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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सैन्य बलों, अर्धसैनिक बलों तथा पुलिसकर्मियों को वीरता पुरस्कार (Gallantry Award) से सम्मानित किया

Gallantry Award: 5 जुलाई 2024 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू  (Droupadi Murmu) द्वारा अदम्य साहस और वीरता का परिचय देने वाले सैन्य बलों, अर्धसैनिक बलों तथा पुलिसकर्मियों को वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू  ने राष्ट्रपति भवन में रक्षा अलंकरण समारोह (चरण-1) के दौरान 10 कीर्ति चक्र (सात मरणोपरांत) और 26 शौर्य चक्र (सात मरणोपरांत) प्रदान किए।

भारत में वीरता के लिए कुल छह अलग-अलग पुरस्कार दिए जाते हैं। ये पुरस्कार देश के सबसे बहादुर नागरिकों को उनके अदम्य साहस और बलिदान के लिए सम्मानित करने के लिए हैं।

types of Gallantry Awards

वीरता पुरस्कारों की शुरुआत:

  • 26 जनवरी, 1950 को तीन वीरता पुरस्कारों की शुरुआत की गई – परमवीर चक्र, महावीर चक्र और वीर चक्र। ये पुरस्कार खासतौर पर सैनिकों को युद्ध के समय दिखाई गई असाधारण वीरता के लिए दिए जाते हैं।
  • 4 जनवरी, 1952 को तीन और वीरता पुरस्कार शुरू किए गए – अशोक चक्र श्रेणी-I, अशोक चक्र श्रेणी-II और अशोक चक्र श्रेणी-III। ये पुरस्कार शांति के समय में नागरिकों द्वारा दिखाई गई अदम्य वीरता के लिए दिए जाते हैं।
  • जनवरी 1967 को इन पुरस्कारों के नाम बदल दिए गए तथा अशोक चक्र श्रेणी-I को अशोक चक्र, अशोक चक्र श्रेणी-II को कीर्ति चक्र और अशोक चक्र श्रेणी-III को शौर्य चक्र कहा जाता है।

