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विशेषाधिकार प्रस्ताव: अर्थ, नियम और प्रक्रिया

सामान्य अध्ययन पेपर II: भारतीय संविधान, सरकारी नीतियां और हस्तक्षेप

चर्चा में क्यों? 

भारतीय संसद में विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव का मुद्दा चर्चा में है, जिसमें सत्ता पक्ष के सांसदों ने राष्ट्रपति पर कथित टिप्पणी के लिए कांग्रेस नेता के खिलाफ नोटिस जारी किया है। यह मामला राष्ट्रपति पद की गरिमा से जुड़ा होने के कारण गंभीर रूप से उठाया गया है।

विशेषाधिकार प्रस्ताव का अर्थ और उद्देश्य

विशेषाधिकार प्रस्ताव, भारतीय संसदीय प्रणाली का एक महत्वपूर्ण उपकरण है, जो संसद और उसके सदस्यों के विशेषाधिकारों की रक्षा के लिए लाया जाता है। यह प्रस्ताव तब लाया जाता है जब किसी सदस्य या मंत्री द्वारा संसद के अधिकारों, स्वतंत्रता, और गरिमा का उल्लंघन होता है। इसे सदन के कामकाज को सुचारू रखने और लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों की रक्षा के लिए एक आवश्यक प्रक्रिया माना जाता है।

  • विशेषाधिकार प्रस्ताव का अर्थ: विशेषाधिकार प्रस्ताव (Privilege Motion) वह औपचारिक प्रक्रिया है जिसके तहत किसी सदस्य द्वारा किए गए उल्लंघन को सदन के संज्ञान में लाया जाता है। यह उल्लंघन व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से संसद या उसके सदस्यों के अधिकारों की अवमानना के रूप में देखा जाता है। विशेषाधिकार प्रस्ताव भारतीय संसदीय व्यवस्था में एक सशक्त माध्यम है, जो संसद के अधिकारों की रक्षा करता है।
  • विशेषाधिकार प्रस्ताव का उद्देश्य
    • संसदीय गरिमा की रक्षा: विशेषाधिकार प्रस्ताव का मुख्य उद्देश्य संसद की गरिमा, स्वतंत्रता और अधिकारों को बनाए रखना है।
    • सदस्यों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना: यह सुनिश्चित करता है कि सांसद स्वतंत्र रूप से, बिना किसी दबाव या हस्तक्षेप के, अपने कार्य कर सकें।
    • आचरण पर निगरानी: विशेषाधिकार प्रस्ताव के माध्यम से किसी भी सदस्य, मंत्री, या अधिकारी के आचरण की जांच की जा सकती है, यदि वह संसदीय कार्यवाही में बाधा उत्पन्न करता है।
    • लोकतांत्रिक प्रक्रिया की रक्षा: यह संसद की स्वायत्तता और लोकतांत्रिक परंपराओं को बनाए रखने का एक माध्यम है। यह प्रस्ताव संसद की कार्यवाही की गरिमा और स्वतंत्रता को बनाए रखने में मदद करता है।

संसदीय विशेषाधिकार: महत्व और उल्लंघन 

भारतीय संसदीय प्रणाली में संसदीय विशेषाधिकार (Parliamentary Privileges) संसद के दोनों सदनों, उनके सदस्यों और समितियों को प्राप्त विशेष अधिकार, उन्मुक्तियाँ और छूट हैं। इन विशेषाधिकारों का मुख्य उद्देश्य संसद की स्वायत्तता, गरिमा, और सदस्यों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना है ताकि वे बिना किसी डर, हस्तक्षेप, या बाधा के अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकें।

