Mains GS II – सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन। |
चर्चा में क्यों?
वन रैंक वन पेंशन (OROP) योजना में हाल ही में बड़ा बदलाव किया गया है। रक्षा मंत्रालय के 4 सितंबर 2024 के नोटिफिकेशन के तहत पेंशनभोगियों के लिए इसमें महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए है। इसमें सेना, नौसेना, वायु सेना और अन्य रक्षा बलों के सेवानिवृत्त पेंशनभोगियों और पारिवारिक पेंशनभोगियों के लिए रैंक-वार पेंशन में संशोधन किया गया है। इस बदलाव के साथ, अब सभी रक्षा पेंशनरों को एक समान रैंक के लिए एक समान पेंशन राशि प्राप्त होगी।
वन रैंक वन पेंशन (OROP) योजना संशोधन के मुख्य बिंदु
- 1 जुलाई 2024 से ओआरओपी के तहत पेंशन में संशोधन किया गया है।
- संशोधन उन पेंशनभोगियों के लिए है जो 1 जुलाई 2024 तक पेंशन प्राप्त कर रहे हैं।
- इसमें कमीशन प्राप्त अधिकारी, मानद कमीशन प्राप्त अधिकारी, जेसीओ/ओआर और अन्य शामिल हैं।
- इस संशोधन से वे पेंशनभोगी लाभान्वित होंगे जो 1 जुलाई 2014 के बाद समय से पहले सेवानिवृत्त नहीं हुए हैं और जिन्होंने स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति नहीं ली है।
- पेंशन की संशोधित दरें 2023 सेवानिवृत्त लोगों के लिए रैंक, समूह और योग्यता सेवा के आधार पर निर्धारित की गई हैं।
- इसमें पेंशन की न्यूनतम और अधिकतम दरों का औसत लिया गया है। यदि किसी रैंक की उच्च योग्यता सेवा की दरें कम हैं या डेटा उपलब्ध नहीं है, तो उन्हें कम योग्यता सेवा की उच्च दर द्वारा संरक्षित किया गया है।
- यूके/एचकेएसआरए/केसीआईओ पेंशनभोगी, पाकिस्तान और बर्मा सेना के पेंशनभोगी, रिजर्विस्ट पेंशनभोगी आदि को इस संशोधन से बाहर रखा गया है।
- यदि संशोधित पेंशन मौजूदा पेंशन से कम होती है, तो भी पेंशनभोगी को नुकसान नहीं होगा और उन्हें मौजूदा पेंशन ही मिलेगी।
- पेंशन की संशोधित दरें (उदाहरण): लेफ्टिनेंट (LT) के लिए 0.5 वर्ष की सेवा पर ₹20,889 और 30 वर्षों की सेवा पर ₹42,000।
वन रैंक वन पेंशन (OROP) योजना क्या है?
वन रैंक वन पेंशन (OROP) योजना एक महत्वपूर्ण पेंशन योजना है जो भारतीय सशस्त्र बलों के कर्मियों के लिए लागू की गई है। इस योजना को केन्द्र सरकार द्वारा वर्ष 2015 में इसकी घोषणा की गई थी। इस योजना का मुख्य उद्देश्य समान रैंक और समान सेवा अवधि वाले सशस्त्र बल कर्मियों को सेवानिवृत्ति के वर्ष से स्वतंत्र रूप से समान पेंशन प्रदान करना है। इसका मतलब यह है कि जो व्यक्ति समान रैंक और सेवा अवधि के साथ सेवानिवृत्त होते हैं, उन्हें पेंशन में कोई भेदभाव नहीं होगा, चाहे वे किसी भी समय पर सेवानिवृत्त हुए हों। इससे पेंशन की राशि में निरंतरता सुनिश्चित होती है, और भविष्य में पेंशन में होने वाली किसी भी वृद्धि का लाभ सभी पूर्व सैनिकों को समान रूप से मिलेगा। यह योजना सशस्त्र बलों के कर्मियों के लिए एक न्यायसंगत और पारदर्शी पेंशन प्रणाली सुनिश्चित करती है, जो उनकी सेवा के प्रति सम्मान और मान्यता का प्रतीक है।
वन रैंक वन पेंशन की आवश्यकता क्यों महसूस हुई?
