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आत्महत्या के लिए उकसाने संबंधी कानून

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संदर्भ:

सुप्रीम कोर्ट ने जांच एजेंसियों को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप लगाने में संयम बरतने की आवश्यकता पर फिर से जोर दिया है। हाल ही में न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 108 का प्रयोग अनावश्यक रूप से किया जा रहा है।

आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध (भारतीय दंड संहिता में):

उकसाने की परिभाषा:

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 107 (भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 45 के समकक्ष) के अनुसार उकसाने में शामिल हैं:

  • किसी व्यक्ति को कार्य करने के लिए उकसाना।
  • दूसरों के साथ मिलकर षड्यंत्र रचना।
  • किसी कार्य को जानबूझकर सहायता प्रदान करना, चाहे वह कृत्य द्वारा हो या अवैध चूक के माध्यम से।

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप को सिद्ध करने के लिए यह साबित करना आवश्यक है कि आरोपी ने प्रत्यक्ष रूप से मृतक को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित किया या सहायता की।

आत्महत्या के लिए उकसाने पर दंड:

  • यह अपराध सत्र न्यायालय (Sessions Court) में विचारणीय होता है।
  • यह संज्ञेय (Cognizable), गैरजमानती (Non-bailable), और गैरसमझौतायोग्य (Non-compoundable) अपराध है।
  • धारा 306 IPC (BNS की धारा 108 के समकक्ष) के तहत दंड:
    • कैद: 10 वर्ष तक की सजा।
    • जुर्माना: अतिरिक्त आर्थिक दंड।

आत्महत्या के लिए उकसाने के मामलों में दोषसिद्धि दर:

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) 2022 के आंकड़ों के अनुसार:

  • धारा 306 IPC के लिए दोषसिद्धि दर: 17.5%।
  • सभी IPC अपराधों की समग्र दोषसिद्धि दर: 69.8%।
  • संज्ञेय अपराधों (जिसमें आत्महत्या के लिए उकसाना शामिल है) की दोषसिद्धि दर: 54.2%।

आत्महत्या के लिए उकसाने का मानक

सुप्रीम कोर्ट का अक्टूबर 2024 का निर्णय:

सुप्रीम कोर्ट ने एक विक्रेता (salesperson) की आत्महत्या के मामले को खारिज कर दिया, जिसमें स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (VRS) से जुड़े कथित कार्यस्थल उत्पीड़न का आरोप लगाया गया था।

मुख्य बिंदु:

  • न्यायालय ने कार्यस्थल से संबंधित आत्महत्या मामलों में “अनावश्यक अभियोजन” से बचने की आवश्यकता पर बल दिया।
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि:
    1. उच्च प्रमाणिकता स्तर अपेक्षित है, विशेषकर तब जब मृतक और आरोपी के बीच संबंध आधिकारिक हो (जैसे, नियोक्ता-कर्मचारी)।
    2. अभियोजन को यह साबित करना होगा कि आरोपी ने जानबूझकर आत्महत्या के लिए प्रेरित किया।
    3. आत्महत्या के लिए स्पष्ट और गंभीर उकसावे या प्रोत्साहन का ठोस साक्ष्य प्रस्तुत करना अनिवार्य है।

आत्महत्या के लिए उकसाने पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णय:

  1. एम मोहन बनाम राज्य (2011):
    • आरोप सिद्ध करने के लिए यह आवश्यक है कि:
      • आरोपी द्वारा सक्रिय या प्रत्यक्ष कृत्य किया गया हो।
      • मृतक के पास आत्महत्या के अलावा कोई अन्य विकल्प न बचा हो।
      • कृत्य जानबूझकर इस स्थिति में धकेलने के इरादे से किया गया हो।
  1. उदे सिंह बनाम हरियाणा राज्य (2019):
    • आरोप सिद्ध करने के लिए यह आवश्यक है कि:
      • प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आत्महत्या के लिए उकसाने के साक्ष्य उपलब्ध हों।
      • यदि आरोपी के निरंतर कार्य या व्यवहार के कारण मृतक को आत्महत्या के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं दिखता, तो यह धारा 306 IPC के अंतर्गत आ सकता है।

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