सामान्य अध्ययन पेपर- II: सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप सामान्य अध्ययन पेपर- III: रोजगार |
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार ने केंद्रीय 8वां वेतन आयोग के गठन को मंजूरी दे दी है। यह आयोग लगभग 1 करोड़ से ज्यादा केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के लिए नई वेतन संरचना और भत्तों पर समीक्षा करेगा और सिफारिशें देगा।
8वां वेतन आयोग के मुख्य बिंदु
- लागू होने की संभावित तिथि: 8वें वेतन आयोग की सिफारिशें 1 जनवरी 2026 से लागू होने की संभावना है।
- अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति: आयोग के कामकाज की निगरानी के लिए जल्द ही एक अध्यक्ष और दो सदस्य नियुक्त किए जाएंगे।
- 7वें वेतन आयोग की सिफारिशें: 8वें वेतन आयोग के लागू होने तक, वर्ष 2026 तक 7वें वेतन आयोग की सिफारिशें प्रभावी रहेंगी।
- वेतन वृद्धि की उम्मीद: केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों के लिए वेतन वृद्धि होने की संभावना है, जो उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाएगी।
- न्यूनतम मूल वेतन: 8वें वेतन आयोग के तहत न्यूनतम मूल वेतन ₹51,480 तक बढ़ सकता है, जो लगभग 186% की वृद्धि को दर्शाता हैं।
- फिटमेंट फैक्टर: 8वें वेतन आयोग में फिटमेंट फैक्टर को बढ़ाकर 2.86 किया जा सकता है, जो वेतन वृद्धि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होगा।
वेतन आयोग में फिटमेंट फैक्टर:
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वेतन आयोग का परिचय
भारत में वेतन आयोग सरकारी कर्मचारियों के वेतन ढांचे की समीक्षा करने और उसमें आवश्यक परिवर्तन सुझाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सरकारी कर्मचारियों को उचित वेतन दिया जाए, जिससे उनका मनोबल और उत्पादकता बढ़े।
- वेतन आयोग की भूमिका: वेतन आयोग केंद्र सरकार के लाखों कर्मचारियों के वेतन, भत्तों और अन्य लाभों को तय करने के लिए एक महत्वपूर्ण संस्थागत तंत्र है। आयोग कर्मचारी के प्रदर्शन, महंगाई दर और सरकार की भुगतान क्षमता जैसे कारकों पर विचार करता है और वेतन संरचनाओं में संशोधन के लिए सिफारिशें करता है।
- संचालन और गठन: यह आयोग केंद्र सरकार द्वारा गठित किया जाता है और वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग के तहत काम करता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों को समयानुसार और आर्थिक स्थिति के अनुसार उचित वेतन दिया जाए।
- गठन की अवधि: वेतन आयोग हर दस साल में एक बार गठित किया जाता है। इसे पहली बार 1947 में स्थापित किया गया था। आज़ादी के बाद से अब तक सात वेतन आयोग वेतन संरचनाओं की समीक्षा और संशोधन के लिए गठित किए जा चुके हैं।
- महत्व: यह नियमित मूल्यांकन सुनिश्चित करता है कि सरकारी कर्मचारियों के वेतन देश की बदलती आर्थिक परिस्थितियों के अनुरूप बने रहें और कर्मचारियों को पर्याप्त वित्तीय सुरक्षा मिल सके।
- सरकार के लिए वेतन आयोग की सिफारिशों को स्वीकार करना अनिवार्य नहीं है। यह सरकार के विवेक पर निर्भर करता है कि वह इन सिफारिशों को स्वीकार करे या अस्वीकार करे।
वेतन आयोग की संरचना और कार्य प्रणाली
भारत में वेतन आयोग की प्रणाली केंद्र सरकार द्वारा संचालित की जाती है, और इसका मुख्यालय दिल्ली में स्थित है। यह एक संगठित पैनल के माध्यम से कार्य करता है, जिसे सरकारी कर्मचारियों के वेतन और भत्तों में सुधार के लिए समीक्षा और सिफारिशें करने हेतु नियुक्त किया जाता है।
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- वेतन आयोग की संरचना:
- अध्यक्ष
- पूर्ण कालिक सदस्य
- अर्द्ध कालिक सदस्य
- सचिव
