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भारत का आर्थिक सर्वेक्षण

सामान्य अध्ययन पेपर III: वृद्धि और विकास, मौद्रिक नीति, पूंजी बाज़ार, राजकोषीय नीति, बैंकिंग क्षेत्र एवं एनबीएफसी (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां), समावेशी विकास

चर्चा में क्यों? 

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 31 जनवरी 2025 को भारत का आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 पेश किया। इस रिपोर्ट में वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान देश के आर्थिक प्रदर्शन का आधिकारिक मूल्यांकन प्रस्तुत किया गया। साथ ही, इसमें आने वाले समय में भारत के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला गया।

भारत का आर्थिक सर्वेक्षण – परिचय

भारत का आर्थिक सर्वेक्षण वित्त मंत्रालय द्वारा जारी किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण वार्षिक दस्तावेज़ है। यह देश की अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन का व्यापक विश्लेषण प्रदान करता है। इसे आमतौर पर केंद्रीय बजट से एक दिन पहले संसद में प्रस्तुत किया जाता है। यह नीति निर्माताओं, अर्थशास्त्रियों और जनता के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति का आकलन करने का एक उपयोगी साधन है।

  • इसमें कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्रों सहित भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों का विस्तृत सांख्यिकीय विवरण शामिल होता है।
  • यह सरकार की उपलब्धियों को उजागर करता है और पिछले वर्ष के दौरान लागू की गई प्रमुख विकास योजनाओं और पहलों पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • यह दस्तावेज़ संसद के दोनों सदनों में निर्धारित बजट सत्र के दौरान पेश किया जाता है।
  • आर्थिक सर्वेक्षण में सरकार की नीतियों पर चर्चा की जाती है और आने वाले वर्ष के लिए आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और चुनौतियों का समाधान करने के लिए नई रणनीतियों का सुझाव दिया जाता है।
  • यह अर्थव्यवस्था की अपेक्षित दिशा को रेखांकित करता है, जिससे विभिन्न हितधारकों को अल्पकालिक और मध्यमकालिक आर्थिक पूर्वानुमान समझने में मदद मिलती है।
  • आर्थिक सर्वेक्षण भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सबसे विश्वसनीय और अद्यतन स्रोतों में से एक है। इसमें जीडीपी वृद्धि से लेकर मुद्रास्फीति के रुझानों तक विभिन्न व्यापक आर्थिक संकेतकों पर जानकारी दी जाती है।
  • भारत का पहला आर्थिक सर्वेक्षण 1950-51 में डॉ. जॉन मथाई, जो उस समय के वित्त मंत्री थे, द्वारा प्रस्तुत किया गया था।
  • शुरुआत में, इसे केंद्रीय बजट के साथ प्रस्तुत किया जाता था, लेकिन 1964 से इसे बजट से अलग कर दिया गया।
  • हालांकि यह आर्थिक सर्वेक्षण संविधान द्वारा अनिवार्य नहीं है, लेकिन भारत में आर्थिक सर्वेक्षण का प्रस्तुतिकरण देश की आर्थिक योजना का एक नियमित और परंपरागत हिस्सा बन गया है।

भारत का आर्थिक सर्वेक्षण – तैयारी और प्रस्तुतिकरण

  • तैयारी:
    • आर्थिक सर्वेक्षण का पहला प्रारूप वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग की अर्थशास्त्र शाखा द्वारा तैयार किया जाता है।
    • इस प्रक्रिया का मार्गदर्शन मुख्य आर्थिक सलाहकार और आर्थिक मामलों के सचिव करते हैं ताकि यह दस्तावेज़ व्यापक और सटीक हो।
    • वित्त सचिव द्वारा गहन जांच के बाद, अंतिम मसौदे को संसद में प्रस्तुत करने से पहले वित्त मंत्री द्वारा स्वीकृत किया जाता है।
  • प्रस्तुतिकरण:
    • आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट हर साल बजट सत्र के दौरान संसद में प्रस्तुत की जाती है।
    • वित्त मंत्री संसद में आर्थिक सर्वेक्षण पेश करते हैं, जो अगले वर्ष के लिए देश की आर्थिक दिशा का खाका प्रस्तुत करता है।

भारत का आर्थिक सर्वेक्षण – संरचना

2015 से, भारत का आर्थिक सर्वेक्षण दो भागों में प्रस्तुत किया जाता है। हर भाग देश की अर्थव्यवस्था के अलग-अलग पहलुओं पर केंद्रित होता है।

