India Advocates for UNESCO Recognition of Chhath Puja

संदर्भ:
भारत सरकार ने छठ पूजा को यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर (Intangible Cultural Heritage) सूची में शामिल कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इस नामांकन की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सितंबर 2025 में की थी। यह पहल इस पर्व के गहरे सांस्कृतिक, सामाजिक और पारिस्थितिक महत्व को उजागर करती है, जो भारत की लोक आस्था और प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक है।
छठ पूजा: यूनेस्को मान्यता की दिशा में भारत का प्रयास:
- पर्व का परिचय:
- छठ एक प्राचीन चार दिवसीय हिन्दू पर्व है जो सूर्य देव और उनकी शक्ति छठी मइया (उर्वरता व कल्याण की देवी) को समर्पित है।
- मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है, साथ ही विश्वभर में भारतीय प्रवासी समुदाय भी इसे मनाते हैं।
- इस पर्व में उपवास, सूर्य को “अर्घ्य” अर्पित करना, और प्राकृतिक जलाशयों में पूजा-अर्चना की जाती है।
- यह पर्व हिंदू माह कार्तिक (अक्टूबर–नवंबर) में मनाया जाता है।
- यूनेस्को मान्यता की मांग के प्रमुख कारण:
- पर्यावरणीय महत्व: यह प्रकृति के साथ संतुलित संबंध का प्रतीक है — श्रद्धालु नदी घाटों की सफाई करते हैं और बाँस की टोकरी व मिट्टी के दीपक जैसे पर्यावरण-अनुकूल सामग्री का उपयोग करते हैं।
- सामाजिक एकता: छठ पूजा जाति, धर्म और वर्ग से ऊपर उठकर सामाजिक समानता और सामूहिकता का संदेश देती है।
- सांस्कृतिक संवर्धन: यूनेस्को की मान्यता भारत की प्राचीन और विशिष्ट सांस्कृतिक परंपरा को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाएगी।
- प्रवासी भारतीय जुड़ाव: यह प्रयास विदेशों में बसे भारतीय समुदायों के सांस्कृतिक गर्व और पहचान को और सशक्त करेगा।
- 2026–27 के लिए बहुराष्ट्रीय नामांकन:
- सितंबर 2025 में संस्कृति मंत्रालय ने सूरीनाम, नीदरलैंड्स और संयुक्त अरब अमीरात के राजनयिक प्रतिनिधियों के साथ परामर्श किया।
- इन देशों का चयन वहाँ के प्रवासी भारतीय समुदाय द्वारा छठ पूजा के व्यापक आयोजन के कारण किया गया।
- यह पहल 2021 में यूनेस्को सूची में शामिल दुर्गा पूजा की तरह एक बहुराष्ट्रीय नामांकन मॉडल पर आधारित है।
- संगीत नाटक अकादमी संस्कृति मंत्रालय के मार्गदर्शन में 2026–27 चक्र के लिए छठ पूजा का दस्तावेज़ तैयार कर रही है।
- संभावित मान्यता का प्रभाव:
- वैश्विक पहचान: छठ पूजा को विश्व मंच पर मान्यता मिलेगी और इसकी परंपराएँ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जानी जाएँगी।
- सांस्कृतिक पर्यटन में वृद्धि: मान्यता से स्थानीय कारीगरों और शिल्पकारों को बढ़ावा मिलेगा तथा पर्यटन से स्थानीय अर्थव्यवस्था सशक्त होगी।
- संरक्षण और दस्तावेज़ीकरण: पर्व की परंपराओं को व्यवस्थित रूप से संरक्षित और भावी पीढ़ियों तक पहुँचाया जा सकेगा।
- मूल्यों का प्रसार: पर्यावरण संरक्षण, समानता और अनुशासन के मूल्य वैश्विक स्तर पर और मजबूत होंगे।
यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (Intangible Cultural Heritage – ICH) रूपरेखा
- स्थापना और उद्देश्य:
- यूनेस्को ने 2003 के “Convention for the Safeguarding of Intangible Cultural Heritage” के तहत 2008 में अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची (ICH List) की स्थापना की।
- इसका उद्देश्य जीवंत परंपराओं, सांस्कृतिक प्रथाओं और सामुदायिक रीतियों की पहचान, संरक्षण और संवर्धन करना है।
- मान्यता का दायरा:
- सूची में लोक कला, पारंपरिक संगीत, नृत्य, अनुष्ठान, उत्सव और सामाजिक परंपराएँ शामिल की जाती हैं।
- यह उन सांस्कृतिक रूपों को सम्मान देती है जो किसी समुदाय की पहचान, निरंतरता और सामूहिक स्मृति को दर्शाते हैं।
- भारत की स्थिति:
- भारत के 15 सांस्कृतिक तत्व इस सूची में पहले से शामिल हैं।
- प्रमुख उदाहरण: योग, कुंभ मेला, दुर्गा पूजा, और नवरोज़।
- भारत का लक्ष्य अपनी विविध और जीवंत सांस्कृतिक परंपराओं को इस वैश्विक मंच पर और अधिक प्रतिनिधित्व दिलाना है।