  • संसदीय विशेषाधिकार और उससे जुड़े मुख्य बिंदु
    • संसदीय विशेषाधिकार संसद और उसके सदस्यों को उनके कामकाज के दौरान विशेष अधिकार और छूट प्रदान करता है।
    • इसमें शामिल है संसद में बोले गए किसी भी शब्द या की गई किसी भी कार्रवाई के लिए सदस्यों को कानूनी कार्यवाही से छूट
    • यह संसद के अन्य अंगों जैसे समितियों को भी उनके कार्यों में स्वतंत्रता और सुरक्षा प्रदान करता है।
    • स्वतंत्रता की गारंटी: संसद के सदस्य अपने विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त कर सकते हैं और किसी भी प्रकार की कानूनी बाधा से मुक्त रहते हैं।
    • गरिमा और स्वायत्तता की रक्षा: विशेषाधिकार सुनिश्चित करते हैं कि संसद की गरिमा बनी रहे और बाहरी हस्तक्षेप न हो।
    • विशेष कानून का अभाव: संसद ने अब तक इन विशेषाधिकारों को संहिताबद्ध (Codify) करने के लिए कोई विशेष कानून नहीं बनाया है।
    • राष्ट्रपति को छूट नहीं: यद्यपि राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग हैं, लेकिन उन्हें संसदीय विशेषाधिकार प्राप्त नहीं हैं। 
    • संसद के सदस्यों को सदन की बैठक के दौरान, बैठक के 40 दिन पहले और 40 दिन बाद तक गिरफ्तारी से छूट मिलती है।
  • संसदीय विशेषाधिकार का महत्व:
    • लोकतंत्र की रक्षा: यह विशेषाधिकार संसदीय लोकतंत्र की स्वायत्तता बनाए रखते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि संसद के कामकाज में किसी प्रकार की बाधा न आए।
    • सदस्यों के अधिकारों की सुरक्षा: यह सदस्यों को उनके संवैधानिक कर्तव्यों को स्वतंत्र रूप से निभाने का अधिकार देता है।
    • कार्यवाही की स्वतंत्रता: यह संसद की कार्यवाही को सुचारू और निष्पक्ष बनाए रखने में मदद करता है।
    • सदस्यों की गरिमा: यह सदस्यों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के निर्वहन में गरिमा और सम्मान प्रदान करता है।
  • संसदीय विशेषाधिकारों का उल्लंघन: संसदीय लोकतंत्र को सुचारू रूप से चलाने के लिए संसद के सदस्यों को दिए गए विशेष अधिकारों की जब अवहेलना होती है, तो इसे संसदीय विशेषाधिकारों का उल्लंघन (Breach of Privilege) कहा जाता है।
    • यदि किसी सदस्य, मंत्री, या बाहरी व्यक्ति द्वारा इन विशेषाधिकारों का हनन किया जाता है, तो यह संसद की गरिमा और स्वतंत्रता पर आघात माना जाता है।
    • उल्लंघन के मामलों में संबंधित मंत्री या सदस्य की सार्वजनिक निंदा की जाती है, जो एक बड़ा नैतिक दंड है।

विशेषाधिकार प्रस्ताव का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

भारतीय संसदीय व्यवस्था में विशेषाधिकार प्रस्ताव (Privilege Motion) एक महत्वपूर्ण उपकरण रहा है। इसका उपयोग भारत की स्वतंत्रता के बाद से संसद में अनेक बार किया गया है, और इससे जुड़े कई ऐतिहासिक उदाहरण हमें इसकी आवश्यकता और प्रभाव को समझाते हैं।

  • भारतीय संसद में विशेषाधिकार प्रस्ताव का प्रारंभ
    • ब्रिटिश परंपरा से प्रेरणा: विशेषाधिकार प्रस्ताव का मूल आधार ब्रिटेन की संसद में है। भारत ने अपनी संसदीय प्रणाली में इसे अपनाते हुए संविधान के अनुच्छेद 105 में विशेषाधिकारों का उल्लेख किया।
    • संविधान सभा की चर्चा: संविधान निर्माण के दौरान विशेषाधिकारों को संसद और उसके सदस्यों की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए आवश्यक माना गया।
  • ऐतिहासिक और प्रमुख उदाहरण
    • इंदिरा गांधी के खिलाफ विशेषाधिकार प्रस्ताव (1978): यह अब तक के सबसे चर्चित मामलों में से एक है। उस समय तत्कालीन गृह मंत्री ने आपातकाल के दौरान किए गए उनके कार्यों और ज्यादतियों के आधार पर इंदिरा गांधी के खिलाफ विशेषाधिकार प्रस्ताव पेश किया। इस प्रस्ताव में इंदिरा गांधी को दोषी पाया गया और उन्हें संसद से निष्कासित कर दिया गया।
    • राफेल सौदे पर विशेषाधिकार प्रस्ताव: देश के एक पूर्व प्रधानमंत्री और पूर्व रक्षा मंत्री के खिलाफ यह प्रस्ताव लाया गया। आरोप था कि उन्होंने राफेल लड़ाकू विमान सौदे पर संसद को झूठी और गुमराह करने वाली जानकारी दी। यह मामला हाल के वर्षों में विशेषाधिकार प्रस्ताव की प्रासंगिकता और जांच प्रक्रिया को रेखांकित करता है।
    • राज्यसभा में तृणमूल सांसद के खिलाफ प्रस्ताव: हाल ही में, राज्यसभा में संसदीय कार्य मंत्री ने तृणमूल कांग्रेस के एक सांसद के खिलाफ विशेषाधिकार प्रस्ताव लाया। प्रस्ताव में सांसद को मौजूदा सत्र के दौरान निलंबित करने की मांग की गई। राज्यसभा के सभापति ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दी, जिससे यह एक नवीनतम उदाहरण बन गया।