  • पहला भाग: व्यापक आर्थिक विश्लेषण
    • वर्तमान आर्थिक स्थिति: इसमें देश की आर्थिक स्थिति का गहन विश्लेषण किया जाता है, जैसे जीडीपी वृद्धि, मुद्रास्फीति, बेरोजगारी और राजकोषीय घाटा।
    • नीति सिफारिशें: इस भाग में नीतिगत सुझाव दिए जाते हैं और आने वाले वर्ष के लिए सरकार की रणनीतियों को रेखांकित किया जाता है।
    • समय: यह भाग केंद्रीय बजट से ठीक पहले पेश किया जाता है और देश की आर्थिक दृष्टि का परिचय देता है।
  • दूसरा भाग: क्षेत्रीय प्रदर्शन और सांख्यिकीय आंकड़े
    • क्षेत्रीय जानकारी: इसमें अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों जैसे कृषि, उद्योग, सेवा, शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे का विस्तृत विवरण होता है।
    • आंकड़ा आधारित विश्लेषण: यह भाग आंकड़ों पर केंद्रित होता है, जो क्षेत्रीय प्रवृत्तियों और चुनौतियों की गहरी समझ प्रदान करता है।
    • प्रस्तुति का समय: दूसरा भाग आमतौर पर जुलाई या अगस्त में, बजट प्रस्तुति के बाद पेश किया जाता है।

भारत का आर्थिक सर्वेक्षण – उद्देश्य

भारत का आर्थिक सर्वेक्षण देश की आर्थिक स्थिति और भविष्य की संभावनाओं का विस्तृत आकलन प्रस्तुत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

  • आर्थिक विश्लेषण:
    • आर्थिक सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य पिछले वर्ष की आर्थिक उपलब्धियों और चुनौतियों का विश्लेषण करना है।
    • यह एक विश्लेषणात्मक ढांचा प्रदान करता है, जिसमें देश के विकास को बढ़ावा देने वाली संभावनाओं और मुख्य आर्थिक चुनौतियों को रेखांकित किया जाता है।
  • क्षेत्रीय विश्लेषण:
    • यह सर्वेक्षण कृषि, उद्योग, सेवा क्षेत्र और निर्यात जैसे विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों का गहन अध्ययन करता है।
    • इसमें इन क्षेत्रों में सुधार और विकास की संभावनाओं पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
  • नीतिगत दिशानिर्देश:
    • आर्थिक सर्वेक्षण सरकार को नीतिगत सिफारिशें प्रदान करता है, हालांकि इनका लागू होना अनिवार्य नहीं है।
    • यह आगामी केंद्रीय बजट के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है और भविष्य की आर्थिक नीतियों के लिए ढांचा तैयार करता है।
  • जन जागरूकता:
    • आर्थिक सर्वेक्षण का उपयोग अर्थशास्त्रियों, शोधकर्ताओं और छात्रों द्वारा भारत की आर्थिक प्रवृत्तियों और पैटर्न को समझने के लिए किया जाता है।
    • यह जनता को सरकार की आर्थिक रणनीतियों के बारे में शिक्षित करता है और निर्णय लेने की प्रक्रिया में बेहतर और प्रगतिशिल भागीदारी को प्रोत्साहित करता है।

भारत के आर्थिक सर्वेक्षण के मुख्य पहलू

भारत का आर्थिक सर्वेक्षण देश की आर्थिक स्थिति का व्यापक विश्लेषण करता है। इसमें व्यापक आर्थिक संकेतकों (macroeconomic indicators) के साथ-साथ विकास और प्रगति के विशिष्ट क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।

  • प्रमुख आर्थिक संकेतक:
    • सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि दर: यह देश की आर्थिक सेहत का आकलन करने के लिए महत्वपूर्ण आंकड़े प्रदान करता है।
    • मुद्रास्फीति और बेरोज़गारी: सर्वेक्षण में देश में मुद्रास्फीति (inflation) और बेरोज़गारी (unemployment) की स्थिति पर प्रकाश डाला जाता है, जो मूल्य स्थिरता (price stability) और रोज़गार सृजन (job creation) की चुनौतियों को दर्शाते हैं।
    • राजकोषीय घाटा और व्यापार संतुलन: इसमें राजकोषीय घाटे (fiscal deficit) का उल्लेख होता है, जो सरकारी खर्च और राजस्व के बीच के अंतर को दर्शाता है, साथ ही व्यापार संतुलन (trade balance) पर चर्चा की जाती है, ताकि सीमा पार वस्तुओं और सेवाओं के प्रवाह को समझा जा सके।
    • विषयगत फोकस क्षेत्र: हर साल आर्थिक सर्वेक्षण में कुछ विशिष्ट राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। जैसे:
      • जलवायु परिवर्तन और हरित विकास: सर्वेक्षण विकास (sustainable development) और पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने की रणनीतियों की जानकारी देता है।
      • महिला सशक्तिकरण: इसमें लैंगिक समानता (gender equality) को बढ़ावा देने और विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के लिए अवसर बढ़ाने के प्रयासों पर चर्चा की जाती है।
      • डिजिटल इंडिया और नवाचार: इसमें भारत की अर्थव्यवस्था को बदलने में प्रौद्योगिकी और डिजिटल नवाचार (digital innovation) की भूमिका पर प्रकाश डाला जाता है।
      • रोज़गार: सर्वेक्षण रोज़गार सृजन (employment generation) और कौशल विकास (skill development) की पहलों पर भी ज़ोर देता है, जो आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए आवश्यक हैं।

आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24: मुख्य बिंदु और अंतर्दृष्टि

आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 भारत की आर्थिक प्रगति और चुनौतियों का व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जो सतत विकास के लिए एक मार्गदर्शिका के रूप मे काम करता है।

  • आर्थिक प्रदर्शन और विकास
    • वैश्विक चुनौतियों के बीच भारत की वृद्धि: वैश्विक अनिश्चितताओं और बाहरी दबावों के बावजूद, भारत की अर्थव्यवस्था ने मजबूती दिखाई है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में वास्तविक जीडीपी वृद्धि 8.2% रही। FY25 में 6.5-7% की विकास दर जारी रहने की संभावना है।
    • मुद्रास्फीति और राजकोषीय स्थिरता: मुद्रास्फीति को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया गया, जो FY23 में 6.7% से घटकर FY24 में 5.4% हो गई। चालू खाता घाटा (Current Account Deficit) भी घटकर जीडीपी का 0.7% रह गया।
  • मौद्रिक और वित्तीय क्षेत्र
    • मौद्रिक प्रबंधन: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने मौद्रिक नीति को स्थिर बनाए रखा, रेपो दर को 6.5% पर अपरिवर्तित रखा।
    • वित्तीय क्षेत्र का प्रदर्शन: भारत के बैंकिंग क्षेत्र ने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। FY24 में ऋण वितरण 20.2% बढ़ा और शेयर बाजार में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई।
  • क्षेत्रीय विकास
    • कृषि और खाद्य प्रबंधन: कृषि क्षेत्र में स्थिर वृद्धि हुई, और सहायक क्षेत्रों ने ग्रामीण आय में महत्वपूर्ण योगदान दिया। सरकार की सिंचाई, किसान क्रेडिट कार्ड और सूक्ष्म सिंचाई पर विशेष ध्यान देने से इन क्षेत्रों में व्यापक सुधार जारी है।
    • औद्योगिक विकास: भारत के औद्योगिक क्षेत्र ने FY24 में 9.5% की वृद्धि दर्ज की, जिसमें विनिर्माण और फार्मास्युटिकल्स का विशेष योगदान रहा।
  • जलवायु परिवर्तन और सतत विकास
    • ऊर्जा परिवर्तन: भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में उल्लेखनीय प्रगति की है, और मई 2024 तक 45.4% बिजली गैर-जीवाश्म स्रोतों से उत्पन्न हुई।
    • सतत विकास मॉडल: भारत का जलवायु परिवर्तन दृष्टिकोण आर्थिक विकास और पर्यावरणीय स्थिरता के बीच संतुलन पर आधारित है। मिशन LiFE जैसे पहल उपभोग में जागरूकता को बढ़ावा देते हैं, जो विकसित देशों के अतिउपभोग मॉडल से भिन्न है।
  • सामाजिक क्षेत्र और कल्याण
    • स्वास्थ्य और शिक्षा: आयुष्मान भारत और विद्यांजलि जैसी पहलों के माध्यम से डिजिटल स्वास्थ्य और शिक्षा पर सरकार का ध्यान सेवाओं की पहुंच और गुणवत्ता में सुधार कर रहा है।
    • रोज़गार और कौशल विकास: भारत में बेरोज़गारी दर में कमी आई है, और श्रम बल मजदूरी, महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़ रही है। हालांकि, गुणवत्तापूर्ण रोज़गार सृजन और बढ़ती कार्यबल की आवश्यकताओं के लिए कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है।

UPSC पिछले वर्षों के प्रश्न (PYQs)

प्रश्न (2018): सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) में कुल और प्रति व्यक्ति वास्तविक वृद्धि एक उच्च आर्थिक विकास स्तर का संकेत नहीं देती है, यदि:

(a) औद्योगिक उत्पादन, कृषि उत्पादन के साथ तालमेल नहीं रखता।

(b) कृषि उत्पादन, औद्योगिक उत्पादन के साथ तालमेल नहीं रखता।

(c) गरीबी और बेरोजगारी बढ़ती है।

(d) आयात, निर्यात से ज्यादा तेज़ी से बढ़ती हैं।

उत्तर: (c)

प्रश्न (2019): भारत में किसी एक वर्ष में, कुछ राज्यों में आधिकारिक गरीबी रेखा अन्य राज्यों से अधिक क्यों होती है?

(a) राज्यों में गरीबी दर अलग-अलग होती है।

(b) राज्यों में मूल्य स्तर अलग-अलग होते हैं।

(c) राज्यों का सकल राज्य उत्पाद अलग-अलग होता है।

(d) सार्वजनिक वितरण प्रणाली की गुणवत्ता अलग-अलग होती है।

उत्तर: (b)

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