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वैश्विक मीथेन स्थिति रिपोर्ट 2025 (Global Methane Status Report 2025) | UPSC

Global Methane Status Report 2025

Global Methane Status Report 2025

संदर्भ:

हाल ही में UN Environment Programme (UNEP) और Climate and Clean Air Coalition (CCAC) ने Global Methane Status Report (GMSR) 2025 जारी की। इस रिपोर्ट में वैश्विक मीथेन उत्सर्जन में प्रगति, वित्तीय आवश्यकताओं और “Global Methane Pledge” (GMP) के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए किए गए प्रयासों का मूल्यांकन किया गया है। 

वैश्विक मीथेन स्थिति रिपोर्ट 2025 के मुख्य बिंदु: 

  • उत्सर्जन: रिपोर्ट के मुताबिक, विश्वव्यापी मीथेन उत्सर्जन अभी पूरी तरह नहीं घटी है — वर्तमान नीतियों के तहत 2030 तक उत्सर्जन में सिर्फ़ ~5% की कमी की उम्मीद है, जबकि 2020 के स्तर से यह वृद्धि आगे भी जारी रहने का अनुमान है। 
  • Global Methane Pledge (GMP) लक्ष्य: GMP में तय लक्ष्य 2030 तक 2020 के उत्सर्जन स्तर की तुलना में 30% कमी का है, लेकिन रिपोर्ट के अनुसार अब तक की प्रगति इस लक्ष्य से बहुत पीछे है। 
  • राष्ट्रीय नीतिगत प्रतिबद्धता: लगभग 65% देशों ने अब अपनी NDCs (राष्ट्रीय निर्धारित योगदान) में मीथेन-विशिष्ट उपाय जोड़े हैं, जो 2021 के बाद एक बड़ा परिवर्तन है। 
  • मिटिगेशन की तकनीकी क्षमता: रिपोर्ट में बताया गया है कि सिद्ध और लागत-प्रभावी समाधान पहले से ही उपलब्ध हैं: जैसे कि ऊर्जा क्षेत्र में लीक्स का पता लगाना और मरम्मत करना, परित्यक्त कुओं (wells) को सील करना। कचरा प्रबंधन लगभग 18% क्षमता कचरे में है, जैसे अपशिष्ट निपटान, लैंडफिल गैस प्रबंधन। कृषि लगभग 10% क्षमता कृषि आधारित स्रोतों जैसे चावल की खेती, गोबर प्रबंधन में निहित है।
  • न्यून लागत पर कमी: अनुमान है कि 2030 तक उत्सर्जन घटाने की कुल तकनीकी क्षमता का 80% से अधिक हिस्सा कम लागत पर हासिल किया जा सकता है। 
  • उच्चतम क्षमता ऊर्जा क्षेत्र में: रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल कमी का लगभग 72% क्षमता ऊर्जा क्षेत्र (तेल, गैस, कोयला) में है, इसके बाद वेस्ट सेक्टर (~18%) और कृषि (~10%) का योगदान है। 
  • मानव स्वास्थ्य: पूरी तरह लागू किए गए नियंत्रण उपायों से 2030 तक अनुमानित 1.8 लाख से अधिक समयपूर्व मौतें रोकी जा सकती हैं और लगभग 1,90 लाख टन से अधिक फसल हानि (जैसे चावल, गेहूं) बचाई जा सकती है। 
  • भारत की भूमिका: रिपोर्ट में भारत को तीसरे सबसे बड़े मानव-जनित मीथेन उत्सर्जक के रूप में चिह्नित किया गया है, जहां प्रमुख स्रोतों में फसल अवशेष जलाना (stubble burning) और कृषि गतिविधियाँ शामिल हैं। भारत को GMP में शामिल नहीं माना गया है (विशिष्ट कम प्रतिबद्धता), लेकिन रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि भारत को अपनी NDC में कृषि आधारित मीथेन नियंत्रण उपायों को शामिल करना चाहिए। 
  • मापन और पारदर्शिता : रिपोर्ट के अनुसार उत्सर्जन की माप, रिपोर्टिंग और सत्यापन (MRV) तंत्रों को मजबूत करना अनिवार्य है, ताकि नीतियों की प्रगति वास्तविक समय में ट्रैक की जा सके। 
  • नेतृत्व और वित्त: मंत्री स्तर पर भी आह्वान किया गया है कि तकनीकों और नीतियों को तेजी से बढ़ाया जाए। इसके लिए वित्तीय संसाधन, पारदर्शिता, और बहु-क्षेत्री (ऊर्जा, कृषि, वेस्ट) साझेदारी की आवश्यकता है। UNEP के अनुसार, GMP लक्ष्य तक पहुंचने के लिए वर्ष 2030 तक 127 अरब डॉलर प्रति वर्ष की जरूरत है।

मीथेन क्या हैं?

मीथेन (CH₄) एक सरल हाइड्रोकार्बन गैस है, जो पृथ्वी के वायुमंडल में मौजूद सबसे शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसों में से एक मानी जाती है। यह रंगहीन, गंधहीन और अत्यधिक ज्वलनशील गैस है, जिसका निर्माण प्राकृतिक और मानवजनित दोनों प्रक्रियाओं से होता है। प्राकृतिक रूप से मीथेन दलदल, आर्द्रभूमियों, दीमक गतिविधियों, ज्वालामुखीय क्षेत्रों और भूगर्भीय गैस निकासी से निकलती है। मीथेन का ग्रीनहाउस प्रभाव CO₂ की तुलना में कहीं अधिक है — 20 साल की अवधि में यह लगभग 80 गुना अधिक ताप-संचयन क्षमता रखती है। इसकी वायुमंडलीय आयु लगभग 12 वर्ष होती है, जो इसे शॉर्ट-लिव्ड क्लाइमेट पॉल्यूटेंट (SLCP) बनाती है। ऊर्जा क्षेत्र में मीथेन प्राकृतिक गैस का मुख्य घटक है।

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