Sittanavasal Caves
संदर्भ:
तमिलनाडु के पुदुक्कोट्टई जिले में स्थित सित्तनवसल की गुफाएँ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की देखरेख में राष्ट्रीय महत्व के स्मारक के रूप में विकसित किया जा रहा है। इसका ऐतिहासिक और पुरातत्विक महत्व बहुत अधिक है। इसमें दुर्लभ भित्ति चित्र पाए गए हैं, जो आरंभिक जैन चरित्रों और पुरानी कला परंपराओं को दर्शाते है।
सित्तनवसल की गुफाएँ:
सित्तनवसल, तमिलनाडु के पुदुक्कोट्टई जिले में स्थित एक प्राचीन शैलाश्रयी धरोहर है, जिसे राष्ट्रीय महत्व के स्मारक के रूप में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) संरक्षित किया जा रहा है। यह स्थल अपने तमिल-ब्राह्मी शिलालेखों, जैन तपस्वियों के चट्टानी बिस्तरों और अद्वितीय भित्ति चित्रों के कारण भारत की आरंभिक धार्मिक और कलात्मक परंपराओं का सशक्त साक्ष्य माना जाता है।
इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
सित्तनवसल का इतिहास पहली शताब्दी ईसा पूर्व से प्रारंभ होता है और 10वीं शताब्दी ईस्वी तक फैला हुआ है। ‘सित्तनवसल’ शब्द “सिद्धन वासल” से विकसित हुआ है जिसका अर्थ है—“महान संतों का निवास”। यह स्थान संगम काल से ही जैन साधकों का प्रमुख केंद्र रहा है।
- पहाड़ी के पास स्थित एलादिपट्टम नामक शैलाश्रय में लगभग सत्रह चट्टानी बिस्तर हैं, जिन पर प्रारंभिक तमिल-ब्राह्मी लिपि में शिलालेख उत्कीर्ण हैं। यह स्थल जैन तपस्या परंपरा का साक्ष्य और दक्षिण भारत में जैन धर्म के प्रारंभिक प्रसार को समझने में सहायक है।
- 7वीं–9वीं शताब्दी के दौरान पल्लव और पांड्य राजवंशों के संरक्षण में यहाँ की गुफाएँ व्यापक रूप से विकसित हुईं। पांड्य शासन के अभिलेखों के अनुसार इनमें कई हिस्सों का पुनरुद्धार भी हुआ।
- सित्तनवसल के बारे में पहली आधुनिक ऐतिहासिक जानकारी 1916 में एस. राधाकृष्ण अय्यर की पुस्तक में दर्ज की गई। इसके बाद ASI द्वारा संरक्षण कार्य प्रारंभ हुए।
सित्तनवसल की प्रमुख विशेषताएं:
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- जैन गुफा-मंदिर: सित्तनवसल का प्रमुख आकर्षण अरिवर कोविल है, जो चट्टान को काटकर बनाया गया जैन गुफा-मंदिर है। यह मंदिर 70 मीटर ऊँची चट्टान की सतह पर स्थित है। इसमें एक गर्भगृह और उसके सामने एक अर्ध-मंडप है।
- धर्मचक्र: गर्भगृह की छत पर निर्मित धर्मचक्र अत्यंत सूक्ष्म नक्काशी का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह तत्व जैन वास्तुकला में बौद्धिक और आध्यात्मिक अवधारणाओं की उपस्थिति को दर्शाता है।
- रॉक-कट स्थापत्य परंपरा: इसमें पांड्य काल की शैली, सपाट सतहों पर रूपांकन, और शैलाश्रयी तकनीक का उपयोग किया गया है। जो इस मंदिर को दक्षिण भारतीय रॉक-कट स्थापत्य परंपरा में विशेष बनाता है।
- भित्ति चित्र: सित्तनवसल अपने फ्रेस्को-सेको शैली के भित्ति चित्रों के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। हल्की लाल पृष्ठभूमि पर काले, पीले, हरे, नीले और सफेद रंगों से उकेरी गई ये चित्रकलाएँ 7वीं शताब्दी की विकसित पेंटिंग परंपरा को दर्शाती हैं।
- चित्र परंपरा: इसकी छत पर कमल-पुष्पित तालाब, उसमें पक्षियों, हाथियों, भैंसों तथा कमल तोड़ते हुए युवक का दृश्य बनाया गया है। इस कलात्मक परंपरा में अजन्ता की चित्रकारी से समानता स्पष्ट दिखाई देती है।
- संस्कृति: सित्तनवसल में मिले मेगालिथिक दफन स्थलों, पत्थर के घेरों और ताबूतों के अवशेष इस क्षेत्र की प्रागैतिहासिक उपस्थिति का संकेत देते हैं। संगम युग में यहाँ शवाधान की विशेष परंपरा प्रचलित थी।

