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हाई-परफॉर्मेंस बिल्डिंग्स (HPBs)

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हाईपरफॉर्मेंस बिल्डिंग्स (HPBs): टिकाऊ निर्माण की ओर कदम

हाई-परफॉर्मेंस इमारतें (HPBs) आज के दौर में सतत विकास और बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने का प्रमुख समाधान हैं। जलवायु परिवर्तन और शहरीकरण की चुनौतियों से निपटने के लिए ये इमारतें ऊर्जा दक्षता, संसाधनों के संरक्षण और चरम मौसम का सामना करने की क्षमता से लैस होती हैं। ये टिकाऊ निर्माण और पर्यावरण संतुलन की ओर एक महत्वपूर्ण कदम हैं।

क्या हैं हाईपरफॉर्मेंस बिल्डिंग्स (HPBs):

हाई-परफॉर्मेंस बिल्डिंग्स ऐसी इमारतें होती हैं जिन्हें ऊर्जा उपयोग, जल संरक्षण, वायु गुणवत्ता, और संसाधन दक्षता जैसे क्षेत्रों में उच्च मानकों को प्राप्त करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। ये इमारतें लंबी अवधि की संचालन क्षमता और आर्थिक स्थिरता को भी ध्यान में रखती हैं।

  • ऊर्जा दक्षता: पारंपरिक इमारतों की तुलना में ये इमारतें ऊर्जा की खपत को काफी कम करती हैं।
  • सस्टेनेबिलिटी (टिकाऊपन): ये टिकाऊ सामग्रियों का उपयोग करती हैं, जल बचाने वाली तकनीकों को अपनाती हैं, और पर्यावरणीय प्रभाव को कम करती हैं।
  • मजबूती और अनुकूलता: ये इमारतें बदलते पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुकूल होती हैं और जलवायु चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होती हैं। इनमें बाढ़-रोधी डिज़ाइन, ऊर्जा बैकअप सिस्टम और टिकाऊ सामग्रियों का उपयोग किया जाता है।

 जरूरत क्यों है HPBs की?

  • कार्बन उत्सर्जन: इमारतें वैश्विक ऊर्जा-आधारित उत्सर्जन का 28% योगदान करती हैं। भारत में यह आंकड़ा 20% है।
  • शहरीकरण: 2030 तक भारत की शहरी आबादी 600 मिलियन तक पहुँचने का अनुमान है, जिससे ऊर्जा-कुशल इन्फ्रास्ट्रक्चर की मांग बढ़ेगी।
  • वैश्विक लक्ष्य: 2030 तक इमारतों में 30% ऊर्जा दक्षता सुधार का लक्ष्य पाने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है।

महत्व:

  1. कम संचालन लागत: ऊर्जा और जल की खपत कम होने से परिचालन खर्च में कमी आती है।
  2. स्वास्थ्य और आराम: इन इमारतों में बेहतर इनडोर वायु गुणवत्ता और आराम मिलता है, जिससे उत्पादकता बढ़ती है और स्वास्थ्य समस्याएँ कम होती हैं।
  3. पर्यावरण संरक्षण: ये इमारतें कार्बन उत्सर्जन कम करती हैं, कचरा उत्पादन घटाती हैं और कम संसाधनों का उपयोग करती हैं।
  4. अर्थव्यवस्था: इनकी उच्च पुनर्विक्रय कीमत और किरायेदारों की संतुष्टि इन्हें अधिक आकर्षक बनाती है।
  5. शहरीकरण में समाधान: ये इमारतें टिकाऊ और कम-कार्बन अर्थव्यवस्था की दिशा में भारत को अग्रसर करती हैं।

ऊर्जाकुशल इमारतों के लिए भारत की पहलें:

  1. इकोनिवास संहिता: ऊर्जा-कुशल आवासीय इमारतों के लिए एक कोड।
  2. ऊर्जा संरक्षण भवन कोड (ECBC): व्यावसायिक इमारतों के लिए ऊर्जा प्रदर्शन मानक।
  3. ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2022: विभिन्न क्षेत्रों में ऊर्जा दक्षता बढ़ाने का लक्ष्य।
  4. नीरमन अवार्ड्स: ऊर्जा-कुशल इमारतों में नवाचार को मान्यता।
  5. ग्रीन रेटिंग फॉर इंटीग्रेटेड हैबिटेट असेसमेंट (GRIHA): टिकाऊ निर्माण प्रथाओं को बढ़ावा देता है।

चुनौतियाँ:

  1. संचालन की उपेक्षा: प्रारंभिक लागत पर ध्यान देने से दीर्घकालिक संचालन दक्षता नजरअंदाज हो जाती है।
  2. विविध डिज़ाइन: इमारतों के विभिन्न प्रकारों में ऊर्जा दक्षता को मानकीकृत करना मुश्किल है।
  3. विभाजित प्रोत्साहन: मालिकों और किरायेदारों के बीच लाभ में असमानता ऊर्जा-कुशल सुधारों को कम समर्थन देती है।
  4. स्थानीय ज्ञान का नुकसान: विदेशी तकनीकों पर अधिक निर्भरता स्थानीय सस्ती तकनीकों को हाशिए पर रखती है।
  5. विखंडित प्रणाली: डिज़ाइन, निर्माण, और संचालन के बीच समन्वय की कमी से प्रदर्शन प्रभावित होता है।

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