विशेषाधिकार प्रस्ताव को नियंत्रित करने वाले नियम और कानून

संसद में विशेषाधिकार प्रस्ताव (Privilege Motion) को व्यवस्थित और नियंत्रित करने के लिए संविधान और संसदीय नियम पुस्तिकाओं में विस्तृत प्रावधान किए गए हैं। ये प्रावधान न केवल संसद और इसके सदस्यों के अधिकारों की रक्षा करते हैं, बल्कि सदन की गरिमा और स्वायत्तता बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

  • लोकसभा और राज्यसभा में विशेषाधिकार प्रस्ताव के नियम
  • लोकसभा नियम पुस्तिका:
    • अध्याय 20 में नियम संख्या 222 विशेषाधिकार प्रस्ताव की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है।
    • यह नियम संसद के सदस्यों को अध्यक्ष की अनुमति से सदन या किसी सदस्य के विशेषाधिकार के उल्लंघन से संबंधित प्रश्न उठाने का अधिकार देता है।
  • राज्यसभा नियम पुस्तिका:
    • अध्याय 16 में नियम संख्या 187 विशेषाधिकार प्रस्ताव की प्रक्रिया का उल्लेख करता है।
    • यह नियम भी अध्यक्ष/सभापति की अनुमति के साथ, विशेषाधिकार उल्लंघन के मामलों को उठाने की अनुमति देता है।
  • प्रस्ताव की शर्तें:
  • उल्लंघन से संबंधित घटना हाल ही में हुई हो और उसमें सदन के तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता हो।
  • प्रस्ताव को सुबह 10 बजे से पहले अध्यक्ष या सभापति को प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
  • नियम यह भी कहते हैं कि घटना ऐसी होनी चाहिए जो सदन के तत्काल निर्णय की मांग करे।
  • वर्तमान में, संसद ने अभी तक सदस्यों के सभी विशेषाधिकारों को संहिताबद्ध करने के लिए कोई विशेष कानून नहीं बनाया है।
  • भारतीय संविधान में विशेषाधिकारों से संबंधित अनुच्छेद
    • अनुच्छेद 105: संसद के सदस्यों को दो प्रमुख विशेषाधिकार प्रदान करता है: बोलने की स्वतंत्रता और संसदीय कार्यवाही के प्रकाशन का अधिकार। यह संसद की समितियों को भी समान अधिकार और उन्मुक्तियां प्रदान करता है।
    • अनुच्छेद 194: राज्य विधानसभाओं, उनके सदस्यों और समितियों के लिए विशेषाधिकारों का प्रावधान करता है।
    • अनुच्छेद 361: भारत के राष्ट्रपति को विशेषाधिकार प्रदान करता है, जिससे वे अपने कार्यों के लिए न्यायालयों में उत्तरदायी नहीं होते।
  • विशेष प्रावधान: सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908
    • गिरफ्तारी और हिरासत से सुरक्षा: संसद के सत्र के दौरान, सत्र शुरू होने से 40 दिन पहले और 40 दिन बाद तक, सदस्यों को दीवानी मामलों में गिरफ्तारी और हिरासत से छूट मिलती है। यह छूट आपराधिक मामलों या निवारक निरोध के मामलों में लागू नहीं होती।
    • वैधानिक अधिकार: यह सुरक्षा कार्यकारी आदेश के माध्यम से वैधानिक रूप में दी गई है।

