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प्राकृतिक खेती क्या है: लाभ, चुनौतियाँ, सरकारी स्कीम तथा सम्पूर्ण जानकारी

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय बजट 2024-25 के प्रस्तावों में, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा है कि अगले दो वर्षों में, देश भर में एक करोड़ किसानों को प्रमाणीकरण और ब्रांडिंग (Certification and branding) द्वारा समर्थित प्राकृतिक खेती (Natural Farming) में शामिल किया जाएगा।

Union Budget 2024-25 में Natural farming के लिए घोषणा: 

  • अगले दो सालों में, देश भर में एक करोड़ किसानों को प्रमाणन और ब्रांडिंग के साथ Natural farming के बारे में बताया जाएगा। 
  • इसे वैज्ञानिक संस्थानों और इच्छुक ग्राम पंचायतों के माध्यम से लागू किया जाएगा। 
  • इसके अलावा, जरूरत के हिसाब से 10,000 जैविक-उर्वरक संसाधन केंद्र स्थापित किए जाएंगे। 
  • पहले जहां क्षेत्र को कवर करने पर ध्यान दिया जाता था, वहीं अब किसानों की संख्या पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, क्योंकि भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (BPKP) के तहत पूरी वित्तीय प्रोत्साहन मिलने के 3 साल बाद लगभग 10 लाख किसानों में से 30-40% फिर से रासायनिक खेती की ओर लौट गए।

प्राकृतिक खेती (Natural Farming) क्या हैं?

  • Natural Farming में, किसी भी प्रकार के रासायनिक उर्वरकों या कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता है। 
  • यह पारंपरिक देसी तरीकों को बढ़ावा देती है, जो मुख्य रूप से खेत पर ही जैविक सामग्री के पुनर्चक्रण पर आधारित हैं। 
  • Natural Farming में खेत में ही तैयार जैविक खाद, गोबर-मूत्र के घोल का उपयोग, विभिन्न प्रकार की फसलें उगाकर कीटों को नियंत्रित करना, खेत में ही तैयार कीटनाशक औषधियों का उपयोग और किसी भी तरह के रासायनिक तत्वों के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष उपयोग को पूरी तरह से बंद करना शामिल है। 
  • Natural Farming का मुख्य उद्देश्य मिट्टी में पोषक तत्वों के प्राकृतिक चक्र को सुधारना और जैविक तत्वों को बढ़ाना है। 
  • Natural Farming, कृषि-पारिस्थितिकी तंत्र (Agro-ecosystem) पर आधारित एक विविध खेती प्रणाली है, जिसमें फसलों, पेड़ों और पशुओं (Crops, trees and animals) को एक साथ जोड़ा जाता है, जिससे जैव विविधता का बेहतर उपयोग हो सके। 
  • Natural Farming के समर्थकों का मानना है कि इससे किसानों की आय बढ़ाने के साथ-साथ मिट्टी की उर्वरता, पर्यावरणीय स्वास्थ्य में सुधार और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने जैसे कई अन्य लाभ भी मिलते हैं।

जैविक खेती (Organic farming) क्या होती है? 

Organic farming पारंपरिक तरीकों से फसलें उगाने और जानवरों को पालने की एक प्रणाली है, जिसमें किसी भी तरह के कृत्रिम रसायनों का उपयोग नहीं किया जाता। इसमें कृत्रिम उर्वरक, कीटनाशक, एंटीबायोटिक, आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव और विकास हार्मोन से बचना शामिल है।

