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भारत में सर्पदंश एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है, जो प्रतिवर्ष लगभग 58,000 लोगों की मौत का कारण बनती है। यह आंकड़ा दुनिया में सबसे अधिक है। इसके बावजूद, सांप के काटने की घटनाओं की रिपोर्टिंग बेहद कम होती है, जिससे इलाज में कठिनाई आती है और आंकड़ों का सही मूल्यांकन नहीं हो पाता। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इन मामलों की विस्तृत जांच की जाए, तो सर्पदंश से होने वाली मृत्यु दर और विकलांगता को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
WHO की रणनीति और भारत का लक्ष्य:
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रणनीति के अनुसार, भारत ने 2030 तक सर्पदंश से होने वाली मृत्यु और विकलांगता को आधा करने का लक्ष्य रखा है।
- भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) इस दिशा में अस्पताल और समुदाय-आधारित सर्पदंश के आंकड़े एकत्र कर रहा है।
आंकड़ों की कमी और अध्ययन:
- 2013 में सर्पदंश को WHO की उपेक्षित बीमारियों की सूची से हटा दिया गया था, लेकिन 2017 में इसे फिर से शामिल किया गया।
- इसका मुख्य कारण भारत में सर्पदंश से संबंधित डेटा की कमी है।
- ICMR द्वारा एक सर्वेक्षण किया जा रहा हैं, जो 14 राज्यों में 84 मिलियन लोगों को कवर कर रहा है।
रिपोर्टिंग में कमी के कारण: सांप काटने की घटनाएं कम रिपोर्ट होने का एक बड़ा कारण यह है कि कई लोग अस्पतालों में जाने के बजाय धार्मिक या पारंपरिक उपचार का सहारा लेते हैं।
मुआवजा और राज्य सरकार की भूमिका:
- मध्य प्रदेश में 2020 से 2022 के बीच सर्पदंश से हुई मौतों के विश्लेषण से पता चला कि राज्य सरकार ने मुआवजे के रूप में 28 मिलियन अमेरिकी डॉलर का भुगतान किया, जो रिपोर्ट की गई 330 मौतों से अधिक है, लेकिन अनुमानित 5,200 मौतों से कम है।
विष के प्रभाव और एंटीवेनम (सर्पदंश):
- बेंगलुरु में भारतीय विज्ञान संस्थान के शोध से यह भी पता चला है कि रसेल वाइपर और चश्माधारी कोबरा का जहर उनके जीवनकाल में नाटकीय रूप से भिन्न होता है।
- शोधकर्ताओं ने नए एंटीवेनम समाधानों की खोज में काम करना शुरू किया है, जिसमें पुनः संयोजक एंटीबॉडी और पेप्टाइड-आधारित उपचार शामिल हैं।
निष्कर्ष: भारत में सर्पदंश से होने वाली मौतों की संख्या बेहद चिंताजनक है और इसे कम करने के लिए सही आंकड़े और समुचित चिकित्सा सुविधाओं की आवश्यकता है। सर्पदंश के मामलों की सटीक रिपोर्टिंग और अध्ययन से इस दिशा में सुधार लाया जा सकता है।
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