- वेतन आयोग की संरचना:
कार्य प्रणाली:
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- समय सीमा: वेतन आयोग के गठन के बाद इसे अपनी सिफारिशें देने के लिए 18 महीने का समय दिया जाता है।
- समीक्षा प्रक्रिया: आयोग केंद्र सरकार के सभी नागरिक और सैन्य विभागों के कर्मचारियों के वेतन और कार्य स्थितियों की समीक्षा करता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी श्रेणियों के कर्मचारियों को उचित ध्यान दिया जाए।
- शोध और परामर्श: आयोग अपनी प्रक्रिया में व्यापक शोध, परामर्श, और डेटा विश्लेषण करता है। मौजूदा वेतन संरचना का मूल्यांकन करने और आवश्यक संशोधन प्रस्तावित करने के लिए विशेषज्ञों और सलाहकारों की मदद ली जाती है।
- सिफारिशों का मूल्यांकन: अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करने के बाद, भारत सरकार इनकी समीक्षा करती है और इन संशोधनों को लागू करने के बारे में निर्णय लेती है। सरकार यह तय करती है कि सिफारिशों को पूरी तरह स्वीकार किया जाए, उनमें संशोधन किया जाए, या उन्हें अस्वीकार कर दिया जाए।
- अवधि और क्रियान्वयन: सरकार द्वारा अनुमोदन के बाद, सिफारिशें लागू की जाती हैं और यह लगभग 10 वर्षों तक प्रभावी रहती हैं।
वेतन आयोग की आवश्यकता
- मूल वेतन में वृद्धि: वेतन आयोग केवल मूल वेतन ही नहीं, बल्कि सरकारी कर्मचारियों को दिए जाने वाले विभिन्न भत्तों और लाभों का भी मूल्यांकन करता है और उनमें सुधार के सुझाव देता है। ये उपाय यह सुनिश्चित करते हैं कि कर्मचारियों को प्रतिस्पर्धात्मक वेतन मिले, जो देश की आर्थिक स्थिति के अनुरूप हो।
- अन्य क्षेत्रों पर प्रभाव: वेतन आयोग की सिफारिशें निजी क्षेत्र और राज्य सरकारों में भी वेतन संरचनाओं को प्रभावित करती हैं। कई संगठन और राज्य प्रशासन केंद्रीय वेतन आयोग की सिफारिशों को एक मानक के रूप में अपनाते हैं जब वे अपनी वेतन संरचनाओं में बदलाव करते हैं।
- वेतन समानता को बढ़ावा: वेतन आयोग वेतन में समानता और सामाजिक न्याय के मुद्दों को संबोधित करता है, ताकि विभिन्न श्रेणियों के सरकारी कर्मचारियों के बीच उचित वेतन संरचना सुनिश्चित हो सके। यह वेतन के अंतर को कम करने में मदद करता है और कार्यबल में समानता को बढ़ावा देता है।
- आर्थिक परिवर्तनों के अनुरूप ढालना: वेतन आयोग वर्तमान आर्थिक परिदृश्य का विश्लेषण करता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सरकारी कर्मचारियों को उचित और प्रतिस्पर्धी वेतन मिले। यह सरकार को समय-समय पर कर्मचारियों के वेतन को आर्थिक बदलावों के साथ संतुलित करने का अवसर प्रदान करता है।
वेतन आयोग: समयरेखा और महत्वपूर्ण कार्य
यहां भारत के सभी सात वेतन आयोगों की समयरेखा और मुख्य विवरण दिए गए हैं:
- पहला वेतन आयोग
- समय: मई 1946 – मई 1947
- अध्यक्ष: श्रीनिवास वरदाचार्य
- मुख्य कार्य: भारत की स्वतंत्रता के बाद वेतन संरचना को तार्किक बनाना। कर्मचारियों के लिए “जीवित वेतन” की अवधारणा को पेश किया।
- न्यूनतम वेतन: ₹55/महीना
- लाभार्थी: लगभग 15 लाख कर्मचारी
- दूसरा वेतन आयोग
- समय: अगस्त 1957 – अगस्त 1959
- अध्यक्ष: जगन्नाथ दास
- मुख्य कार्य: महंगाई के साथ अर्थव्यवस्था को संतुलित करना। “सामाजिकतावादी समाज का रूप” की अवधारणा को पेश किया।
- न्यूनतम वेतन: ₹80/महीना
- लाभार्थी: लगभग 25 लाख कर्मचारी
- तीसरा वेतन आयोग
- समय: अप्रैल 1970 – मार्च 1973
- अध्यक्ष: रघुबीर दयाल
- मुख्य कार्य: सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के वेतन में समानता की आवश्यकता को उजागर किया। वेतन संरचना में असमानताओं को दूर किया।
- न्यूनतम वेतन: ₹185/महीना
- लाभार्थी: लगभग 30 लाख कर्मचारी
- चौथा वेतन आयोग