Natural Farming तथा Organic farming में अंतर –

Natural Farming and Organic farming

  • Natural Farming में मानव हस्तक्षेप कम से कम रखने और प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र की नकल करने पर जोर दिया जाता है, जबकि Organic farming जैविक खाद का उपयोग करने पर केंद्रित है और विशिष्ट मानकों का पालन करती है।
  • Natural Farming में किसी भी बाहरी उर्वरक या मिट्टी सुधारक के उपयोग की अनुमति नहीं है, जबकि Organic farming में खाद, खनिज चट्टानों और पौधों या जानवरों के स्रोतों से प्राप्त उर्वरकों के उपयोग की अनुमति है।
  • Natural Farming जैव विविधता को बढ़ावा देने, मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखने, पौधों और जानवरों के स्वास्थ्य का समर्थन करने और फसल की पैदावार में सुधार करने के लिए पारिस्थितिक सिद्धांतों पर निर्भर करती है, जबकि Organic farming जैविक सामग्री और तकनीकों का उपयोग करके कृषि पारिस्थितिक तंत्र की उत्पादकता और पारिस्थितिक जीवन शक्ति को अनुकूलित करती है।
  • Natural Farming किसी भी रसायन के उपयोग को हतोत्साहित करती है, जबकि Organic farming में कुछ स्वीकृत रसायनों की एक सूची होती है जिन्हें मनुष्यों और पर्यावरण के लिए सुरक्षित माना जाता है।
  • Natural Farming एक दार्शनिक दृष्टिकोण पर आधारित है जो प्रकृति के ज्ञान को दर्शाता है, जबकि Organic farming एक समग्र कृषि प्रणाली है जिसे सावधानीपूर्वक डिजाइन और विनियमित किया जाता है।

प्राकृतिक खेती के सिद्धांत (Principles of natural farming) –

  • स्वस्थ मिट्टी का सूक्ष्मजीव संतुलन, मिट्टी, पौधों, जानवरों और मनुष्यों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है।
  • साल भर ज़्यादा से ज़्यादा समय तक मिट्टी पर फसलें उगनी चाहिए।
  • एक खेत या बड़े क्षेत्र में साल भर में कम से कम 8 अलग-अलग फसलें उगाई जानी चाहिए।
  • मिट्टी को कम से कम हिलाना ज़रूरी है, इसलिए जुताई न करने या कम गहराई वाली जुताई की सलाह दी जाती है।
  • खेती में पशुओं को शामिल करना चाहिए।
  • Natural farming को बढ़ावा देने के लिए एकीकृत खेती प्रणाली ज़रूरी है।
  • स्वस्थ मिट्टी का सूक्ष्मजीव संतुलन, मिट्टी में जैविक पदार्थों को बनाए रखने और बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है।
  • जैव उत्तेजक (बायोस्टिमुलेंट) इस प्रक्रिया को तेज करने के लिए आवश्यक हैं।
  • जैव उत्तेजक बनाने के कई तरीके हैं। भारत में, सबसे लोकप्रिय जैव उत्तेजक पशुओं के गोबर और मूत्र, और साफ मिट्टी के किण्वन (फर्मेंटेशन) से बनाए जाते हैं।
  • मिट्टी में लौटाए जाने वाले जैविक अवशेषों की मात्रा और विविधता बढ़ाना बहुत महत्वपूर्ण है। इनमें फसल अवशेष, गोबर, खाद आदि शामिल हैं।
  • कीट प्रबंधन बेहतर कृषि पद्धतियों (जैसा कि एकीकृत कीट प्रबंधन में बताया गया है) और वानस्पतिक कीटनाशकों (केवल आवश्यकता पड़ने पर) के माध्यम से किया जाना चाहिए।
  • सिंथेटिक उर्वरकों और अन्य जैवनाशकों का उपयोग इस पुनर्जनन प्रक्रिया के लिए हानिकारक है और इसकी अनुमति नहीं है।

नियमित रूप से Natural farming करने वाले किसानों के अनुसार, निम्नलिखित प्रथाओं को Natural farming के सबसे महत्वपूर्ण घटक माना गया है:

  • बीजामृत (Beejamrut)
  • जीवामृत (Jeevamrut)
  • मल्चिंग (पलवार) (Mulching)
  • वाफसा (Vafsa)
  • पौध संरक्षण (Plant Protection)

जैव उत्तेजक (बायोस्टिमुलेंट्स) क्या होता हैं?

जैव उत्तेजक (बायोस्टिमुलेंट्स) ऐसे पदार्थ या सूक्ष्मजीव होते हैं जो पौधों की वृद्धि, उपज, और संपूर्ण स्वास्थ्य में सुधार करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। ये सामान्यतया निम्नलिखित तरीकों से पौधों की सहायता करते हैं:

  1. पोषक तत्वों का अवशोषण बढ़ाना (Increasing nutrient absorption): बायोस्टिमुलेंट्स पौधों को मिट्टी से पोषक तत्वों को बेहतर तरीके से अवशोषित करने में मदद करते हैं।
  2. प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना (Boosting immunity): ये पौधों को विभिन्न प्रकार के तनाव, जैसे सूखा, ठंड, और रोगों के प्रति अधिक प्रतिरोधक बनाने में मदद करते हैं।
  3. जड़ों की वृद्धि को प्रोत्साहित करना (Encourage root growth): बायोस्टिमुलेंट्स जड़ों की वृद्धि को प्रोत्साहित करते हैं, जिससे पौधों को अधिक पोषक तत्व और पानी मिल पाता है।
  4. पौधों की संपूर्ण वृद्धि को बढ़ावा देना (Promotes overall plant growth): ये पौधों के विकास के विभिन्न पहलुओं को सुधारने में मदद करते हैं, जिससे उनकी उपज और गुणवत्ता बढ़ती है।

बायोस्टिमुलेंट्स को विभिन्न प्राकृतिक स्रोतों से तैयार किया जा सकता है, जैसे समुद्री शैवाल, ह्यूमिक एसिड, फुलविक एसिड, और अन्य जैविक घटक। इनका उपयोग कृषि में पौधों की उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार के लिए किया जाता है।

किण्वन (Fermentation) क्या होता हैं?

किण्वन (Fermentation) एक जैविक प्रक्रिया है जिसमें सूक्ष्मजीवों, जैसे कि बैक्टीरिया, यीस्ट, और फंगी, के द्वारा कार्बोहाइड्रेट (जैसे ग्लूकोज) को ऊर्जा, अल्कोहल, और अन्य उप-उत्पादों में परिवर्तित किया जाता है। इस प्रक्रिया का उपयोग विभिन्न खाद्य और पेय पदार्थों के उत्पादन में किया जाता है।

किण्वन (Fermentation) का कृषि में उपयोग-

किण्वन (Fermentation) का कृषि में उपयोग कई तरीकों से किया जाता है, जिससे फसलों की वृद्धि, मिट्टी की गुणवत्ता, और कृषि उत्पादकता में सुधार होता है। इसके प्रमुख उपयोग निम्नलिखित हैं:

  1. कृषि खाद का उत्पादन (Production of Biofertilizers): किण्वन के माध्यम से जैविक खाद, जैसे कि वर्मीकम्पोस्ट (कृमि खाद) और फर्मेंटेड प्लांट अर्क (जैसे, पेपिन और नीम अर्क) तैयार किए जाते हैं। ये खाद पौधों की वृद्धि और पोषण को बढ़ाते हैं और मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करते हैं।
  2. सैफ (Silage) निर्माण: Fermentation का उपयोग सैफ बनाने में होता है, जो कि पशुओं के लिए एक महत्वपूर्ण आहार है। सैफ चारा को Fermentation करके तैयार किया जाता है, जिससे उसकी पोषण सामग्री बनी रहती है और वह लंबे समय तक संरक्षित रहता है।
  3. मिट्टी में सुधार (Soil Improvement): किण्वित सामग्री जैसे कि गुड़, पौधों के अवशेष, और अन्य जैविक सामग्री को मिट्टी में मिलाया जाता है। यह मिट्टी की संरचना, पोषण सामग्री, और जलधारण क्षमता में सुधार करता है।
  4. कीट नियंत्रण (Pest Control): कुछ किण्वित उत्पादों का उपयोग कीट नियंत्रण के लिए भी किया जाता है। जैसे, बायोफॉर्मुलेट्स और जैविक कीटनाशक, जो कीटों को नियंत्रित करने के लिए Fermentation के माध्यम से तैयार किए जाते हैं।
  5. जैविक खाद्य उत्पाद (Production of Organic Inputs): कुछ किण्वित उत्पाद जैसे कि जैविक कीटनाशक और जैविक प्रमोटर पौधों की वृद्धि और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करते हैं।

कृषि में Fermentation के इन उपयोगों से न केवल फसलों की गुणवत्ता और उपज में सुधार होता है, बल्कि यह पर्यावरणीय प्रभावों को भी कम करता है और अधिक सतत कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देता है।

