्रह के 48 घंटे के भीतर नमूने संबंधित FSL तक पहुंचने चाहिए।
  • यदि देरी होती है तो कारण दर्ज करना अनिवार्य होगा और नमूनों को सुरक्षित रखने के लिए सभी प्रयास किए जाएँगे।
  1. नमूने का संरक्षण: जब तक ट्रायल या अपील लंबित है, नमूनों के पैकेज को ट्रायल कोर्ट की अनुमति के बिना खोला, बदला या दोबारा सील नहीं किया जा सकता।
  2. चेन ऑफ कस्टडी रजिस्टर:
  • नमूने के संग्रह से लेकर आरोपी की सजा या बरी होने तक एक चेन ऑफ कस्टडी रजिस्टर बनाए रखना अनिवार्य है।
  • यह रजिस्टर ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड में जोड़ा जाएगा।
  • किसी भी कमी के लिए जांच अधिकारी को स्पष्टीकरण देना होगा।

निष्कर्ष: डीएनए साक्ष्य अपराध की जाँच और न्यायिक प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण साधन है, लेकिन इसकी विश्वसनीयता तभी सुनिश्चित हो सकती है जब इसे वैज्ञानिक मानकों और कानूनी प्रक्रिया के अनुरूप संभाला जाए। सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशा-निर्देश नमूने के संग्रह, परिवहन, संरक्षण और चेन ऑफ कस्टडी को व्यवस्थित बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम हैं। इनसे न केवल डीएनए साक्ष्य की प्रामाणिकता बनी रहेगी, बल्कि न्यायपालिका को सही और निष्पक्ष निर्णय लेने में भी मदद मिलेगी।

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