- समय: सितंबर 1983 – दिसंबर 1986
- अध्यक्ष: पी.एन. सिंघल
- मुख्य कार्य: विभिन्न श्रेणियों के कर्मचारियों के वेतन में भेदभाव को कम करना। प्रदर्शन आधारित वेतन की अवधारणा पेश की।
- न्यूनतम वेतन: ₹750/महीना
- लाभार्थी: लगभग 35 लाख कर्मचारी
- पाँचवां वेतन आयोग
- समय: अप्रैल 1994 – जनवरी 1997
- अध्यक्ष: न्यायमूर्ति एस. रत्नवेल पांडीयन
- मुख्य कार्य: सरकारी कार्यालयों का आधुनिकीकरण और वेतन स्केलों की संख्या को कम करना।
- न्यूनतम वेतन: ₹2,550/महीना
- लाभार्थी: लगभग 40 लाख कर्मचारी
- छठा वेतन आयोग
- समय: अक्टूबर 2006 – मार्च 2008
- अध्यक्ष: न्यायमूर्ति बी.एन. श्रीकृष्ण
- मुख्य कार्य: पे बैंड और ग्रेड पे प्रणाली को पेश किया। प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन पर जोर दिया।
- न्यूनतम वेतन: ₹7,000/महीना
- लाभार्थी: लगभग 6 मिलियन कर्मचारी
- सातवां वेतन आयोग
- समय: फरवरी 2014 – नवंबर 2016
- अध्यक्ष: न्यायमूर्ति ए.के. माथुर
- मुख्य कार्य: न्यूनतम वेतन ₹18,000/महीना किया गया। ग्रेड पे प्रणाली को बदलकर नई वेतन मैट्रिक्स पेश की। भत्तों और कार्य-जीवन संतुलन को सुधारने पर ध्यान केंद्रित किया।
- लाभार्थी: 1 करोड़ से अधिक कर्मचारी और पेंशनर्स
सातवें वेतन आयोग के मुख्य बिंदु
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वेतन आयोग के सम्मुख चुनौतियाँ:
- राजकोषीय जिम्मेदारी और कर्मचारियों की मांगों का संतुलन: सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है कर्मचारियों की बढ़ती वेतन अपेक्षाओं को पूरा करते हुए राजकोषीय अनुशासन बनाए रखना। लगभग 50 लाख केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों और 65 लाख पेंशनरों की वेतन संबंधी मांगों को पूरा करना एक कठिन कार्य है, क्योंकि प्रत्येक आयोग की सिफारिशों के परिणामस्वरूप अक्सर ₹1 लाख करोड़ से अधिक का खर्च आता है।
- क्षेत्रीय और विभागीय असमानताओं का समाधान: विभिन्न क्षेत्रों में रहने की लागत में असमानता और विभागों के बीच भिन्नताएँ एक समान वेतन संरचना बनाने में चुनौती उत्पन्न करती हैं। मेट्रो शहरों में रहने वाले कर्मचारियों को छोटे शहरों में रहने वाले कर्मचारियों की तुलना में उच्च जीवन यापन लागत का सामना करना पड़ता है।
- पेंशन बोझ का प्रबंधन: लगभग 65 लाख पेंशनरों की बढ़ती पेंशन प्रतिबद्धताएँ सरकारी वित्त पर भारी दबाव डालती हैं। न्यू पेंशन स्कीम (NPS) ने कुछ मुद्दों का समाधान किया, लेकिन पुराने पेंशन स्कीम में शामिल पेंशनरों को उच्च भत्तों और लाभों की लगातार मांग बनी रहती है।
- प्रदर्शन-आधारित वेतन पर विरोध: सातवें वेतन आयोग द्वारा प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन (performance-linked incentives) को लागू करने का कर्मचारियों ने विरोध किया, क्योंकि वे अक्सर समान वेतन वृद्धि को पसंद करते हैं। सरकारी पदों पर प्रदर्शन को मापने के लिए एक ठोस प्रणाली लागू करना कठिन होता है, क्योंकि अधिकांश प्रशासनिक भूमिकाओं में स्पष्ट और मापने योग्य मानदंडों की कमी बनी रहती है।
UPSC पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ) प्रश्न (2013): छिपी हुई बेरोज़गारी का सामान्य अर्थ क्या है? (a) बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार रहते हैं (b) वैकल्पिक रोजगार उपलब्ध नहीं है (c) श्रमिक की सीमांत उत्पादकता शून्य है (d) श्रमिकों की उत्पादकता कम है उत्तर: (c) प्रश्न (2023): भारत में अधिकांश बेरोज़गारी संरचनात्मक (structural) है। देश में बेरोज़गारी की गणना करने के लिए अपनाई गई विधि का विश्लेषण करें और सुधार के सुझाव दें। |
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