वीरता पुरस्कारों के लिए चयन प्रक्रिया

  • रक्षा मंत्रालय सशस्त्र बलों और गृह मंत्रालय से वीरता पुरस्कारों के लिए प्रत्येक वर्ष में दो बार संस्तुतियां आमंत्रित करता है । सामान्यतः गणतंत्र दिवस के अवसर पर घोषित किए जाने वाले पुरस्कारों के लिए अगस्त माह में तथा स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर घोषित किए जाने वाले पुरस्कारों के लिए मार्च माह में संस्तुतियों को आमंत्रित किया जाता है ।
  • सशस्त्र बलों के संदर्भ में वीरतापूर्ण कार्य किए जाने के तुरंत बाद वीरता पुरस्कार के मामले को यूनिट द्वारा शुरू किया जाता है तथा यदि योग्य पाया जाता है तो उसे कमांडर्स के माध्यम से विधिवत सिफारिश के पश्चात संबंधित सेना मुख्यालयों को अग्रेषित कर दिया जाता है । ऐसे सभी प्रस्तावों पर सेना प्रमुखों की मंजूरी के साथ रक्षा मंत्रालय को सिफारिश करने से पूर्व पुरस्कार समिति द्वारा विचार किया जाता है ।
  • सिविलियन नागरिकों (रक्षा कार्मिकों के अलावा) के संबंध में सिफारिशें केन्द्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) से प्राप्त की जाती है। गृह मंत्रालय सभी राज्य / केन्द्र शासित सरकारों, केन्द्रीय मंत्रालयों (विभागों, केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस तथा रेलवे सुरक्षा बल इत्यादि से सिफारिशें (सिविलयनों के संदर्भ में) मंगवाती है । वीआईपी संदर्भों को शामिल करते हुए निजी व्यक्तियों से प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त सिफारिशों को स्वीकार नहीं किया जाता है । सिफारिशों की गृह मंत्रालय में उपसमिति द्वारा छंटनी की जाती है तथा उनकी सिफारिशों को गृह मंत्रालय के सचिव के अनुमोदन के साथ रक्षा मंत्रालय में प्राप्त किया जाता है ।
  • पुरस्कार के लिए सिफारिश किए गए व्यक्तियों को किसी प्रतिकूल रिपोर्ट का हिस्सा नहीं होना चाहिए अथवा उसके प्रति कोई असंतोष या निंदा व्यक्त न की गई हो अथवा उसे कोर्ट मार्शल कार्यवाही या प्रशासनिक कार्रवाई द्वारा कोई दंड नहीं दिया गया होना चाहिए ।
  • सामान्यतः वीरता पुरस्कारों की संस्तुतियों को वीरतापूर्ण कार्य किए जाने के तुरंत बाद रक्षा मंत्रालय को भेजना अपेक्षित होता है । किसी भी मामले में वीरता पुरस्कारों पर विचार करने की समय-सीमा वीरतापूर्ण कार्य करने की तिथि से दो कैलेंडर वर्ष से ऊपर नहीं होनी चाहिए ।
  • सशस्त्र बलों एवं गृह मंत्रालय से प्राप्त सिफारिशों पर रक्षा मंत्री, तीनों सेना प्रमुखों तथा रक्षा सचिव की सदस्यता वाली सेंट्रल आनर्स एवं अवार्ड्स कमेटी (सीएचएंडएसी) द्वारा विचार किया जाता है । गृह मंत्रालय द्वारा सिफारिश किए गए मामलों के लिए गृह सचिव भी सदस्य होता है ।
  • तत्पश्चात, सीएचएंडएसी की सिफारिशों को प्रधानमंत्री तथा राष्ट्रपति के अनुमोदन के लिए भेजा जाता है। राष्ट्रपति के अनुमोदन के पश्चात पुरस्कारों को गणतंत्र दिवस एवं स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर घोषित किया जाता है ।

पुरस्कारों की घोषणा:

इन छह वीरता पुरस्कारों की घोषणा साल में दो बार की जाती है:

  • 26 जनवरी: गणतंत्र दिवस के मौके पर
  • 15 अगस्त: स्वतंत्रता दिवस के मौके पर

पुरस्कारों का वितरण:

  • राष्ट्रपति भवन: ज्यादातर वीरता पुरस्कार राष्ट्रपति द्वारा हर साल राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक विशेष समारोह में दिए जाते हैं। इस समारोह को “रक्षा अलंकरण समारोह” कहा जाता है।
  • गणतंत्र दिवस परेड: परमवीर चक्र और अशोक चक्र जैसे सबसे बड़े वीरता पुरस्कार, गणतंत्र दिवस की परेड के दौरान राजपथ पर राष्ट्रपति द्वारा प्रदान किए जाते हैं।

परम वीर चक्र: युद्धक्षेत्र में वीरता का सर्वोच्च सम्मान

Param Veer Chakra

स्थापना और उद्देश्य:

परम वीर चक्र की स्थापना 26 जनवरी 1950 को हुई थी। इसका उद्देश्य दुश्मन के सामने अदम्य साहस, वीरता या आत्म-बलिदान के लिए सर्वोच्च सम्मान प्रदान करना है।

पदक का विवरण:

यह पदक गोल आकार का होता है और कांसे से बना होता है। इसका व्यास एक और तीन-आठ इंच होता है। इसके सामने की तरफ इंद्र के वज्र की चार प्रतिकृतियां होती हैं और बीच में भारत का राज्य चिन्ह (मोटो सहित) उकेरा होता है। पीछे की तरफ हिंदी और अंग्रेजी में “परम वीर चक्र” लिखा होता है, जिसके बीच में दो कमल के फूल होते हैं।

रिबन और बार:

पदक के साथ एक सादा बैंगनी रंग का रिबन होता है। यदि किसी को दोबारा यह चक्र मिलने की पात्रता हो, तो रिबन पर एक बार लगाया जाता है। प्रत्येक बार के लिए, रिबन पर एक छोटा “इंद्र का वज्र” जोड़ा जाता है।