- वन रैंक वन पेंशन (OROP) की आवश्यकता विभिन्न वर्षों में सेवानिवृत्त होने वाले समान रैंक के कर्मचारियों के बीच पेंशन में अंतर की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए महसूस की गई।
- समय के साथ महंगाई और वेतन आयोगों की सिफारिशों के कारण पेंशन में अंतर बढ़ गया, जिससे पुरानी पीढ़ियों के सेवानिवृत्त सैनिकों की पेंशन वर्तमान पीढ़ी के सैनिकों की तुलना में काफी कम हो गई।
- इस असमानता ने सेवानिवृत्त सैनिकों के बीच असंतोष और आंदोलन को जन्म दिया, क्योंकि उन्हें लगा कि उनके द्वारा की गई सेवा के बावजूद उन्हें समानता और न्याय का पूरा अधिकार नहीं मिल रहा है।
- इस स्थिति को देखते हुए OROP योजना की शुरुआत की गई, ताकि सभी समान रैंक और सेवा अवधि के सैनिकों को समान पेंशन सुनिश्चित की जा सके और पेंशन में किसी भी भेदभाव को समाप्त किया जा सके।
- सरकार ने इसमें हर 5 साल में पेंशन की समीक्षा करने का प्रस्ताव दिया है, जबकि दिग्गज सैनिक वार्षिक समीक्षा चाहते हैं।
वन रैंक वन पेंशन (OROP) योजना का विकास क्रम
- OROP की मांग का प्रारंभ 1971 के बांग्लादेश युद्ध के बाद हुआ। 1973 में, इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सरकार ने इस अवधारणा की शुरुआत की, लेकिन यह समय की आवश्यकता के अनुरूप विकसित नहीं हो पाई।
- 1986 में, राजीव गांधी के नेतृत्व में नागरिक और पुलिस अधिकारियों के वेतन में सुधार किया गया, लेकिन परिणाम संतोषप्रद नही थे।
- फिर वर्ष 2008 में, मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार ने छठे केंद्रीय वेतन आयोग की सिफारिशों के आधार पर ‘रैंक पे’ को छोड़कर ग्रेड पे और पे बैंड की प्रणाली को अपनाया। इस प्रणाली ने भी कुछ अच्छा परिणाम नही दिया।
- इसके बाद 2011 में, कोश्यारी समिति ने सशस्त्र बलों की पेंशन समस्याओं पर ध्यान केंद्रित किया और OROP की जरूरत को स्वीकार किया।
- इसके बाद, 2014 में, नरेंद्र मोदी की बीजेपी सरकार ने OROP योजना को स्वीकार करने की बात कही गई और 2015 में लागू करने की घोषणा की गई, जो समान रैंक और सेवा अवधि वाले सभी सेवानिवृत्त सैनिकों को समान पेंशन सुनिश्चित करती है। 2016 में इसे पूर्ण रूप से लागू कर दिया गया।
कोश्यारी समिति, 2011● कोश्यारी समिति, जिसे 2011 में गठित किया गया था, एक दस सदस्यीय सर्वदलीय संसदीय पैनल थी। ● इसकी अध्यक्षता भगत सिंह कोश्यारी ने की। ● यह समिति ओआरओपी (वन रैंक वन पेंशन) मुद्दे की जांच करने के लिए बनाई गई थी। ● समिति ने आठ महीने के अध्ययन के बाद रिपोर्ट प्रस्तुत की। ● समिति ने रक्षा मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और अन्य सशस्त्र बलों के अधिकारियों का भी सहयोग लिया। |
वन रैंक वन पेंशन (OROP) योजना का कार्यान्वयन
- OROP का सबसे पहला कदम पेंशन निर्धारण है। इसमें यह सुनिश्चित किया जाता है कि समान रैंक और सेवा अवधि वाले सभी सेवानिवृत्त सैनिकों को समान पेंशन मिले। इसके लिए, सरकार द्वारा पेंशन की दरें और श्रेणियाँ निर्धारित की जाती हैं।
- समय-समय पर पेंशन की दरों की समीक्षा की जाती है और संशोधन किया जाता है ताकि महंगाई और अन्य आर्थिक कारकों के अनुसार पेंशन की मान्यता बनाए रखी जा सके।
- सैनिकों और अधिकारियों के पेंशन से संबंधित डेटा एकत्रित किया जाता है। यह डेटा विभिन्न विभागों और संगठनों से प्राप्त किया जाता है, जैसे कि रक्षा मंत्रालय, पेंशन विभाग, और संबंधित सशस्त्र बलों के कार्यालय।
- OROP के कार्यान्वयन समिति नियमित रूप से पेंशन योजना की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करती है और आवश्यक सुधारों की सिफारिश करती है।
