संदर्भ:
भारत में वायु प्रदूषण संकट: भारत ने 2026 तक पीएम 2.5 (PM 2.5) के स्तर को 2017 के मुकाबले 40% तक घटाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। दिल्ली सहित कई महानगर विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में शीर्ष पर हैं। औद्योगिक गतिविधियाँ, वाहनों से उत्सर्जन, निर्माण कार्य और पराली जलाना जैसी अनेक वजहों से वायु की गुणवत्ता लगातार गिरती जा रही है, जिससे जनस्वास्थ्य और पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।
भारत में वायु प्रदूषण संकट:
- लगातार बनी समस्या: वायु प्रदूषण केवल मौसमी परेशानी नहीं, बल्कि एक स्थायी और गंभीर स्वास्थ्य संकट है।
- प्रदूषण का प्रभाव: अस्पतालों में सांस संबंधी बीमारियों के मरीजों की भीड़, स्कूलों की बंदी, और शहरों का धुंध में समा जाना आम हो गया है।
- वैश्विक रैंकिंग: भारतीय शहर अक्सर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार होते हैं।
- सरकारी प्रयास: राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP), भारत VI मानक, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY), और कोयला आधारित उद्योगों को चरणबद्ध तरीके से हटाने जैसी योजनाओं से सुधार की कोशिशें हो रही हैं।
- बिखरा हुआ प्रयास: हालांकि, प्रतिक्रिया अभी भी धीमी और असंगठित है। ठोस सुधार के लिए बेहतर तालमेल और कार्यान्वयन की आवश्यकता है।
भारत में वायु प्रदूषण संकट से निपटने की चुनौतियाँ:
- संरचनात्मक समस्या: इसे केवल तकनीकी मुद्दा मानना गलत है। यह शासन क्षमता, जनसंख्या दबाव, सामाजिक-आर्थिक असमानता, व्यवहारिक मानदंड और आर्थिक व्यवस्था से जुड़ी एक गहरी संरचनात्मक समस्या है।
- हितधारकों की भूमिका: वैज्ञानिक वायु गुणवत्ता का विश्लेषण करते हैं, लेकिन प्रभावी समाधान नगर निकायों, योजनाकारों, अभियंताओं और सामुदायिक नेताओं के सक्रिय प्रयासों पर निर्भर करता है।
- बजट और बुनियादी ढांचे की कमी: इन हितधारकों को सीमित बजट, पुरानी अवसंरचना और स्थानीय प्राथमिकताओं की प्रतिस्पर्धा जैसी बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
- महत्वाकांक्षी लक्ष्य: भारत ने 2026 तक 5 स्तर को 2017 के स्तर से 40% तक कम करने का लक्ष्य रखा है, लेकिन जमीनी सच्चाइयों को नजरअंदाज करने से यह लक्ष्य अधूरा रह सकता है।
- परिवहन संबंधी समस्या: सिर्फ़ वाहनों को दोष देना पर्याप्त नहीं। प्रदूषण कई कारकों पर निर्भर करता है, जैसे—वाहनों का प्रकार, ईंधन, उम्र, यात्रा दूरी और यातायात स्थिति। जब तक इन पहलुओं पर ध्यान नहीं दिया जाएगा, स्थानीय सरकारों के लिए प्रभावी उत्सर्जन नियंत्रण रणनीतियाँ बनाना मुश्किल रहेगा।
आगे की राह:
- गतिविधि–आधारित मापन: स्टोव बदलने या डीजल बसों को हटाने जैसे ठोस कार्यों पर ध्यान देना चाहिए ताकि प्रभाव को स्पष्ट रूप से मापा जा सके और जवाबदेही बढ़े।
- क्षमता निर्माण: जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को सशक्त बनाना और उनकी जिम्मेदारियों को वायु गुणवत्ता लक्ष्यों के अनुरूप बनाना आवश्यक है।
- चरणबद्ध, डेटा–आधारित दृष्टिकोण:
- चरण I: स्थानीय उत्सर्जन प्रोफाइल तैयार कर प्रमुख प्रदूषण स्रोतों की पहचान करें।
- चरण II: डेटा के आधार पर लक्षित कार्रवाइयों के लिए सीधे वित्तीय सहायता जोड़ें।
- चरण III: वास्तविक प्रगति मापने के लिए केवल प्रदूषण स्तर ही नहीं, बल्कि उत्सर्जन में आई कमी को भी ट्रैक करें।