पात्रता:

परम वीर चक्र के लिए निम्नलिखित लोग पात्र होते हैं:

  • सेना, नौसेना और वायु सेना के सभी रैंक के अधिकारी, पुरुष और महिलाएं, किसी भी रिजर्व फोर्स, प्रादेशिक सेना, मिलिशिया और किसी अन्य कानूनी रूप से गठित सशस्त्र बल के सदस्य।
  • अस्पतालों और नर्सिंग से संबंधित सेवाओं में काम करने वाली मैट्रन, सिस्टर, नर्स और अन्य कर्मचारी, और उपरोक्त बलों में नियमित या अस्थायी रूप से सेवा करने वाले आम नागरिक।

पात्रता की शर्तें:

यह चक्र जमीन, समुद्र या हवा में दुश्मन की उपस्थिति में असाधारण वीरता, साहस या आत्म-बलिदान के लिए दिया जाता है। यह सम्मान मरणोपरांत भी दिया जा सकता है।

आर्थिक भत्ता:

परम वीर चक्र प्राप्तकर्ता को 3000 रुपये का मासिक भत्ता मिलता है। प्रत्येक बार के लिए भी इतनी ही राशि का भत्ता मिलता है। यह व्यवस्था 1 जनवरी 1996 से लागू है।

परमवीर चक्र प्राप्त करने वाले वीरों की सूची

क्र.स.

संख्या

नाम

रेजीमेंट

तिथि

स्थान

कब मिला

1

IC-521

मेजर सोमनाथ शर्मा

चौथी बटालियन, कुमाऊँ रेजीमेंट

3 नवंबर, 1947

बड़गाम, कश्मीर

मरणोपरांत

2

IC-22356

लांस नायक करम सिंह

पहली बटालियन, सिख रेजीमेंट

13 अक्तूबर, 1948

टिथवाल, कश्मीर

 

3

SS-14246

सेकेंड लेफ़्टीनेंट राम राघोबा राणे

इंडियन कार्प्स आफ इंजिनयर्स

8 अप्रैल, 1948

नौशेरा, कश्मीर

 

4

27373

नायक यदुनाथ सिंह

पहली बटालियन, गार्ड रेजीमेंट

6 फरवरी 1948

नौशेरा, कश्मीर

मरणोपरांत

5

2831592

कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह

छठी बटालियन, राजपूताना राइफल्स

17 जुलाई, 1948

टिथवाल, कश्मीर

मरणोपरांत

6

IC-8497

कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया

तीसरी बटालियन, 1 गोरखा राइफल्स

5 दिसंबर, 1961

एलिजाबेथ विले, कातांगा, कांगो

मरणोपरांत

7

IC-7990

मेजर धनसिंह थापा

पहली बटालियन, 8 गोरखा राइफल्स

20 अक्तूबर, 1962

लद्दाख

 

