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अमेरिकी फेड ब्याज दर में कटौती (US Fed Rate Cut) | UPSC

US Fed Rate Cut

US Fed Rate Cut

संदर्भ:

अमेरिकी केंद्रीय बैंक की फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (FOMC) ने चेयरमैन जेरोम पॉवेल की अगुवाई में 16-17 सितंबर को हुई दो दिवसीय बैठक के बाद आज ब्याज दर घटाकर 4%-4.25% कर दी है। यह 2025 की पहली दर कटौती है।

Federal Funds Rate क्या है?

  • परिभाषा: यह वह ब्याज दर (interest rate) है जिस पर बैंक आपस में रातभर (overnight) के लिए पैसे उधार देते हैं ताकि वे फेडरल रिज़र्व द्वारा तय किए गए रिज़र्व आवश्यकता (reserve requirements) को पूरा कर सकें।
  • यह दर सीधे उपभोक्ताओं पर लागू नहीं होती, लेकिन यह पूरी अर्थव्यवस्था में अन्य ब्याज दरों जैसे prime rate, mortgage rate, और consumer loans को प्रभावित करती है।

Fed दरें क्यों घटाता है?

फेडरल रिज़र्व अपनी dual mandate (अधिकतम रोजगार + मूल्य स्थिरता यानी low inflation) को पूरा करने के लिए दरों में कटौती करता है। मुख्य कारण हैं:

  1. आर्थिक विकास को प्रोत्साहन:
    • ब्याज दरें घटने से ऋण सस्ता (cheap borrowing) हो जाता है।
    • व्यवसाय निवेश और विस्तार करते हैं, जिससे रोज़गार और आर्थिक गतिविधि बढ़ सकती है।
  2. कमज़ोर श्रम बाज़ार को संभालना: अगर नौकरी वृद्धि घट रही हो या बेरोज़गारी बढ़ रही हो, तो Fed दरें घटाकर hiring को बढ़ावा देने की कोशिश करता है।
  3. मंदी को रोकना: जब आर्थिक गतिविधि बहुत धीमी हो जाती है, तो Fed मांग को बढ़ावा देने और गहरी मंदी से बचने के लिए दरें घटा सकता है।

Fed द्वारा Rate Cut के कारण: फेडरल रिज़र्व का मुख्य उद्देश्य (Dual Mandate) है:

  • Price Stability (मूल्य स्थिरता बनाए रखना)
  • Maximum Employment (अधिकतम रोज़गार सुनिश्चित करना)
  1. कमज़ोर श्रम बाज़ार (Weakening Labour Market):
  • अगस्त में Non-farm payroll employment सिर्फ़ 22,000 बढ़ी, जो अनुमान से काफ़ी कम थी।
  • Fed ने माना कि “job gains have slowed” यानी नौकरी वृद्धि धीमी हो गई है।
  • बेरोज़गारी धीरे-धीरे बढ़ रही जिससे रोज़गार पर नकारात्मक असर पड़ने का खतरा है।
  1. मुद्रास्फीति का दबाव (Inflation Pressures)
  • Inflation (PCE Index) अप्रैल में 2.2% से बढ़कर जुलाई में 2.6% हो गई।
  • इसका मतलब है कि उपभोक्ताओं द्वारा खरीदी जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं की औसत कीमतें तेज़ी से बढ़ रही हैं।

फेड रेट कट्स का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

  1. पूंजी प्रवाह (Capital Flows)
  • अमेरिका में दरें घटने से भारत विदेशी निवेशकों (FPI) के लिए आकर्षक बन जाता है।
  • इक्विटी और बॉन्ड बाज़ार में निवेश बढ़ सकता है।
  • इससे बाज़ार में liquidity बढ़ेगी और बॉन्ड यील्ड्स (bond yields) में कमी आ सकती है।
  1. रुपये और विनिमय दर:
  • कमजोर डॉलर और मज़बूत पूंजी प्रवाह से रुपया मज़बूत (appreciate) हो सकता है।
  • लेकिन, मज़बूत रुपया भारतीय निर्यात (exports) के लिए नकारात्मक हो सकता है।
  1. मुद्रास्फीति पर असर (Inflation Effects)
  • कमजोर डॉलर से आयातित महंगाई कम होगी तेल और अन्य कमोडिटीज़ सस्ते होंगे।
  • लेकिन विदेशी पूंजी का अधिक प्रवाह भारत में अंदरूनी (domestic) महंगाई को बढ़ा सकता है।
  1. निर्यात और IT सेक्टर (Exports and IT Sector)
  • रुपया मज़बूत होने से निर्यात महंगा हो जाता है, प्रतिस्पर्धा कम हो सकती है।
  • IT कंपनियों की आमदनी (जो डॉलर में होती है) पर भी असर पड़ सकता है।
  • हालांकि, वैश्विक व्यापार (global trade) में सुधार से कुछ नकारात्मक असर संतुलित हो सकता है।
  1. व्यापक मैक्रो असर (Wider Macro Impact)
  • वैश्विक क्रेडिट लागत घटने से भारत का बाहरी ऋण (external borrowing) बोझ कम होगा।
  • भारतीय कंपनियाँ विदेश में सस्ते दरों पर फंड जुटा पाएंगी (corporate fundraising)
  • निवेशकों का भारत की विकास कहानी (growth story) पर भरोसा और मज़बूत होगा।

निष्कर्ष: अमेरिकी फेड रेट कट भारत के लिए पूंजी प्रवाह और निवेश की दृष्टि से सकारात्मक है, लेकिन निर्यात और IT सेक्टर के लिए चुनौतीपूर्ण भी हो सकता है।

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