- OROP योजना के कार्यान्वयन के लिए आवश्यक बजट का आवंटन किया जाता है। योजना के लाभार्थियों को OROP योजना के बारे में सूचित किया जाता है।
- NDA सरकार ने इस योजना को स्वीकार कर लिया है और इसके क्रियान्वयन के लिए 5500 करोड़ रुपये जारी भी कर दिए गए हैं। हालांकि, इस योजना को लेकर अभी भी दिग्गज सैनिकों की कुछ शिकायतें बरकरार हैं।
वन रैंक वन पेंशन (OROP) योजना पर सर्वोच्च न्यायालय की प्रतिक्रिया
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सुझाव दिया था कि सशस्त्र बलों का उचित प्रतिनिधित्व या तो केंद्रीय वेतन आयोग में होना चाहिए या अलग से सशस्त्र बल वेतन आयोग का गठन किया जाए।
- न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि सशस्त्र बलों के अधिकारियों को उनकी सेवाओं के लिए पूरा सम्मान और अधिकार मिलना चाहिए।
- सरकार से यह भी अपेक्षा की गई कि वह नागरिक-सैन्य असमानता और लड़ाकू एवं गैर-लड़ाकू अधिकारियों के बीच वेतन और सुविधाओं में असमानता के मुद्दों को जल्द से जल्द हल करे।
- न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि सशस्त्र बलों के सम्मान और हक की रक्षा करना आवश्यक है, ताकि देश के रक्षकों को उनका सही अधिकार और पहचान मिल सके।
- यह कदम न केवल उनके मनोबल को बढ़ाएगा बल्कि देश की सुरक्षा के प्रति उनकी निष्ठा और योगदान को भी सही तरीके से मान्यता देगा।
OROP (वन रैंक, वन पेंशन) के पक्ष और विपक्ष:
पक्ष में तर्क:
- सेना के जवानों के लिए न्याय: सेना के जवान सामान्यतः 35-40 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होते हैं, जबकि अन्य सरकारी कर्मचारी 60 वर्ष तक सेवा करते हैं। यह योजना पूर्व सैनिकों को समान रैंक और सेवा वर्ष के आधार पर समान पेंशन प्रदान करके उनके साथ न्याय करती है।
- सम्मान और मान्यता: सेना के जवानों का देश के लिए योगदान अतुलनीय होता है। ओआरओपी से यह सुनिश्चित होता है कि पूर्व सैनिकों का बलिदान और सेवा सराहनीय हो और उन्हें समान स्तर की पेंशन मिले।
- आर्थिक सुरक्षा: ओआरओपी से सेवानिवृत्त सैनिकों को आर्थिक रूप से स्थिरता मिलती है, विशेषकर उन लोगों को जो उच्चतर वेतनमान के अनुसार सेवा के बाद आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रहे थे।
विपक्ष में तर्क:
- वित्तीय बोझ: इस योजना से सरकारी खजाने पर प्रतिवर्ष 8,000 से 10,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। हर वेतन आयोग के साथ यह राशि और बढ़ेगी, जिससे देश की आर्थिक स्थिति प्रभावित हो सकती है।
- अन्य विभागों की मांग: ओआरओपी लागू करने से अन्य अर्धसैनिक बलों, पुलिस बलों आदि द्वारा भी समान पेंशन की मांग उठ सकती है, जिससे सरकार पर और भी वित्तीय दबाव बढ़ सकता है।
- प्रशासनिक जटिलताएँ: पुराने डेटा और रिकॉर्ड्स का अभाव, विशेषकर 1940-1950 के दशक के सैनिकों का, योजना के कार्यान्वयन को चुनौतीपूर्ण बनाता है।
UPSC पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) में शामिल हो सकता है? (2017) (a) केवल निवासी भारतीय नागरिक (b) केवल 21 से 55 वर्ष की आयु के व्यक्ति (c) अधिसूचना की तारीख के बाद सेवाओं में शामिल होने वाले सभी राज्य सरकार के कर्मचारी तथा संबंधित राज्य की सरकारों द्वारा अधिसूचना किये जाने की तारीख के पश्चात सेवा में आये हैं (d) सशस्त्र बलों सहित केंद्र सरकार के सभी कर्मचारी, जो 1 अप्रैल, 2004 या उसके बाद सेवाओं में शामिल हुए हैं |
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