प्राकृतिक खेती का दायरा (Scope of natural farming) –

  • दुनिया भर में प्राकृतिक खेती के कई कार्यशील मॉडल हैं, जिनमें से भारत में शून्य बजट प्राकृतिक खेती (Zero Budget Natural Farming -ZBNF) सबसे लोकप्रिय है।
  • Natural farming मिट्टी की उर्वरता, पर्यावरणीय स्वास्थ्य में सुधार करती है, साथ ही ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में मदद करती है और किसानों की आय बढ़ाने का वादा भी करती है। 
  • व्यापक रूप से, Natural farming को आने वाली पीढ़ियों के लिए पृथ्वी को बचाने की एक प्रमुख रणनीति के रूप में देखा जा सकता है।
  • इसमें विभिन्न कृषि भूमि प्रथाओं को प्रबंधित करने की क्षमता है और इस प्रकार वायुमंडलीय कार्बन को मिट्टी और पौधों में अलग करके, इसे पौधों के लिए उपलब्ध कराया जा सकता है।

Zero Budget Natural Farming (ZBNF) के बारे में-

Zero Budget Natural Farming – ZBNF) एक प्रकार की खेती है जिसमें रसायनों का उपयोग नहीं किया जाता है और पौधों को उगाने और काटने में कोई खर्च नहीं होता है। इस पद्धति में, किसानों द्वारा किए गए खर्चों की भरपाई अंतर-फसल के माध्यम से की जाती है। Zero Budget Natural Farming तब चर्चा में आई जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2019 के बजट भाषण में किसानों की आय दोगुनी करने के तरीके के रूप में इसका उल्लेख किया।

सुभाष पालेकर: भारत में शून्य बजट प्राकृतिक खेती के जनक

सुभाष पालेकर, महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के अमरावती जिले के बेलोरा गाँव के एक किसान हैं, जिन्होंने “ Zero Budget Natural Farming” मॉडल को विकसित किया। 1990 के दशक के मध्य में, पालेकर ने इस पद्धति को हरित क्रांति के विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया, जिसमें रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और अत्यधिक सिंचाई का उपयोग किया जाता था।

Zero Budget Natural Farming के चार प्रमुख स्तंभ:

  1. जीवामृत (Jeevamrut): यह देसी गुड़, पानी, दाल का आटा, मिट्टी, गाय के गोबर और मूत्र से बना एक प्राकृतिक खाद है।
  2. बीजामृत (Beejamrut): यह तंबाकू, हरी मिर्च और नीम के पत्तों के मिश्रण से बना एक प्राकृतिक कीटनाशक है, जिसका उपयोग बीज उपचार के लिए किया जाता है।
  3. अच्छादन (Mulching): यह मिट्टी को ढकने की एक प्रक्रिया है जो नमी बनाए रखने और मिट्टी के कटाव को रोकने में मदद करती है।
  4. वाप्सा (Vafsa): यह मिट्टी में नमी और हवा के संतुलन को बनाए रखने की एक विधि है, जिससे सिंचाई की आवश्यकता कम हो जाती है।

Zero Budget Natural Farming

Zero Budget Natural Farming के लाभ:

  • किसानों के लिए कम लागत
  • किसानों की आय में वृद्धि
  • मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार
  • पर्यावरण संरक्षण
  • पानी और बिजली की बचत
  • फसल की गुणवत्ता में सुधार
  • रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि

Zero Budget Natural Farming की चुनौतियाँ:

  • शुरुआती पैदावार में कमी
  • जागरूकता और प्रशिक्षण की कमी
  • बाजार और प्रमाणन की कमी
  • कीट और रोग प्रबंधन

सरकार द्वारा Zero Budget Natural Farming को बढ़ावा देने के प्रयास:

  • Natural farming को अपनाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करना
  • जैविक आदानों की उपलब्धता और वहनीयता सुनिश्चित करना
  • Natural farming के लिए प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करना
  • प्राकृतिक उत्पादों के लिए बाजार विकसित करना और उनका प्रमाणन करना

भारत में Natural farming को बढ़ावा देने के लिए सरकारी पहल:

  1. परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY): इसे 2015 में, केंद्र प्रायोजित योजना (CSS) के तहत मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन (SHM) के एक विस्तारित घटक के रूप में राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA) के अंतर्गत शुरू किया गया था। PKVY के प्राथमिक उद्देश्य हैं:
    • प्रमाणित जैविक खेती के माध्यम से वाणिज्यिक जैविक उत्पादन को बढ़ावा देना।
    • उपभोक्ता स्वास्थ्य को बढ़ाने के लिए कीटनाशक अवशेष मुक्त फसलों का उत्पादन।
    • किसानों की आय में वृद्धि और व्यापारियों के लिए संभावित बाजारों का निर्माण।
    • दीर्घकालिक मिट्टी की उर्वरता, संसाधनों का संरक्षण, और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अनुकूलन और शमन सुनिश्चित करना।
  2. भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति योजना (BPKP): Natural farming के लिए भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (BPKP) योजना को कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा वित्तीय वर्ष 2019-20 और 2024-25 में शुरू किया गया था। यह PKVY (परंपरागत कृषि विकास योजना) की एक उप-योजना है और इसे छह साल (2019-20 से 2024-25) के लिए 4,645 करोड़ के कुल परिव्यय के साथ शुरू किया गया था। BPKP योजना की प्रमुख विशेषताएं:
    • सिंथेटिक रासायनिक आदानों का उन्मूलन।
    • बायोमास मल्चिंग पर जोर देने के साथ खेत पर बायोमास रीसाइक्लिंग।
    • गोबर-मूत्र के योगों का उपयोग।
    • पौधे-आधारित तैयारियों को अपनाना।
    • वायु संचार के लिए नियमित मिट्टी की जुताई।
  3. राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (NMNF): 
  • केंद्रीय कृषि मंत्रालय किसानों को रासायन मुक्त खेती अपनाने के लिए प्रेरित करने और उन्हें Natural farming को स्वेच्छा से अपनाने की ओर आकर्षित करने के लिए इस मिशन को शुरू करने की तैयारी कर रहा है। 
  • NMNF की सफलता के लिए किसानों को अपने व्यवहार में बदलाव लाने की आवश्यकता होगी, ताकि वे रासायन-आधारित आदानों से हटकर गाय-आधारित, स्थानीय रूप से उत्पादित आदानों की ओर बढ़ें।

Natural farming के फायदे:

पर्यावरण को लाभ (Benefits to the environment):

स्वस्थ मिट्टी (Healthy Soil): Natural farming के तरीके जैसे कम्पोस्ट और मल्चिंग, लाभकारी सूक्ष्मजीवों और जैविक पदार्थों को बढ़ावा देकर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाते हैं। इससे पानी की धारण क्षमता में सुधार, पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि और बेहतर फसल उपज मिलती है।

पानी की बचत (water saving): मल्चिंग और ड्रिप सिंचाई जैसे प्राकृतिक तरीके मिट्टी में नमी बनाए रखने में मदद करते हैं, जिससे अत्यधिक पानी के उपयोग की आवश्यकता कम हो जाती है। यह स्थायी जल प्रबंधन और सूखे की स्थिति से निपटने के लिए महत्वपूर्ण है।

प्रदूषण में कमी (Reduction in Pollution): रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों को प्राकृतिक विकल्पों से बदलकर, Natural farming मिट्टी, जल निकायों और वायुमंडल के प्रदूषण को काफी कम करती है। यह पारिस्थितिक तंत्र और मानव स्वास्थ्य को हानिकारक रसायनों से बचाता है।

जलवायु परिवर्तन में कमी (Climate change reduction): पारंपरिक कृषि की तुलना में Natural farming के तरीकों में आमतौर पर कार्बन फुटप्रिंट (Carbon Footprint )कम होता है। इसके अतिरिक्त, स्वस्थ मिट्टी कार्बन सिंक के रूप में कार्य करती है, ग्रीनहाउस गैसों (Greenhouse gases) को कैद करती है और जलवायु परिवर्तन को कम करने में योगदान देती है।

किसानों को लाभ (Benefits to farmers):

कम लागत (Less cost): Natural farming स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों और खेत में ही तैयार सामग्री, जैसे कम्पोस्ट और जैव-कीटनाशकों पर निर्भर करती है, जिससे रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों जैसे महंगे बाहरी आदानों पर निर्भरता कम होती है। इससे उत्पादन की कुल लागत कम होती है और किसानों की लाभप्रदता में सुधार होता है।

बेहतर कृषि लचीलापन (Improved agricultural resilience): Natural farming के तरीके मिट्टी के स्वास्थ्य और जैव विविधता को बढ़ावा देकर खेतों को सूखे और बाढ़ जैसी चरम मौसम की घटनाओं के प्रति अधिक लचीला बनाते हैं। इससे अधिक स्थिरता आती है और किसानों के लिए जोखिम कम होता है।

