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भारत के मुख्य न्यायाधीश, संजय खन्ना, ने उन याचिकाओं पर सुनवाई की जो 1976 के 42वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से भारतीय संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए “समाजवादी” और “धर्मनिरपेक्ष” शब्दों को चुनौती दे रही थीं।
मुख्य बिंदु:
- समाजवाद का अर्थ: मुख्य न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि भारत में “समाजवाद” का अर्थ एक कल्याणकारी राज्य से है, जो सभी को समान अवसर सुनिश्चित करता है, और यह निजी क्षेत्र की भागीदारी को नकारता नहीं है।
- प्रस्तावना संशोधन: उन्होंने यह दावा खारिज किया कि 1949 में संविधान सभा द्वारा अपनाई गई प्रस्तावना को संशोधित नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा है और इसे अनुच्छेद 368 के तहत बदला जा सकता है।
- मूल संरचना का हिस्सा: मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि “समाजवाद” और “धर्मनिरपेक्षता” संविधान की मूल संरचना का अभिन्न हिस्सा हैं और इन्हें बदला नहीं जा सकता।
- लोकतांत्रिक मूल्यों का समर्थन: उन्होंने यह भी खारिज किया कि ये शब्द अलोकतांत्रिक हैं। उनका उद्देश्य एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है।
समाजवाद क्या है?
समाजवाद एक आर्थिक और राजनीतिक विचारधारा है, जो निम्नलिखित पर आधारित है:
- सामूहिक स्वामित्व: संसाधनों और उत्पादन के साधनों का सार्वजनिक या सामूहिक स्वामित्व बढ़ावा देता है।
- संसाधनों का समान वितरण: धन और अवसरों में असमानता को कम करने के लिए संसाधनों का न्यायपूर्ण वितरण सुनिश्चित करता है।
- राज्य का हस्तक्षेप: सामाजिक और आर्थिक समानता हासिल करने के लिए रा
समाजवाद के प्रकार–
- क्रांतिकारी (मार्क्सवादी) समाजवाद:
- समाजवाद को केवल निजी संपत्ति समाप्त कर और सर्वहारा वर्ग की तानाशाही स्थापित कर हिंसक क्रांति के माध्यम से लाया जा सकता है।
- प्रगतिशील समाजवाद:
- समाजवादी ताकतें राज्य के अंगों को समाजवादी नीतियों को बनाने और लागू करने में सहयोग करती हैं।
भारत के प्रमुख समाजवादी नेता:
- आचार्य नरेंद्र देव, जयप्रकाश नारायण और डॉ. राम मनोहर लोहिया।
- आचार्य नरेंद्र देव के किसान सभा को संबोधित करने से प्रेरित होकर कर्पूरी ठाकुर ने स्वतंत्रता संग्राम और समाजवादी राजनीति में प्रवेश किया।
भारत में समाजवादी राजनीति का योगदान
स्वतंत्रता पूर्व काल
- आदर्श: उपनिवेशवाद-विरोध, समानता, और सामाजिक न्याय जैसे समाजवादी आदर्श स्वतंत्रता संग्राम के वैचारिक ढांचे में शामिल रहे।
- भूमिका: समाजवादी नेताओं और संगठनों ने श्रमिकों, किसानों और हाशिए पर पड़े समुदायों को संगठित कर राष्ट्रवादी आंदोलन को सशक्त बनाया।
स्वतंत्रता पश्चात काल
- संवैधानिक योगदान:
- संविधान में समानता और सामाजिक न्याय जैसे आदर्श समाजवादी सिद्धांतों से प्रेरित हैं।
- लोकतंत्र का सशक्तीकरण:
- समाजवादी नेताओं और पार्टियों ने क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के उदय में योगदान दिया, जिससे लोकतांत्रिक प्रणाली मजबूत हुई।
- आर्थिक नीतियाँ:
- राज्य की भूमिका पर बल देते हुए स्टील, ऊर्जा, और भारी उद्योग जैसे क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा दिया गया।
- दूसरा पंचवर्षीय योजना (1956-61) के तहत महालनोबिस मॉडल और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSEs) का विकास हुआ।
- सामाजिक कल्याण:
- कमजोर और हाशिए पर पड़े वर्गों के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली और आरक्षण नीतियों जैसी योजनाओं की स्थापना।
- भूदान आंदोलन जैसे समाजवादी आंदोलनों ने भूमि सुधार जैसी नीतियों को प्रभावित किया।
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