8

JC-4547

सूबेदार जोगिंदर सिंह

पहली बटालियन, सिख रेजीमेंट

23 अक्तूबर, 1962

तोंगपेन ला, नार्थ इस्ट फ्रंटियर एजेंसी, भारत

मरणोपरांत

9

IC-7990

मेजर शैतान सिंह

तेरहवीं बटालियन, कुमाऊँ रेजीमेंट

18 नवंबर, 1962

रेज़ांग ला

मरणोपरांत

10

2639885

कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद

चौथी बटालियन, बाम्बे ग्रेनेडियर्स

10 सितंबर, 1965

चीमा, खेमकरण सेक्टर

मरणोपरांत

11

IC-5565

लेफ्टीनेंट कर्नल आर्देशिर तारापोर

द पूना हार्स

15 अक्तूबर, 1965

फिलौरा, सियालकोट सेक्टर, पाकिस्तान

मरणोपरांत

12

4239746

लांस नायक अलबर्ट एक्का

चौदहवीं बटालियन, गार्ड ब्रिगेड

3 दिसंबर, 1971

गंगासागर

मरणोपरांत

13

10877 F(P)

फ्लाईंग आफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों

अठारहवीं स्क्वैड्रन, भारतीय वायुसेना

14 दिसंबर, 1971

श्रीनगर, कश्मीर

मरणोपरांत

14

IC-25067

लेफ्टीनेंट अरुण क्षेत्रपाल

पूना हार्स

16 दिसंबर, 1971

जरपाल, शकरगढ़ सेक्टर

मरणोपरांत

15

IC-14608

मेजर होशियार सिंह

तीसरी बटालियन, बाम्बे ग्रेनेडियर्स

17 दिसंबर, 1971

बसंतार नदी, शकरगढ़ सेक्टर

 

16

JC-155825

नायब सूबेदार बन्ना सिंह

आठवीं बटालियन, जम्मू कश्मीर लाइट इनफेन्ट्री

23 जून, 1987

सियाचिन ग्लेशियर, जम्मू कश्मीर

जीवित

17

IC-32907

मेजर रामास्वामी परमेश्वरन

आठवीं बटालियन, महार रेजीमेंट

25 नवंबर, 1987

श्रीलंका

मरणोपरांत

18

IC-56959

लेफ्टीनेंट मनोज कुमार पांडे

प्रथम बटालियन, 11 गोरखा राइफल्स

3 जुलाई, 1999

ज़ुबेर टाप, बटालिक सेक्टर, कारगिल क्षेत्र, जम्मू कश्मीर

मरणोपरांत

19

2690572

ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव

अठारहवीं बटालियन, द ग्रेनेडियर्स

4 जुलाई, 1999

टाइगर हिल्स, कारगिल क्षेत्र

जीवित

20

13760533

राइफलमैन संजय कुमार

तेरहवीं बटालियन, जम्मू कश्मीर राइफल्स

5 जुलाई, 1999

फ्लैट टाप क्षेत्र, कारगिल

जीवित

21

IC-57556

कैप्टन विक्रम बत्रा

तेरहवीं बटालियन, जम्मू कश्मीर राइफल्स

6 जुलाई, 1999

बिंदु 5140, बिंदु 4875, कारगिल क्षेत्र

मरणोपरांत

महावीर चक्र: युद्धक्षेत्र में वीरता का दूसरा सर्वोच्च सम्मान

Mahaveer chakra

स्थापना और उद्देश्य:

महावीर चक्र की स्थापना 26 जनवरी 1950 को हुई थी। इसका उद्देश्य दुश्मन के सामने वीरता के कार्य को मान्यता देना है।

पदक का विवरण:

यह पदक गोल आकार का होता है और स्टैंडर्ड चांदी से बना होता है। इसके सामने की तरफ एक पांच-नुकीला तारा होता है, जिसके बिंदु पदक के किनारे को छूते हैं। पदक का व्यास एक और तीन-आठ इंच होता है। केंद्र में भारत का राज्य चिन्ह (सूक्ति सहित) उकेरा होता है, जो सोने की परत से मढ़ा होता है। तारे को पॉलिश किया जाता है और केंद्र का टुकड़ा सोने का होता है। पीछे की तरफ हिंदी और अंग्रेजी में “महावीर चक्र” लिखा होता है, जिसके बीच में दो कमल के फूल होते हैं।

रिबन और बार:

पदक के साथ आधा सफेद और आधा नारंगी रंग का रिबन होता है। यदि किसी को दोबारा यह चक्र मिलने की पात्रता हो, तो रिबन पर एक बार लगाया जाता है। प्रत्येक बार के लिए, रिबन पर एक छोटा महावीर चक्र जोड़ा जाता है।

पात्रता:

महावीर चक्र के लिए निम्नलिखित लोग पात्र होते हैं:

  • सेना, नौसेना और वायु सेना के सभी रैंक के अधिकारी, पुरुष और महिलाएं, किसी भी रिजर्व फोर्स, प्रादेशिक सेना, मिलिशिया और किसी अन्य कानूनी रूप से गठित सशस्त्र बल के सदस्य।
  • अस्पतालों और नर्सिंग से संबंधित सेवाओं में काम करने वाली मैट्रन, सिस्टर, नर्स और अन्य कर्मचारी, और उपरोक्त बलों में नियमित या अस्थायी रूप से सेवा करने वाले आम नागरिक।

पात्रता की शर्तें:

यह पदक जमीन, समुद्र या हवा में दुश्मन की उपस्थिति में वीरता के लिए दिया जाता है। यह सम्मान मरणोपरांत भी दिया जा सकता है।

आर्थिक भत्ता:

महावीर चक्र प्राप्तकर्ता को 2400 रुपये प्रति माह का भत्ता मिलता है। प्रत्येक बार के लिए भी इतनी ही राशि का भत्ता मिलता है। यह व्यवस्था 1 फरवरी 1999 से लागू है।

 

वीर चक्र: युद्धक्षेत्र में वीरता का तीसरा सर्वोच्च सम्मान

Veer Chakra

स्थापना और उद्देश्य:

वीर चक्र की स्थापना 26 जनवरी 1950 को हुई थी। इसका उद्देश्य दुश्मन के सामने वीरता के कार्यों को मान्यता देना है।

पदक का विवरण:

यह पदक गोल आकार का होता है और स्टैंडर्ड चांदी से बना होता है। इसके सामने की तरफ एक पांच-नुकीला तारा होता है, जिसके बिंदु पदक के किनारे को छूते हैं। पदक के केंद्र में भारत का राज्य चिन्ह (सूक्ति सहित) उकेरा होता है, जो सोने की परत से मढ़ा होता है। तारे को पॉलिश किया जाता है। पीछे की तरफ हिंदी और अंग्रेजी में “वीर चक्र” लिखा होता है, जिसके बीच में दो कमल के फूल होते हैं।

रिबन और बार:

पदक के साथ आधा नीला और आधा नारंगी रंग का रिबन होता है। यदि किसी को दोबारा यह चक्र मिलने की पात्रता हो, तो रिबन पर एक बार लगाया जाता है। प्रत्येक बार के लिए, रिबन पर एक छोटा वीर चक्र जोड़ा जाता है। यह सम्मान मरणोपरांत भी बार के साथ दिया जा सकता है।

पात्रता:

वीर चक्र के लिए निम्नलिखित लोग पात्र होते हैं:

  • सेना, नौसेना और वायु सेना के सभी रैंक के अधिकारी, पुरुष और महिलाएं, किसी भी रिजर्व फोर्स, प्रादेशिक सेना, मिलिशिया और किसी अन्य कानूनी रूप से गठित सशस्त्र बल के सदस्य।
  • अस्पतालों और नर्सिंग से संबंधित सेवाओं में काम करने वाली मैट्रन, सिस्टर, नर्स और अन्य कर्मचारी, और उपरोक्त बलों में नियमित या अस्थायी रूप से सेवा करने वाले आम नागरिक।

पात्रता की शर्तें:

यह चक्र जमीन, समुद्र या हवा में दुश्मन की उपस्थिति में वीरता के लिए दिया जाता है। यह सम्मान मरणोपरांत भी दिया जा सकता है।

आर्थिक भत्ता:

वीर चक्र प्राप्तकर्ता को 1700 रुपये प्रति माह का भत्ता मिलता है। प्रत्येक बार के लिए भी इतनी ही राशि का भत्ता मिलता है। यह व्यवस्था 1 फरवरी 1999 से लागू है।

 

अशोक चक्र: शांतिकाल में वीरता का सर्वोच्च सम्मान

Ashok Chakra

स्थापना और उद्देश्य:

अशोक चक्र की स्थापना 4 जनवरी 1952 को हुई थी और इसका नाम 27 जनवरी 1967 को बदल दिया गया था। यह सम्मान दुश्मन के सामने नहीं, बल्कि शांतिकाल में दिखाई गई असाधारण वीरता, साहस या आत्म-बलिदान के लिए दिया जाता है।

