WHO Released New Reports on Mental Health
संदर्भ:
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने हाल ही में दो नई रिपोर्टें जारी की हैं – ‘वर्ल्ड मेंटल हेल्थ टुडे’ और ‘मेंटल हेल्थ एटलस 2024’।
ये रिपोर्टें मानसिक स्वास्थ्य की वैश्विक स्थिति पर गहन दृष्टि प्रस्तुत करती हैं और आने वाले सितंबर 2025 में होने वाली संयुक्त राष्ट्र की उच्च–स्तरीय बैठक (जो गैर-संचारी रोगों तथा मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण के प्रोत्साहन पर केंद्रित होगी) से पहले वैश्विक विमर्श को दिशा देने वाले महत्वपूर्ण साधन के रूप में सामने आई हैं।
रिपोर्ट के अहम निष्कर्ष:
- महिलाओं पर अधिक असर: मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से महिलाएँ पुरुषों की तुलना में कहीं अधिक प्रभावित हैं। दोनों लिंगों में सबसे आम लक्षण हैं – बेचैनी (Anxiety) और अवसाद (Depression)।
- आत्महत्या एक बड़ी चुनौती: वर्ष 2021 में करीब 27 लाख लोगों ने आत्महत्या की, जो युवाओं में मृत्यु का प्रमुख कारण है। संयुक्त राष्ट्र का लक्ष्य था कि 2030 तक आत्महत्या दर में 33% कमी लाई जाए, लेकिन मौजूदा रुझान के अनुसार केवल 12% प्रगति ही हो पाई है।
- निवेश की गंभीर कमी: दुनिया के देशों की सरकारें मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं पर कुल स्वास्थ्य बजट का केवल 2% ही खर्च करती हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि 2017 से इस आँकड़े में कोई बदलाव नहीं हुआ है।
- उच्च और निम्न–आय वाले देशों का अंतर: उच्च-आय वाले देशों में मानसिक स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति 65 डॉलर खर्च किए जाते हैं, जबकि निम्न-आय वाले देशों में यह आँकड़ा सिर्फ04 डॉलर है।
- कार्यबल की भारी कमी: वैश्विक स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए प्रति एक लाख लोगों पर केवल 13 मानसिक स्वास्थ्यकर्मी ही उपलब्ध हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट में कुछ सकारात्मक प्रगति के बारे में भी बताया गया है जैसे–
- प्राथमिक देखभाल में एकीकरण: पहले से कहीं अधिक देशों में अब मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में जोड़ा गया है। साथ ही, स्कूलों और समुदायों में शुरुआती चरण में ही समर्थन कार्यक्रमों का विस्तार हुआ है।
- आपातकालीन प्रतिक्रिया में सुधार: आज 80% से अधिक देशों में आपातकालीन प्रतिक्रिया योजनाओं में मानसिक स्वास्थ्य और मनोसामाजिक समर्थन शामिल है। 2020 में यह आंकड़ा केवल 40% देशों तक सीमित था।
- टेलीहेल्थ सेवाओं का विस्तार: कई देशों ने टैलीस्वास्थ्य सेवाएँ शुरू की हैं, जिससे मानसिक स्वास्थ्य सहायता तक पहुँच आसान हो रही है।
- मानवाधिकार के रूप में मान्यता: डब्ल्यूएचओ ने जोर दिया है कि मानसिक स्वास्थ्य को एक बुनियादी मानवाधिकार के रूप में देखा जाना चाहिए। इसके लिए सरकारों को निवेश बढ़ाने, कानूनी संरक्षण उपायों को मजबूत करने, समुदाय-आधारित और व्यक्ति-केंद्रित देखभाल को बढ़ावा देने और मौजूदा व्यवस्थाओं में सुधार की जरूरत है।
मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं – भारत
- राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NMHS) 2015-16के अनुसार:
- भारत में 6% वयस्क मानसिक रोगों से प्रभावित हैं।
- मानसिक रोगों के लिए उपचार का अंतर (Treatment Gap) 70% से 92% तक है।
- शहरी मेट्रो क्षेत्रों में मानसिक रोगों की संभावना 5% है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 6.9% है।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25ने मानसिक स्वास्थ्य और देश की आर्थिक भविष्य के बीच संबंध को उजागर किया।
भारत के युवाओं में बढ़ती मानसिक स्वास्थ्य चिंताओं के मुख्य कारण:
- अत्यधिक इंटरनेट और सोशल मीडिया उपयोग:चिंता, नींद संबंधी विकार और ध्यान की समस्याएं बढ़ती हैं।
- परिवार की सहभागिता की कमी:कमजोर सामाजिक समर्थन प्रणाली भावनात्मक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डालती है।
- शत्रुतापूर्ण कार्यस्थल और लंबे कार्य घंटे:बर्नआउट, तनाव और उत्पादकता में कमी।
- अस्वास्थ्यकर जीवनशैली:अत्यधिक संसाधित भोजन और शारीरिक गतिविधियों की कमी मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाती है।