विशेषाधिकार प्रस्ताव दायर करने की प्रक्रिया

संसद के किसी सदस्य द्वारा विशेषाधिकार प्रस्ताव दायर करने की प्रक्रिया एक व्यवस्थित और स्पष्ट संरचना के तहत संचालित होती है। यह प्रक्रिया संसद की कार्यवाही और उसके सदस्यों के विशेषाधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करती है।

  • मुख्य भूमिका:
    • सदस्य द्वारा सहमति प्राप्त करना: प्रस्ताव दायर करने से पहले, संबंधित सदस्य को लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा सभापति से सहमति लेनी होती है। सहमति के बिना प्रस्ताव को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता।
    • सदन द्वारा प्रारंभिक निर्णय: अध्यक्ष/सभापति की सहमति के बाद, प्रस्ताव को सदन में पेश किया जाता है। सदन निर्णय लेता है कि मामला स्वयं निपटाया जाए या इसे विशेषाधिकार समिति को भेजा जाए।
  • अध्यक्ष/सभापति की भूमिका:
    • अध्यक्ष या सभापति यह तय करते हैं कि प्रस्ताव के अंतर्गत किया गया कार्य विशेषाधिकार का उल्लंघन है या नहीं।
    • उनके पास दो विकल्प होते हैं:
    • वे स्वयं निर्णय लें।
    • मामला विशेषाधिकार समिति को भेज दें।
    • यदि प्रस्ताव स्वीकार किया जाता है, तो संबंधित पक्ष को अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाता है।
    • यदि रिपोर्ट समिति को दी जाती है तो समिति की रिपोर्ट पर सदन में चर्चा के लिए 30 मिनट की बहस की अनुमति दी जाती है।
  • विशेषाधिकार समिति की भूमिका:
    • जांच और साक्ष्य संकलन: समिति मामले से जुड़े सभी पक्षों को बुलाती है और आवश्यक दस्तावेजों का परीक्षण करती है। मामले की गहन जांच के बाद, समिति रिपोर्ट तैयार करती है।
    • रिपोर्ट प्रस्तुत करना: समिति की रिपोर्ट सदन में पेश की जाती है। रिपोर्ट में उल्लिखित सिफारिशों पर सदन विचार करता है और निर्णय लेता है।
  • लोकसभा और राज्यसभा में समिति का आकार:
    • लोकसभा में समिति के 15 सदस्य होते हैं।
    • राज्यसभा में समिति के 10 सदस्य होते हैं।
  • विशेषाधिकार प्रस्ताव पर अंतिम निर्णय:
    • सदन की भूमिका:
      • समिति की रिपोर्ट पर विचार करने के बाद, सदन प्रस्ताव को पारित करता है या अस्वीकार करता है।
      • प्रस्ताव को पारित करने के लिए सर्वसम्मति आवश्यक है।
    • अध्यक्ष/सभापति का अंतिम आदेश:
      • सदन की बहस और विचार-विमर्श के आधार पर, अध्यक्ष/सभापति अंतिम आदेश जारी करते हैं।
      • यह तय किया जाता है कि प्रस्ताव को सदन के रिकॉर्ड में शामिल किया जाए या नहीं।

विशेषाधिकार उल्लंघन पर दंड और कार्रवाई

संसद के विशेषाधिकारों का उल्लंघन एक गंभीर अपराध माना जाता है, क्योंकि यह न केवल सदन की कार्यप्रणाली में बाधा डालता है, बल्कि उसकी गरिमा को भी आहत करता है। ऐसे मामलों में सदन को विशेषाधिकार हनन पर कार्रवाई करने का अधिकार होता है। 