पदक का विवरण:

यह पदक गोल आकार का होता है, जिसका व्यास एक और तीन-आठ इंच होता है। यह सोने की परत से मढ़ा होता है और इसके दोनों तरफ किनारे होते हैं। पदक के सामने की तरफ बीच में अशोक चक्र की प्रतिकृति होती है, जिसके चारों ओर कमल की पंखुड़ियों की माला होती है। पीछे की तरफ हिंदी और अंग्रेजी में “अशोक चक्र” लिखा होता है, जिनके बीच में दो कमल के फूल होते हैं।

रिबन और बार:

पदक के साथ हरे रंग का रिबन होता है, जिसे एक नारंगी रंग की खड़ी रेखा दो बराबर हिस्सों में बांटती है। यदि किसी को दोबारा यह चक्र मिलने की पात्रता हो, तो रिबन पर एक बार लगाया जाता है। प्रत्येक बार के लिए, रिबन पर एक छोटा अशोक चक्र जोड़ा जाता है।

पात्रता:

अशोक चक्र के लिए निम्नलिखित लोग पात्र होते हैं:

  • सेना, नौसेना और वायु सेना के सभी रैंक के अधिकारी, पुरुष और महिलाएं, किसी भी रिजर्व फोर्स, प्रादेशिक सेना, मिलिशिया और किसी अन्य कानूनी रूप से गठित सशस्त्र बल के सदस्य।
  • सशस्त्र बलों की नर्सिंग सेवाओं के सदस्य।
  • सभी क्षेत्रों के आम नागरिक और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों और रेलवे सुरक्षा बल सहित पुलिस बलों के सदस्य।

पात्रता की शर्तें:

यह चक्र दुश्मन के सामने नहीं, बल्कि शांतिकाल में दिखाई गई असाधारण वीरता, साहस या आत्म-बलिदान के लिए दिया जाता है। यह सम्मान मरणोपरांत भी दिया जा सकता है।

आर्थिक भत्ता:

अशोक चक्र प्राप्तकर्ता को 2800 रुपये प्रति माह का भत्ता मिलता है। प्रत्येक बार के लिए भी इतनी ही राशि का भत्ता मिलता है। यह व्यवस्था 1 फरवरी 1999 से लागू है।

 

कीर्ति चक्र: शांतिकाल में वीरता लिए दूसरा सर्वोच्च सम्मान

kirti chakra Award

स्थापना और उद्देश्य:

कीर्ति चक्र की स्थापना 4 जनवरी 1952 को “अशोक चक्र द्वितीय श्रेणी” के रूप में हुई थी और 27 जनवरी 1967 को इसका नाम बदलकर कीर्ति चक्र कर दिया गया। यह सम्मान दुश्मन से सीधी लड़ाई के अलावा अन्य परिस्थितियों में दिखाई गई विशिष्ट वीरता के लिए दिया जाता है।

पदक का विवरण:

यह पदक गोल आकार का होता है और स्टैंडर्ड चांदी से बना होता है। इसका व्यास एक और तीन-आठ इंच होता है। पदक के सामने की तरफ बीच में अशोक चक्र की प्रतिकृति होती है, जिसके चारों ओर कमल की पंखुड़ियों की माला होती है। पीछे की तरफ हिंदी और अंग्रेजी में “कीर्ति चक्र” लिखा होता है, जिनके बीच में दो कमल के फूल होते हैं।

रिबन और बार:

पदक के साथ हरे रंग का रिबन होता है, जिसे दो नारंगी रंग की खड़ी रेखाओं द्वारा तीन बराबर हिस्सों में बांटा गया है। यदि किसी को दोबारा यह चक्र मिलने की पात्रता हो, तो रिबन पर एक बार लगाया जाता है। प्रत्येक बार के लिए, रिबन पर एक छोटा कीर्ति चक्र जोड़ा जाता है।

पात्रता:

