Sixteenth Finance Commission Report Submission
संदर्भ:
हाल ही में 16वीं वित्त आयोग (XVIFC) ने 2026–27 से 2030–31 की अवधि के लिए अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौपी, जो आगामी पाँच वर्षों की केंद्र–राज्य वित्तीय संरचना का आधार बनेगी। यह एक संवैधानिक प्रक्रिया है, जो भारत के सतत विकास, राजकोषीय अनुशासन और प्रगतिशील संघीय सहयोग की दिशा में महत्वपूर्ण पड़ाव है।
गठन एवं संवैधानिक आधार:
- गठन: 16वीं वित्त आयोग का गठन भारत के संविधान के अनुच्छेद 280(1) के तहत राष्ट्रपति द्वारा किया गया। इसका उद्देश्य केंद्र और राज्यों के बीच करों के शुद्ध आय के वितरण के लिए अनुशंसाएँ तैयार करना तथा राज्यों को सहायता अनुदान (Grants-in-Aid) उपलब्ध कराने की रूपरेखा बनाना है।
- सदस्य: 16वें वित्त आयोग की अध्यक्षता अर्थशास्त्री डॉ. अरविंद पनगढ़िया ने की। जिसमें अनी जॉर्ज मैथ्यू, डॉ. मनोज पांडा, टी. रबी शंकर, डॉ. सौम्याकांति घोष और ऋत्विक पांडे शामिल थे।
रिपोर्ट प्रस्तुत करने की प्रक्रिया:
वित्त आयोग के द्वारा 5-वर्षीय विश्लेषणात्मक रिपोर्ट सबसे पहले राष्ट्रपति को सौंपी जाती है। इसके बाद इनकी प्रतियाँ प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को भी प्रस्तुत की जाती है। संविधान के अनुच्छेद 281 के अनुसार, रिपोर्ट तब तक सार्वजनिक नहीं की जाती जब तक उसे संसद में पेश न किया जाए। संसद में पेश होने के बाद ही यह आधिकारिक रूप से सार्वजनिक क्षेत्र में उपलब्ध होती है।
कार्यक्षेत्र एवं संदर्भ की शर्तें:
- कर राजस्व का बंटवारा: केंद्र और राज्यों के बीच नेट प्रोसिड्स ऑफ टैक्सेज का वितरण।
- राज्यों के भीतर बंटवारा: राज्यों की जनसंख्या, आय क्षमता, भौगोलिक चुनौतियों और आर्थिक आवश्यकताओं के आधार पर उनके हिस्से का निर्धारण।
- अनुदान-सहायता (Grants-in-Aid): इसमें राजकोषीय घाटा प्रबंधन, स्थानीय निकायों के संसाधन, विशेष सहायता तथा स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक क्षेत्रों के लिए विशिष्ट अनुदान शामिल है।
- आपदा प्रबंधन ढाँचा: आपदा प्रतिक्रिया कोष (RDF) तथा आपदा न्यूनीकरण कोष (MDF) की वित्तीय संरचना का मूल्यांकन एवं अनुशंसा।
- वित्तीय स्थिरता और अनुशासन: FRBM लक्ष्यों के अनुरूप राजकोषीय सुधारों के लिए सुझाव प्रस्तुत करना।
इस रिपोर्ट का महत्व:
- सहकारी संघवाद की मजबूती: वित्त आयोग का कार्य केंद्र-राज्य संबंधों का आधार है, जो भारतीय संघीय ढाँचे की मूल भावना को सुदृढ़ करता है।
- वित्तीय विकेंद्रीकरण: स्थानीय निकायों की वित्तीय क्षमता को बढ़ाना शासन की गुणवत्ता में सुधार का आधार बनता है।
- राजकोषीय स्थिरता: राज्यों और केंद्र के बीच संसाधनों का वैज्ञानिक बंटवारा स्थिर आर्थिक माहौल सुनिश्चित करता है।
- आपदा प्रबंधन ढाँचे का आधुनिकीकरण: इसके माध्यम से जलवायु परिवर्तन युग में आपदा वित्तपोषण तंत्र को मजबूत करने पर बल दिया जाता है।
- समावेशी विकास: अनुदानों के माध्यम से पिछड़े राज्यों और जनसंख्या समूहों को बराबर विकास अवसर प्रदान किए जाते हैं, जो देश के समावेशी विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं।