  • जेल भेजने का प्रावधान: गंभीर मामलों में, विशेषाधिकार उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को कारागार भेजा जा सकता है। यह दंड सदन द्वारा निर्दिष्ट अवधि के लिए होता है।
  • सदन के सामने बुलाने का आदेश: अपराधी को सदन के समक्ष उपस्थित होकर अपने कार्यों का स्पष्टीकरण देना पड़ता है। सदन उसे चेतावनी देकर भविष्य में ऐसा न करने की हिदायत दे सकता है।
  • सदन से निलंबन या निष्कासन: यदि विशेषाधिकार उल्लंघन संसद के किसी सदस्य द्वारा किया गया हो, तो उसे सदन से निलंबित या स्थायी रूप से निष्कासित किया जा सकता है। यह दंड संसद के कार्यों की गरिमा बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
  • मीडिया पर कार्रवाई: यदि मीडिया किसी रिपोर्टिंग के दौरान संसद के विशेषाधिकारों का उल्लंघन करता है, तो संबंधित मीडिया संस्थान की प्रेस सुविधाओं को रद्द किया जा सकता है। साथ ही, मीडिया को माफ़ी मांगने के लिए बाध्य किया जा सकता है।
  • सार्वजनिक माफी: दोषी व्यक्ति को अपनी गलती के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी पड़ती है। यह दंड उन मामलों में लागू होता है, जहां अपराध की गंभीरता अपेक्षाकृत कम हो। यह सुनिश्चित करता है कि संसद और उसके सदस्य निर्भीकता और निष्पक्षता से कार्य कर सकें।

विशेषाधिकार प्रस्ताव की समकालीन प्रासंगिकता

विशेषाधिकार प्रस्ताव भारतीय संसदीय प्रणाली में एक महत्वपूर्ण माध्यम है, जो विधायिका की स्वायत्तता और गरिमा को बनाए रखने के साथ-साथ कार्यपालिका को जवाबदेह बनाता है। समकालीन राजनीति में, जहां लोकतंत्र की जड़ें गहरी हो रही हैं, इस प्रस्ताव की भूमिका और भी प्रासंगिक हो गई है।

  • आधुनिक लोकतांत्रिक प्रणाली में, जहां मीडिया, न्यायपालिका और कार्यपालिका जैसे विभिन्न संस्थानों का प्रभाव बढ़ा है, विशेषाधिकार प्रस्ताव विधायिका को किसी भी बाहरी दबाव से मुक्त रखने का कार्य करता है। यह प्रस्ताव संसद की गरिमा और सदस्यों की निष्पक्षता सुनिश्चित करता है। हालांकि, इसका उपयोग पूरी जिम्मेदारी और पारदर्शिता के साथ किया जाना चाहिए, ताकि इसकी आड़ में अनुचित लाभ उठाने की प्रवृत्ति पर रोक लग सके।
  • विशेषाधिकार प्रस्ताव, विधायिका और कार्यपालिका के बीच शक्ति संतुलन बनाए रखने में एक प्रभावी माध्यम है। यह विधायिका को कार्यपालिका की अधिकारों के अतिक्रमण से बचाता है और उसे अपने दायित्वों का निर्वहन करने में सक्षम बनाता है। कार्यपालिका की किसी भी असंवैधानिक या गलत गतिविधि पर विशेषाधिकार प्रस्ताव के माध्यम से सवाल उठाया जा सकता है।

UPSC पिछले वर्षों के प्रश्न ( PYQs)

प्रश्न (2014): भारत में अविश्वास प्रस्ताव के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

1. भारतीय संविधान में अविश्वास प्रस्ताव का कोई उल्लेख नहीं है।

2. अविश्वास प्रस्ताव केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है।

ऊपर दिए गए कथनों में से कौन सा / कौन से सही है?

(a) 1 केवल  

(b) 2 केवल  

(c) दोनों 1 और 2  

(d) न तो 1 और न ही 2  

प्रश्न (2020): सेंसर प्रस्ताव के बारे में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा सही नहीं है?

1. इसे प्रस्तुत करने के लिए सदन की अनुमति आवश्यक होती है।

2. सरकार इसे चर्चा के लिए समय और तिथि निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र होती है।

3. यह प्रस्ताव मंत्रिमंडल के सम्पूर्ण सदस्य के खिलाफ भी लाया जा सकता है।

4. यह प्रस्ताव स्वीकार्य है या नहीं, इसका निर्णय अध्यक्ष करते हैं।

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