कीर्ति चक्र के लिए निम्नलिखित लोग पात्र होते हैं:

  • सेना, नौसेना और वायु सेना के सभी रैंक के अधिकारी, पुरुष और महिलाएं, किसी भी रिजर्व फोर्स, प्रादेशिक सेना, मिलिशिया और किसी अन्य कानूनी रूप से गठित सशस्त्र बल के सदस्य।
  • सशस्त्र बलों की नर्सिंग सेवाओं के सदस्य।
  • सभी क्षेत्रों के आम नागरिक और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों और रेलवे सुरक्षा बल सहित पुलिस बलों के सदस्य।

पात्रता की शर्तें:

यह पदक दुश्मन से सीधी लड़ाई के अलावा अन्य परिस्थितियों में दिखाई गई विशिष्ट वीरता के लिए दिया जाता है। यह सम्मान मरणोपरांत भी दिया जा सकता है।

आर्थिक भत्ता:

कीर्ति चक्र प्राप्तकर्ता को 2100 रुपये प्रति माह का भत्ता मिलता है। प्रत्येक बार के लिए भी इतनी ही राशि का भत्ता मिलता है। यह व्यवस्था 1 फरवरी 1999 से लागू है।

 

शौर्य चक्र: शांतिकाल में वीरता के लिए तीसरा सर्वोच्च सम्मान

shaurya chakra award

स्थापना और उद्देश्य:

शौर्य चक्र की स्थापना 4 जनवरी 1952 को “अशोक चक्र क्लास-III” के रूप में हुई थी और 27 जनवरी 1967 को इसका नाम बदलकर शौर्य चक्र कर दिया गया। यह सम्मान उन वीरतापूर्ण कार्यों के लिए दिया जाता है जो दुश्मन से सीधे मुठभेड़ के दौरान नहीं, बल्कि अन्य परिस्थितियों में दिखाए गए हों।

पदक का विवरण:

यह पदक गोल आकार का होता है और कांसे से बना होता है। इसका व्यास एक और तीन-आठ इंच होता है। पदक के सामने की तरफ बीच में अशोक चक्र की प्रतिकृति होती है, जिसके चारों ओर कमल की पंखुड़ियों की माला होती है। पीछे की तरफ हिंदी और अंग्रेजी में “शौर्य चक्र” लिखा होता है, जिनके बीच में दो कमल के फूल होते हैं।

रिबन और बार:

पदक के साथ हरे रंग का रिबन होता है, जिसे तीन खड़ी रेखाओं द्वारा चार बराबर हिस्सों में बांटा गया है। यदि किसी को दोबारा यह चक्र मिलने की पात्रता हो, तो रिबन पर एक बार लगाया जाता है। प्रत्येक बार के लिए, रिबन पर एक छोटा शौर्य चक्र जोड़ा जाता है।

पात्रता:

शौर्य चक्र के लिए निम्नलिखित लोग पात्र होते हैं:

  • सेना, नौसेना और वायु सेना के सभी रैंक के अधिकारी, पुरुष और महिलाएं, किसी भी रिजर्व फोर्स, प्रादेशिक सेना, मिलिशिया और किसी अन्य कानूनी रूप से गठित सशस्त्र बल के सदस्य।
  • सशस्त्र बलों की नर्सिंग सेवाओं के सदस्य।
  • सभी क्षेत्रों के आम नागरिक और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों और रेलवे सुरक्षा बल सहित पुलिस बलों के सदस्य।

पात्रता की शर्तें:

यह चक्र दुश्मन के सामने नहीं, बल्कि शांतिकाल में दिखाई गई वीरता के लिए दिया जाता है। यह सम्मान मरणोपरांत भी दिया जा सकता है।

आर्थिक भत्ता:

शौर्य चक्र प्राप्तकर्ता को 1500 रुपये प्रति माह का भत्ता मिलता है। प्रत्येक बार के लिए भी इतनी ही राशि का भत्ता मिलता है। यह व्यवस्था 1 फरवरी 1999 से लागू है।

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