किसानों के स्वास्थ्य में सुधार (Improving the health of farmers): हानिकारक रसायनों के संपर्क को खत्म करके, Natural farming किसानों के स्वास्थ्य और कल्याण की रक्षा करती है।

उपभोक्ताओं को लाभ (Benefits to Consumers):

सुरक्षित भोजन (Safe Food): Natural farming हानिकारक रासायनिक अवशेषों से मुक्त भोजन का उत्पादन करती है, जिससे उपभोक्ताओं के लिए सुरक्षित और स्वस्थ उपभोग होता है।

बेहतर खाद्य गुणवत्ता (Better food quality): अध्ययनों से पता चलता है कि प्राकृतिक रूप से उगाए गए भोजन में एंटीऑक्सिडेंट और अन्य लाभकारी पोषक तत्वों का उच्च स्तर हो सकता है, जिससे संभवतः उपभोक्ताओं के लिए बेहतर स्वास्थ्य परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।

सतत कृषि के लिए समर्थन (Support for Sustainable Agriculture): जो उपभोक्ता प्राकृतिक खाद्य उत्पाद चुनते हैं, वे अप्रत्यक्ष रूप से एक अधिक टिकाऊ और नैतिक कृषि प्रणाली का समर्थन करते हैं जिससे पर्यावरण और किसानों को लाभ होता है।

Natural farming से जुड़ी चुनौतियाँ:

सीमित बाजार (Limited market): Natural farming अपनाने वाले किसानों को उनके उत्पादों के लिए उचित दाम नहीं मिल पाते हैं, क्योंकि अभी तक प्राकृतिक उत्पादों के लिए अलग बाजार, मानक और नियम पर्याप्त रूप से विकसित नहीं हुए हैं। कई किसान बताते हैं कि उनके प्राकृतिक उत्पाद मुख्यतः घर में ही इस्तेमाल होते हैं। इसके अलावा, Natural farming के लिए प्रमाणन और मानकीकरण की कमी है, जिससे इसे जैविक या पारंपरिक खेती से अलग पहचानना मुश्किल हो जाता है।

शुरुआती पैदावार में कमी (Decrease in initial yield): Natural farming स्वस्थ मिट्टी पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण पर निर्भर करती है, जिसमें समय लगता है। इसके कारण, शुरुआती वर्षों में पारंपरिक तरीकों की तुलना में पैदावार कम होती है, क्योंकि पारंपरिक खेती में रासायनिक खाद का उपयोग करके तुरंत उपज बढ़ाने पर ध्यान दिया जाता है। आंध्र प्रदेश में, सेंटर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर के एक अध्ययन में पाया गया कि Natural farming में धान की उपज पहले वर्ष में पारंपरिक खेती की तुलना में 20% कम थी, लेकिन तीन वर्षों के भीतर धीरे-धीरे सुधार कर पारंपरिक उपज के बराबर हो गई।

जागरूकता और प्रशिक्षण की कमी (Lack of awareness and training): कई किसानों को Natural farming तकनीकों का ज्ञान और व्यावहारिक कौशल नहीं होता है, जिससे वे इसे अपनाने में हिचकिचाते हैं। प्रशिक्षण कार्यक्रमों और विस्तार सेवाओं की सीमित उपलब्धता इस समस्या को और बढ़ा देती है। हिमाचल प्रदेश में, Natural farming को बढ़ावा देने के लिए सरकारी पहल के बावजूद, कई किसान अभी भी इसकी विशिष्ट प्रथाओं और लाभों से अनजान हैं, जिससे व्यापक रूप से अपनाने में बाधा आ रही है।

जैविक आदानों की उपलब्धता और वहनीयता (Availability and affordability of organic inputs): जैविक कपास के बीजों की उच्च लागत, मिट्टी के स्वास्थ्य और बाजार की मांग के लिए दीर्घकालिक लाभों के बावजूद, किसानों को प्राकृतिक कपास की खेती अपनाने से हतोत्साहित करती है।

