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प्रोटिड्रिसेरस अल्बोकैपिटाटस की नई आउलफ्लाई प्रजाति की खोज (Discovery of a new owlfly species Protidricerus albocapitatus) | Apni Pathshala

Discovery of a new owlfly species Protidricerus albocapitatus

Discovery of a new owlfly species Protidricerus albocapitatus

संदर्भ:

केरल के मलप्पुरम जिले के नेडुमकायम वन में वैज्ञानिकों द्वारा Protidricerus albocapitatus नामक नई आउलफ्लाई प्रजाति की खोज की गई। 134 वर्षों के अंतराल के बाद यह पहली बार है, जब भारत में आउलफ्लाई की कोई नई प्रजाति पहचानी गई है। यह खोज क्राइस्ट कॉलेज, इरिंजलाकुडा के Shadpada Entomology Research Lab (SERL) के वैज्ञानिकों द्वारा की गई।

प्रोटिड्रिसेरस अल्बोकैपिटाटस क्या है?

प्रोटिड्रिसेरस अल्बोकैपिटाटस एक नई खोजी गई आउलफ्लाई (Owlfly) प्रजाति है। यह कीट Neuroptera क्रम और Myrmeleontidae परिवार से संबंध रखता है।

प्रोटिड्रिसेरस अल्बोकैपिटाटस की विशेषताएँ:

  • सफेद गुच्छेदार सिर – प्रजाति की पहचान का सबसे विशिष्ट चिन्ह।
  • क्लब्ड (गदा-आकार) एंटेना – आउलफ्लाई समूह की विशिष्ट परंतु बेहद उभरी हुई संरचना।
  • बड़ी उभरी हुई आँखें – रात/संध्या समय शिकार करने के लिए अनुकूलित।
  • लंबा व पतला शरीर – हवाई शिकार और त्वरित उड़ान क्षमता में सहायक।
  • विशिष्ट पंख पैटर्न – उभरने के बाद पंखों में विशेष रंग/पैटर्न विकसित होने की प्रवृत्ति।
  • दुर्लभता और स्थल-विशिष्टता – पश्चिमी घाट के सीमित वन क्षेत्र (नेडुमकायम) में पाई जाने वाली अत्यंत दुर्लभ प्रजाति।

आउलफ्लाई (Owlflies) का परिचय:

  • वर्गीकरण: आउलफ्लाई कीटों का एक विशिष्ट समूह है, जो Myrmeleontidae परिवार से संबंधित है।  यह समूह होलोमेटाबोलस कीटों का हिस्सा है, यानी इनके जीवनचक्र में अंडा, लार्वा, प्यूपा और वयस्क—चारों अवस्थाएँ स्पष्ट रूप से पाई जाती हैं।

  • पहचान: आउलफ्लाई अपनी बड़ी उभरी हुई आँखों के कारण आसानी से पहचाने जाते हैं। इनकी आँखें उल्लू जैसी लगने के कारण इन्हें “Owl-fly” कहा जाता है। इनके पंख सामान्यतः झिल्लीदार होते हैं और कई प्रजातियों में उभरने के बाद हल्के रंग या पैटर्न विकसित हो जाते हैं।

  • व्यवहार: आउलफ्लाई संध्या और रात के समय सक्रिय रहने वाले क्रेपस्कुलर–नॉक्टर्नल प्रिडेटर हैं। ये हवा में तेज गति से उड़ते हुए अन्य कीटों को शिकार बनाते हैं। खतरा महसूस होने पर ये एक विशिष्ट मस्क जैसी तीखी गंध छोड़ते हैं जो शत्रुओं को दूर रखने का रक्षा-तंत्र है। 

  • प्रजनन: मादा आउलफ्लाई पेड़ों की टहनियों या घास की डंडियों के सिरे पर गुच्छे के रूप में अंडे देती है। अंडों के नीचे एक विशेष रक्षात्मक ढाल भी बनाती है ताकि चींटियों और छोटे शिकारी कीटों से सुरक्षा मिल सके।

  • पारिस्थितिक भूमिका: आउलफ्लाई पारिस्थितिकी तंत्र में उपरी-स्तर के कीट शिकारी के रूप में कार्य करते हैं और कीट आबादी के संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह कीट जैविक नियंत्रण में भी सहायक हैं और पारिस्थितिक स्वास्थ्य के सूचक प्रजातियों में गिने जाते हैं।

  • भौगोलिक वितरण: आउलफ्लाई विश्वभर में उष्णकटिबंधीय व उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं, किंतु भारत में इनकी विविधता सीमित है। भारत में अब तक लगभग 37 प्रजातियाँ दर्ज की गई हैं, जिनमें कई अत्यंत दुर्लभ और स्थल-विशिष्ट हैं।

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