Uranium contamination in breast milk in Bihar
संदर्भ:
हाल ही में Scientific Reports में प्रकाशित एक महत्वपूर्ण अध्ययन में बिहार के छह जिलों की स्तनपान कराने वाली महिलाओं के स्तनदूध में यूरेनियम (U-238) की उपस्थिति की पुष्टि की गई है। बिहार पहले से ही आर्सेनिक, सीसा और पारे जैसे भारी धातुओं के लिए संवेदनशील क्षेत्र माना जाता रहा है, और यह नई खोज सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए नई चिंता को उजागर करती है।
अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष:
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सभी नमूनों में यूरेनियम की उपस्थिति: अध्ययन में शामिल 40 माताओं के 100% नमूनों में यूरेनियम पाया गया। यूरेनियम की मात्रा 5.25 माइक्रोग्राम/लीटर तक दर्ज हुई। WHO ने स्तनदूध के लिए कोई अधिकतम सीमा निर्धारित नहीं की है, लेकिन शिशुओं में किसी भी रेडियोधर्मी धातु की उपस्थिति को जोखिमपूर्ण माना जाता है।
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जिला-वार भिन्नता: औसत यूरेनियम प्रदूषण स्तर इस क्रम में पाया गया:
खगड़िया > समस्तीपुर > बेगूसराय > कटिहार > भोजपुर > नालंदा। इसमें कटिहार: सबसे अधिक एकल शिखर स्तर (5.25 µg/L), खगड़िया: औसत रूप से सर्वाधिक (4.035 µg/L) और नालंदा: न्यूनतम औसत स्तर (2.354 µg/L)।
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शिशुओं पर अधिक जोखिम: अध्ययन में Monte Carlo Simulation के माध्यम से 10,000 परिदृश्यों पर आधारित जोखिम मूल्यांकन किया गया। इसमें लगभग 70% शिशुओं में Non-Carcinogenic स्वास्थ्य जोखिम पाए गए।
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संभावित स्रोत: बिहार के कई जिलों के भूजल में पहले से ही उच्च स्तर का यूरेनियम पाया गया है। मुख्य स्रोत: भूवैज्ञानिक संरचनाएँ (Geogenic Sources), भूजल का अत्यधिक दोहन, फॉस्फेट उर्वरक, औद्योगिक अपशिष्ट और सीवेज, अनियंत्रित जल प्रबंधन। बिहार के 11 जिलों में भूजल यूरेनियम स्तर WHO की 30 µg/L सीमा से अधिक पाया गया है— जैसे सुपौल (82 µg/L), नालंदा (77 µg/L), वैशाली (66 µg/L)।
- प्रभाव: अध्ययन में यद्यपि कैंसर जोखिम नहीं दिखा, लेकिन संज्ञानात्मक विकास पर दीर्घकालिक प्रभावों की आशंका जताई गई है।
स्तनदूध में यूरेनियम क्यों चिंता का विषय है?
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गुर्दे (Kidney) को नुकसान: यूरेनियम रासायनिक रूप से विषैला होता है और शिशुओं में नेफ्रोटॉक्सिसिटी यानी गुर्दों को गंभीर क्षति पहुँचा सकता है।
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मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र पर प्रभाव: यह ब्लड-ब्रेन बैरियर पार कर सकता है, जिससे शिशुओं के संज्ञानात्मक, व्यवहारिक और न्यूरोलॉजिकल विकास पर असर पड़ता है।
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भारी धातुओं के प्रति अधिक संवेदनशीलता: शिशुओं का कम शरीर भार, अविकसित अंग और धातुओं को निकालने की कम क्षमता उन्हें वयस्कों की तुलना में कई गुना अधिक जोखिम में डालती है।
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दीर्घकालिक स्वास्थ्य जोखिम: यह हड्डी विकास, प्रतिरक्षा तंत्र और मोटर कौशल पर प्रभाव डाल सकता है, साथ ही भविष्य में कैंसर या अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का जोखिम बढ़ा सकता है।
यूरेनियम क्या है?
- यूरेनियम एक प्राकृतिक रेडियोधर्मी धातु है जो पृथ्वी की पर्पटी में स्वाभाविक रूप से पाई जाती है। यह एक्टिनाइड श्रृंखला का तत्व है और इसके प्रमुख समस्थानिक U-238, U-235 और U-234 होते हैं।
- यूरेनियम का सबसे महत्वपूर्ण उपयोग परमाणु ऊर्जा उत्पादन, नाभिकीय हथियारों, और अनुसंधान रिएक्टरों में होता है। इसकी विशेषता यह है कि इसका नाभिक विभाजित होकर बड़ी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न करता है, जिसे न्यूक्लियर फिशन कहा जाता है।
- पर्यावरण में यूरेनियम चट्टानों, मिट्टी, खनिजों और भूजल में उपस्थित होता है। कई क्षेत्रों में पानी के माध्यम से यह मानव शरीर में प्रवेश कर सकता है। हालांकि इसकी रेडियोधर्मिता अपेक्षाकृत कम होती है।
- यूरेनियम का अत्यधिक उपयोग खनन, उर्वरकों, औद्योगिक गतिविधियों और भूजल दोहन के कारण पर्यावरण में बढ़ गया है। इसलिए कई क्षेत्रों में भूजल में यूरेनियम की अधिकता सार्वजनिक स्वास्थ्य का गंभीर मुद्दा बन चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने पीने के पानी में यूरेनियम का सुरक्षित स्तर 30 माइक्रोग्राम प्रति लीटर तय किया है।
नीति-स्तरीय सुझाव:
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व्यापक बायो-निगरानी (Statewide Biomonitoring): स्तनदूध, भूजल, भोजन, और मिट्टी में भारी धातुओं की नियमित जांच। उच्च जोखिम वाले जिलों में वार्षिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण।
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सुरक्षित पेयजल की व्यवस्था: RO आधारित जल शोधन (यूरेनियम हटाने के लिए प्रभावी), पंचायत/ब्लॉक स्तर पर जल गुणवत्ता सूचकांक का प्रकाशन, ग्रामीण क्षेत्रों में सुरक्षित जल आपूर्ति कार्यक्रमों का विस्तार।
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पर्यावरणीय स्रोतों की पहचान: कृषि में फॉस्फेट उर्वरकों की निगरानी, भूजल दोहन पर नियंत्रण, औद्योगिक अपशिष्ट प्रबंधन की सख्त निगरानी।
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मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य कार्यक्रम: गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए जागरूकता, पोषण, जल गुणवत्ता और स्वास्थ्य निगरानी

