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चीन, तिब्बत में सबसे बड़े जलविद्युत बांध की योजना

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चीन ने ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया के सबसे बड़े जलविद्युत बांध की योजना निर्माण को मंजूरी दे दी है। तिब्बत में भारतीय सीमा के करीब बनने वाला यह बांध, जिसकी लागत $137 बिलियन बताई जा रही है, दुनिया की सबसे बड़ी आधारभूत संरचना परियोजना होगी।

मुख्य बिंदु: चीन द्वारा विश्व के सबसे बड़े जलविद्युत बांध की योजना:

डैम की विशेषताएं:

  1. स्थान: तिब्बती पठार के पूर्वी किनारे पर यारलुंग ज़ांग्बो नदी के निचले हिस्से में बनाया जाएगा।
  2. उत्पादन क्षमता:
    • वार्षिक 300 अरब किलोवाट-घंटा बिजली उत्पादन क्षमता।
    • यह वर्तमान में विश्व के सबसे बड़े थ्री गॉर्जेस डैम (2 अरब किलोवाट-घंटा) की क्षमता से तीन गुना अधिक होगी।
  3. खर्च: निर्माण लागत थ्री गॉर्जेस डैम (2 बिलियन युआन) से अधिक होने की संभावना।

पर्यावरण और विस्थापन के प्रभाव:

    • क्षेत्र में पारिस्थितिक विविधता और तिब्बती पठार का समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र।
    • परियोजना से विस्थापित लोगों की संख्या अभी स्पष्ट नहीं।

चीन का पक्ष:

  • चीन का दावा है कि तिब्बत में हाइड्रोपावर परियोजनाएं:
    • पर्यावरण और डाउनस्ट्रीम जल आपूर्ति पर बड़ा प्रभाव नहीं डालेंगी।
    • कार्बन तटस्थता लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करेंगी।
    • इंजीनियरिंग, उद्योग, और रोजगार सृजन को बढ़ावा देंगी।

भारत और बांग्लादेश की चिंताएं:

  • नदी प्रवाह पर प्रभाव:
    • यारलुंग ज़ांग्बो नदी भारत में ब्रह्मपुत्र बनकर अरुणाचल प्रदेश और असम से होते हुए बांग्लादेश में बहती है।
    • डैम का प्रवाह, नदी की दिशा, और स्थानीय पारिस्थितिकी पर प्रभाव संभावित चिंता का विषय।
  • चुनौतियां और क्षमता: यारलुंग ज़ांग्बो का एक खंड 50 किमी के भीतर 2,000 मीटर की ऊंचाई से गिरता है, जो परियोजना को तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण लेकिन उच्च ऊर्जा उत्पादन क्षमता वाला बनाता है।

भारतचीन सीमा विवाद:

  • सीमा विवाद: भारत-चीन के बीच 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा है, लेकिन यह पूरी तरह से स्पष्ट रूप से चिह्नित नहीं है। कई हिस्सों में दोनों देशों के बीच सहमति आधारित “वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC)” नहीं है।
  • LAC का गठन: यह रेखा 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद बनी, जो भारतीय और चीनी नियंत्रण वाले क्षेत्रों को अलग करती है।
    • भारत के अनुसार, LAC की लंबाई 3,488 किलोमीटर है।
    • चीन के अनुसार, यह केवल लगभग 2,000 किलोमीटर है।

तीन भागों में बंटी सीमा:

पश्चिमी क्षेत्र (लद्दाख):

  • विवाद जॉनसन रेखा (1860 में ब्रिटिश द्वारा प्रस्तावित) पर है, जो अक्साई चिन को जम्मू-कश्मीर का हिस्सा बताती है।
  • चीन मैकडोनाल्ड रेखा (1890) को मान्यता देता है, जो अक्साई चिन को उसके अधिकार क्षेत्र में दिखाती है।

मध्य क्षेत्र (उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश):

  • यह क्षेत्र ज्यादातर विवादित नहीं है।
  • यहां दोनों देशों ने नक्शों का आदान-प्रदान किया है और सीमा पर आम सहमति है, हालांकि औपचारिक सीमांकन नहीं हुआ है।

पूर्वी क्षेत्र (अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम):

  • विवाद मैकमोहन रेखा (1914 शिमला समझौता) पर है, जिसे ब्रिटिश भारत, तिब्बत और चीन के प्रतिनिधियों ने तय किया था।
  • चीन इसे नहीं मानता और पूरे अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत का हिस्सा बताता है।
  • तवांग मठ और ल्हासा मठ के ऐतिहासिक संबंधों का हवाला देकर चीन अरुणाचल पर दावा मजबूत करता है।

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