Supreme Court Order on Stray Dog Crisis
Supreme Court Order on Stray Dog Crisis –
संदर्भ:
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आवारा कुत्तों की बढ़ती समस्या को “गंभीर” बताते हुए दिल्ली सरकार और नोएडा, गुरुग्राम तथा गाज़ियाबाद के अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे आवारा कुत्तों को पकड़कर निर्धारित शेल्टर होम्स में स्थानांतरित करें।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की मुख्य बातें –
- तत्काल हटाने का निर्देश– दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम और गाज़ियाबाद में प्रशासन को तुरंत स्थानीय इलाकों से आवारा कुत्तों को हटाने की कार्रवाई शुरू करनी होगी, खासकर संवेदनशील क्षेत्रों और शहर के बाहरी इलाकों में।
- स्थायी पुनर्वास– पकड़े गए कुत्तों को विशेष आश्रय स्थलों में रखा जाएगा, उनका नसबंदी, टीकाकरण किया जाएगा और CCTV से निगरानी होगी। इन्हें दोबारा सार्वजनिक स्थानों पर छोड़ने पर सख्त रोक होगी।
- कानूनी कार्रवाई और दंड– हटाने की कार्रवाई में बाधा डालने वाले किसी भी व्यक्ति या संगठन के खिलाफ कानूनी कार्यवाही होगी। जरूरत पड़ने पर कुत्तों को पकड़ने के लिए बल का प्रयोग किया जा सकेगा।
- आधारभूत ढांचा निर्माण समयसीमा– 5,000–6,000 कुत्तों की क्षमता वाले आश्रय स्थल 6–8 हफ्तों में बनाए जाएं, जिनमें नसबंदी, टीकाकरण और देखभाल के लिए पर्याप्त कर्मचारी हों।
- रेबीज रोकथाम उपाय– कुत्ते के काटने और रेबीज मामलों के लिए सार्वजनिक हेल्पलाइन एक सप्ताह में शुरू होनी चाहिए, जिसमें शिकायत मिलने के 4 घंटे के भीतर कार्रवाई हो।
- टीके की उपलब्धता– प्रशासन को टीकों की उपलब्धता और भंडार का विवरण सार्वजनिक करना होगा।
भारत में आवारा कुत्तों की समस्या:
- भारत में 6 करोड़ से अधिक आवारा कुत्ते हैं, जो दुनिया की कुल आवारा कुत्तों की आबादी का 37% है।
- देश में हर 10 सेकंड में एक कुत्ते के काटने की घटना होती है, जिससे सालाना 30 लाख से अधिक मामले दर्ज होते हैं।
- हर तीन घंटे में रेबीज़ से दो लोगों की मौत होती है, जिससे भारत इस बीमारी से होने वाली मौतों का वैश्विक केंद्र बन गया है।
- शिशु और बुजुर्ग सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं, और दिल्ली, तेलंगाना व पंजाब में घातक हमले दर्ज किए गए हैं।
- आवारा कुत्ते गंभीर स्वास्थ्य खतरे पैदा करते हैं।
- यदि आवारा कुत्तों पर प्रभावी नियंत्रण नहीं किया गया, तो 2030 तक रेबीज़ समाप्त करने का लक्ष्य असंभव है।
चुनौतियाँ:
- संरचनात्मक कमी (Structural Limitations)– दिल्ली में सरकारी स्तर पर डॉग शेल्टर नहीं हैं। लाखों कुत्तों के लिए आश्रय स्थल बनाने में विशाल भूमि, स्वच्छता और भोजन की व्यवस्था की जरूरत होगी, जिसे तैयार करने में कई साल लगेंगे।
- वित्तीय बोझ (Financial Burden)– पर्याप्त शेल्टर इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने में लगभग ₹15,000 करोड़ का खर्च आएगा, जो अदालत द्वारा तय 2 महीने की समयसीमा में संभव नहीं है।
- जन आक्रोश (Public Outrage)– समुदायों और पशु कल्याण संगठनों द्वारा बड़े पैमाने पर कुत्तों को हटाने का विरोध किया जा रहा है, जिससे कानूनी चुनौतियां और देशव्यापी प्रदर्शन हो रहे हैं।
- लॉजिस्टिक समस्या (Logistical Constraints)– सिर्फ दिल्ली में ही 3 लाख से अधिक आवारा कुत्तों को पकड़कर आश्रय में रखने के लिए भारी संख्या में जनशक्ति, परिवहन, पशु-चिकित्सा सहायता और संचालन समन्वय की जरूरत होगी।
- कानूनी बाधा– ABC (Animal Birth Control) गाइडलाइंस में सामुदायिक कुत्तों (सड़क या गेटेड कैंपस में रहने वाले) और पालतू कुत्तों के बीच अंतर किया गया है, जिससे जिम्मेदारी तय करना अधिकारियों के लिए कठिन हो जाता है।
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों से जुड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा के मुद्दों को सुलझाने की दिशा में एक अहम कदम है, लेकिन इसके सामने कानूनी, नैतिक और व्यावहारिक चुनौतियां भी मौजूद हैं।

