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प्रौद्योगिकी उद्योग और जलवायु लक्ष्य (Technology Industry and Climate Goals) | Apni Pathshala

Technology Industry and Climate Goals

Technology Industry and Climate Goals

संदर्भ:

Microsoft और WSP Global द्वारा किए गए एक ऐतिहासिक अध्ययन में यह सिद्ध हुआ है कि उन्नत कूलिंग तकनीकों (advanced cooling technologies) के उपयोग से डाटा सेंटर्स में उत्सर्जन (emissions), ऊर्जा खपत (energy use) और जल उपयोग (water use) को प्रभावी रूप से कम किया जा सकता है।

  • यह शोध पर्यावरणीय स्थिरता की दिशा में डाटा सेंटर्स के संचालन को अधिक दक्ष और टिकाऊ बनाने की संभावनाओं को उजागर करता है।
(Technology Industry and Climate Goals) प्रौद्योगिकी उद्योग और जलवायु लक्ष्य: संतुलन की दिशा में एक पहल

यह क्या है?

  • प्रौद्योगिकी उद्योग, विशेषकर डेटा सेंटर्स और सप्लाई चेन के कारण, वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का बड़ा स्रोत है।
  • अब यह उद्योग जलवायुसंवेदनशील उपायों को अपनाकर अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करने की दिशा में सक्रिय हो गया है।

जलवायु लक्ष्य:

  • 2030 तक: 2015 के स्तर से 42% तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती।
  • 2050 तक: नेट-ज़ीरो उत्सर्जन प्राप्त करना।
  • सभी परिचालनों में 100% नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग (जैसे – गूगल का 2030 तक का लक्ष्य)।

टेक उद्योग द्वारा अपनाए गए उपाय:

  1. उन्नत कूलिंग तकनीकें
    • Microsoft की cold plate और immersion cooling से
      • उत्सर्जन में 15–21% की कमी
      • जल उपयोग में 52% तक की कमी
  1. कार्बन क्रेडिट का उपयोग
    • Google, Netflix जैसे कंपनियां प्रमाणित क्रेडिट्स से उत्सर्जन की भरपाई करती हैं और संरक्षण परियोजनाओं में निवेश करती हैं।
  2. ब्लॉकचेन आधारित कार्बन बाज़ार
    • Gold Standard द्वारा समर्थित पारदर्शिता लाने के लिए ब्लॉकचेन का उपयोग।
    • भारतीय कंपनियां ESG अनुपालन में इस तकनीक को अपना रही हैं।
  1. नवीकरणीय ऊर्जा का एकीकरण: Amazon, Apple, Meta जैसी कंपनियों ने हरित परिसर और 100% renewable energy पर काम शुरू किया है।
  2. भारतीय नेतृत्व: Infosys, Reliance, Tech Mahindra जैसी कंपनियां AI, ब्लॉकचेन और ऊर्जा-कुशल प्रक्रियाओं से स्थायी तकनीक को बढ़ावा दे रही हैं।

मुख्य चुनौतियाँ:

  • लाइफसाइकिल समझौते: कूलिंग तकनीक उत्सर्जन तो घटाती है, पर कूलेंट निर्माण का पर्यावरणीय भार बढ़ा सकती है।
  • उच्च पूंजी लागत: डेटा सेंटर्स का ग्रीन रेट्रोफिटिंग महंगा और समय-साध्य।
  • नियामक रुकावटें: कूलेंट द्रवों और कार्बन क्रेडिट के लिए वैश्विक मानकों की कमी।
  • कोयलाआधारित ग्रिड निर्भरता: बिजली का स्रोत यदि स्वच्छ नहीं, तो टेक सुधारों का प्रभाव सीमित।
  • प्रवर्तन में देरी: जटिल डिज़ाइन और सप्लाई चेन के कारण नई तकनीकों को लागू करने में समय लग रहा है।

आगे की राह:

  • Life Cycle Assessment (LCA) को प्रोत्साहन: पर्यावरणीय प्रभाव का पूर्ण मूल्यांकन हर तकनीकी समाधान में किया जाए।
  • वैश्विक रूपरेखा का समन्वय: कार्बन क्रेडिट प्रमाणन और जलवायु खुलासों के लिए वैश्विक मानक विकसित हों।
  • सरकारी प्रोत्साहन: ग्रीन टेक अपनाने वालों को टैक्स क्रेडिट, सब्सिडी, और हरित वित्त की सुविधा।
  • कूलिंग तकनीक में R&D को बढ़ावा: कम-प्रभाव वाले द्रव, मापनीय डिज़ाइन, और AI-आधारित नियंत्रण प्रणालियों पर शोध।
  • सार्वजनिकनिजी साझेदारी: सरकार, स्टार्टअप्स और बड़ी कंपनियों के बीच नवाचार के लिए सहयोग तंत्र विकसित हों।

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