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पर्यावरण पर्यटन एवं टाइगर सफारी पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश (Supreme Court directive on eco-tourism and tiger safari) | Apni Pathshala

Supreme Court directive on eco-tourism and tiger safari

Supreme Court directive on eco-tourism and tiger safari

संदर्भ:

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में अवैध निर्माण और अनियंत्रित सफारी संचालन पर एक ऐतिहासिक निर्णय दिया, जो भारत की वन-नीति, संरक्षण शासन और पर्यावरणीय जवाबदेही के क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। यह निर्णय विशेष रूप से देशभर में टाइगर रिज़र्व प्रबंधन के लिए नए मानक स्थापित करने और संवेदनशील वन पारिस्थितिकियों के संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता देने पर केंद्रित है।

निर्णय की पृष्ठभूमि:

  • पृष्ठभूमि: उत्तराखंड सरकार ने वर्ष 2020 में कॉर्बेट के पाखरौ रेंज में टाइगर सफारी हेतु 163 पेड़ों की कटाई की अनुमति मांगी थी। जांच में पाया गया कि अनुमति से कई गुना अधिक 6,000 से अधिक पेड़ अवैध रूप से काटे गए, और बड़े पैमाने पर अनधिकृत निर्माण कार्य किए गए। सुप्रीम कोर्ट तथा CEC की जांच में तत्कालीन वन मंत्री और DFO के बीच मिलीभगत सामने आई।
  • उल्लंघन: यह पूरा प्रकरण वन संरक्षण अधिनियम 1980 तथा वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 का उल्लंघन माना गया। इस मामले को सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक टी.एन. गोडावरम जनहित याचिका से जोड़ा गया, जिसने “वन” की विस्तृत परिभाषा निर्धारित की थी।

अवैध निर्माण पर न्यायालय की प्रतिक्रिया:

सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तराखंड को पूरे देश में जिम्मेदार उदाहरण के रूप में पेश करते हुए कड़े निर्देश दिए—

  • अवैध संरचनाओं को तीन माह में हटाना: उद्यान के भीतर सभी अनधिकृत इमारतों का ध्वस्तीकरण अनिवार्य किया गया।
  • पारिस्थितिकीय पुनर्स्थापन: क्षतिग्रस्त वनों की मरम्मत CEC की प्रत्यक्ष निगरानी में की जाएगी। 
  • “पॉल्यूटर पेज़” सिद्धांत का प्रयोग: पुनर्स्थापन की पूरी लागत दोषी अधिकारियों और निजी व्यक्तियों से वसूल की जाएगी—इससे पर्यावरणीय जवाबदेही को मजबूत संस्थागत आधार मिलता है।
  • टाइगर सफारी के लिए नए नियम: कोर क्षेत्र, महत्वपूर्ण बाघ आवास (CTH) और सभी टाइगर कॉरिडोर में सफारी पूरी तरह निषिद्ध रहेगा। सफारी केवल गैर-वन भूमि या अवनत वनक्षेत्र पर ही संचालित की जाएगी। सफारियों में केवल वही बाघ या वन्यजीव रखे जा सकते हैं जो— घायल, संघर्षग्रस्त, या अनाथ हों और वही स्थानीय परिदृश्य से आए हों। सिर्फ पर्यटक प्रदर्शन के उद्देश्य से किसी भी प्राणी को चिड़ियाघर से लाना अवैध होगा।

पर्यावरण पर्यटन एवं संरक्षण से जुड़े सर्व-भारत निर्देश:

  • ESZ अनिवार्यता: सभी राज्यों को एक वर्ष के भीतर हर टाइगर रिज़र्व के चारों ओर इको-सेंसिटिव ज़ोन अधिसूचित करना होगा। जहां बफर नहीं है, वहाँ न्यूनतम 1 किमी रेडियल ESZ अनिवार्य है।
  • इको-टूरिज्म: केवल नियंत्रित इको-टूरिज्म होगा। रात्रिकालीन पर्यटन पूरी तरह प्रतिबंधित होगा। इसमें ध्वनि एवं प्रकाश प्रदूषण सीमित रहेगी और सफारी के दौरान मोबाइल उपयोग पर रोक रहेगी।
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष: राज्यों को मानव-वन्यजीव संघर्ष को “प्राकृतिक आपदा” की श्रेणी में रखने का सुझाव। संघर्ष में मृत्यु होने पर परिजनों को ₹10 लाख की अनिवार्य सहायता होगी। वनकर्मियों को आवश्यक सुरक्षा उपकरण व सुविधाएँ देना अनिवार्य होगा। 

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान का परिचय:

  • जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान, उत्तराखंड के नैनीताल और पौड़ी गढ़वाल जिलों में स्थित भारत का सबसे पुराना राष्ट्रीय उद्यान है, जिसकी स्थापना 1936 में हैली नेशनल पार्क के रूप में हुई थी।
  • 1957 में इसका नाम प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और शिकारी-से-संरक्षक बने जिम कॉर्बेट के सम्मान में बदल दिया गया। यह उद्यान प्रोजेक्ट टाइगर (1973) की पहली टाइगर रिज़र्व साइट है और विश्व में बाघ संरक्षण का प्रमुख केंद्र माना जाता है।
  • यह उद्यान लगभग 1,318 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है, जिसमें 520 वर्ग किलोमीटर का कोर क्षेत्र और शेष बफर क्षेत्र शामिल है। यहां विविध पारिस्थितिकीय तंत्र पाए जाते हैं—साल वन, घासभूमि, नदी तट क्षेत्र और पर्वतीय परिदृश्य। उद्यान से रामगंगा नदी बहती है, जो यहां की जैवविविधता की मुख्य जीवनरेखा है।
  • यहां लगभग 230 से अधिक बाघ, 1,100 से अधिक हाथी, तथा तेंदुए, घड़ियाल, स्लॉथ भालू, हिरण प्रजातियां और 600+ पक्षी प्रजातियां पाई जाती हैं।
  • जिम कॉर्बेट भारत का सर्वाधिक लोकप्रिय इको-टूरिज्म गंतव्य भी है, जहाँ ढिकाला, बिजरानी, झिरना और धिकाला ज़ोन विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।

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