कीट और रोग प्रबंधन (Pest and Disease Management): Natural farming कीट और रोग नियंत्रण के लिए पारिस्थितिक तरीकों पर निर्भर करती है, जो अल्पावधि में रासायनिक कीटनाशकों की तुलना में कम प्रभावी हो सकते हैं। इसके लिए किसानों को अधिक सतर्क रहने और निवारक उपाय अपनाने की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, जम्मू और कश्मीर में सेब उत्पादकों को प्राकृतिक तरीकों का उपयोग करके कोडलिंग कीट के प्रकोप को प्रबंधित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे कुछ किसान रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग करने लगते हैं।

श्रीलंका से सबक:

  • कुछ साल पहले, पड़ोसी देश श्रीलंका पूरी तरह से जैविक खेती अपनाने और रासायनिक उर्वरकों के आयात पर प्रतिबंध लगाने के बाद आर्थिक और राजनीतिक उथल-पुथल से गुज़रा। 
  • सरकार के इस नीतिगत बदलाव के गंभीर परिणाम हुए, जिससे किसानों को प्राकृतिक उर्वरक प्राप्त करने में कठिनाई हुई। 
  • चावल सहित प्रमुख फसलों की पैदावार में कमी का सामना करना पड़ा, जिससे देश की खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ गई। 
  • देश में कीमतों में तेजी से वृद्धि देखी गई, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन और अशांति हुई।

Natural farming को बढ़ावा देने के लिए क्या उपाय किए जाने चाहिए?

वैकल्पिक और विशिष्ट बाज़ारों का विकास (Development of alternative and niche markets): अगर हमें Natural farming (NF) की ओर बढ़ना है, तो सरकार को वैकल्पिक बाज़ारों की खोज करनी चाहिए। यहां NF के लिए वैकल्पिक बाज़ारों के विस्तार पर कुछ विचार दिए गए हैं:

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS): Natural farming उत्पादों को PDS में शामिल करने से न केवल किसानों को एक स्थिर बाज़ार मिल सकता है, बल्कि व्यापक आबादी को स्वस्थ और रसायन मुक्त भोजन की उपलब्धता भी सुनिश्चित हो सकती है।

मौजूदा तंत्र का उपयोग (Use of existing system): प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों और विपणन संघों के मौजूदा नेटवर्क को भी शामिल किया जा सकता है।

किसान उत्पादक संगठनों (FPO) के साथ सहयोग: उत्पादन, खरीद और वितरण की दक्षता बढ़ाने के लिए FPO के साथ सहयोग किया जा सकता है।

मिड-डे मील कार्यक्रम (Mid-Day Meal Programme): मिड-डे मील कार्यक्रम, स्थानीय विकेन्द्रीकृत प्रणालियों का उपयोग करके, भोजन आयात करने के बजाय एक नया बाज़ार बन सकता है। इसमें FPO की भागीदारी के साथ आस-पास के क्षेत्रों से उपज का स्थानीय उत्पादन, खरीद, भंडारण और वितरण शामिल है। स्थानीय आवश्यकताओं के लिए स्थानीय फसलें ही हमारा मंत्र होना चाहिए।

समर्पित हाट (Dedicated markets): आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु में लगभग 43,000 ग्राम हाट (बाज़ार) हैं। इनमें से कुछ को प्रमाणित Natural farming उत्पादों और पिछड़े एकीकरण के लिए समर्पित किया जा सकता है।

उपभोक्ता सहकारी समितियों की स्थापना (Establishment of consumer co-operative societies): प्रमुख शहरों के शहरी/परि-शहरी क्षेत्रों में भी उपभोक्ता सहकारी समितियां स्थापित की जा सकती हैं, जहां कृषि भूमि 100 किमी के दायरे में हो।

निष्कर्ष:

  • Natural farming पर ध्यान केंद्रित करने से भारत को पर्यावरण, स्वास्थ्य और आर्थिक लाभ मिल सकते हैं।
  • हालांकि, सफल कार्यान्वयन के लिए पर्याप्त नीतिगत समर्थन, बाजार विकास और किसान शिक्षा के माध्यम से चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता है।
  • एक अधिक टिकाऊ कृषि मॉडल को बढ़ावा देकर, भारत खाद्य सुरक्षा बढ़ा सकता है, ग्रामीण विकास को बढ़ावा दे सकता है और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक प्रयासों में योगदान दे सकता है।

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