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संदर्भ:
कार्बन टैक्स: मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को अंतिम रूप देने के लिए जारी वार्ताओं के तहत, भारत यूरोपीय संघ (EU) के प्रस्तावित कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) को लेकर चिंता जता रहा है। यह तंत्र जनवरी 2026 से स्टील और एल्युमीनियम जैसे कार्बन-गहन आयात पर शुल्क लगाएगा। कुछ उत्पादों पर यह कार्बन टैक्स 30% तक हो सकता है, जिससे यूरोपीय बाजार में भारत के निर्यात, विशेष रूप से धातुओं और अन्य कार्बन-गहन वस्तुओं पर असर पड़ सकता है।
यूरोपीय संघ कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM): कार्बन टैक्स
CBAM एक कार्बन शुल्क (carbon tariff) है, जिसे यूरोपीय ग्रीन डील (European Green Deal) के तहत लागू किया गया है। यह 2026 में प्रभावी होगा, जबकि वर्तमान संक्रमणकालीन चरण (2023-2025) तक रहेगा।
उद्देश्य:
- कार्बन मूल्य निर्धारण: कार्बन-गहन उत्पादों के उत्पादन से उत्सर्जित कार्बन पर उचित मूल्य लगाना।
- कार्बन रिसाव को रोकना: उत्पादन को ऐसे देशों में स्थानांतरित होने से रोकना, जहां कार्बन लागत कम या नहीं है।
- स्वच्छ औद्योगिक उत्पादन को प्रोत्साहन: गैर-EU देशों में हरित तकनीकों को अपनाने के लिए प्रेरित करना।
- जलवायु लक्ष्यों की रक्षा: यह सुनिश्चित करना कि EU के जलवायु परिवर्तन उद्देश्यों पर बाहरी कार्बन उत्सर्जन प्रभाव न डाले।
- WTO नियमों के अनुरूप: CBAM को विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों के अनुकूल बनाया गया है।
मुख्य विशेषताएँ:
- कार्बन प्रमाणपत्र (Carbon Certificates):
- EU आयातकों को CBAM प्रमाणपत्र खरीदने होंगे, जो स्थानीय उत्पादन के समान कार्बन कीमत दर्शाएंगे।
- इन प्रमाणपत्रों की कीमत EU कार्बन क्रेडिट बाजार की नीलामी कीमतों के अनुसार तय होगी।
- प्रत्येक वर्ष आयातित वस्तुओं की मात्रा और उनके अंतर्निहित कार्बन उत्सर्जन के आधार पर आवश्यक प्रमाणपत्रों की संख्या निर्धारित की जाएगी।
- यदि कोई देश यह साबित कर सकता है कि आयातित वस्तु के उत्पादन पर पहले ही कार्बन शुल्क चुका दिया गया है, तो यह राशि समायोजित की जाएगी।
- जिन देशों में EU के बराबर घरेलू कार्बन मूल्य निर्धारण लागू है, वे बिना CBAM प्रमाणपत्र खरीदे निर्यात कर सकते हैं।
भारत की चिंताएँ और CBAM का प्रभाव:
भारत की प्रमुख चिंताएँ:
- असमान और अनुचित करार:
- भारत CBAM को”साझी लेकिन भिन्न जिम्मेदारियों” (Common But Differentiated Responsibilities – CBDR) सिद्धांत का उल्लंघन मानता है।
- CBDR के अनुसार, विकसित और विकासशील देशों पर जलवायु परिवर्तन से निपटने की समान जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए।
- EU का तर्क है कि CBAM विश्व व्यापार संगठन (WTO) नियमों के अनुरूप हैऔर यह केवल EU की घरेलू जलवायु नीतियों का अंतर्राष्ट्रीय विस्तार है।
- डेटा गोपनीयता (Data Privacy) की समस्या:
- CBAM के तहत, भारतीय निर्यातकों को 1,000 से अधिक डेटा पॉइंट्स प्रस्तुत करने होंगे, जो कईलघु एवं मध्यम उद्यमों (SMEs) के लिए चुनौतीपूर्ण है।
- यह अनुपालन बोझ छोटे व्यवसायों के लिए अधिक कठिन बना देगा।
- व्यापार और पर्यावरणीय मुद्दों को अलग रखना:
- भारत का मानना है कि कार्बन टैक्स जैसे पर्यावरणीय मुद्दों को व्यापार नीतियों से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।
- इससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रभावित होगा और विकासशील देशों पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
भारत के निर्यात पर प्रभाव:
- प्रभावित क्षेत्र:
- भारत EU को बड़ी मात्रा में इस्पात (Steel) और एल्यूमिनियम (Aluminium) निर्यात करता है, जिन पर CBAM के तहत 20-35% टैक्स लगाया जा सकता है।
- यदि CBAM अधिक उत्पादों पर लागू होता है, तोभारत के कुल EU निर्यात का 43% (लगभग $37 बिलियन) खतरे में पड़ सकता है।
- 2022-23 का निर्यात आँकड़ा:
- $75 बिलियनमूल्य के भारतीय उत्पाद EU को निर्यात किए गए।
- भारत के कुल निर्यात का15% से अधिक EU को जाता है।
- इस्पात, कपड़ा और रसायन जैसे प्रमुख क्षेत्र बढ़े हुए करों के कारण प्रभावित होंगे।