सामान्य अध्ययन पेपर II: भारत को शामिल और/या इसके हितों को प्रभावित करने वाले समूह और समझौते, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप |
चर्चा में क्यों?
AI एक्शन समिट 2025: फ्रांस ने वर्ष 2025 में दो दिवसीय AI एक्शन समिट की मेज़बानी की। इस समिट की सह-आध्यक्षता भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों द्वारा की गई। इस वर्ष का यह समिट वैश्विक AI गवर्नेंस, तकनीकी स्वतंत्रता और पर्यावरण मित्र AI के विकास पर केंद्रित था।
फ्रांस में AI एक्शन समिट 2025 के मुख्य बिंदु
- फ्रांस में 10 और 11 फरवरी 2025 को आयोजित AI एक्शन समिट ने वैश्विक स्तर पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के भविष्य पर चर्चा को नया मोड़ दिया।
- भारत और फ्रांस के सहयोग से AI के शासन, तकनीकी सहयोग और रणनीतिक साझेदारी पर जोर दिया गया।
- समिट के पहले दिन ग्रांड पालेस में विभिन्न AI आधारित समाधानों की प्रदर्शनी, चर्चा और सत्र आयोजित किए गए।
- समिट में अमेरिका, चीन, कनाडा और यूरोपीय देशों के प्रमुख नेता शामिल हुए। अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस, चीन के वाइस प्रीमियर झांग गुओकिंग, और अन्य प्रमुख टेक कंपनियों के नेता जैसे सैम ऑल्टमैन (OpenAI), सुंदर पिचाई (Google) और ब्रैड स्मिथ (Microsoft) ने अपने विचार साझा किए।
- समिट में AI की चुनौतियाँ, विकासशील देशों के लिए AI के लाभ, और AI की पारदर्शिता जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हुई।
- चीन का AI उद्योग, जिसमें DeepSeek जैसे निम्न-लागत वाले मॉडल के बढ़ते ऊर्जा उपयोग और उसके स्थिरता से जुड़े मुद्दों पर भी विचार किया गया।
- AI के विकास के लिए $500 मिलियन का शुरुआती निवेश की योजना बनाई गई, जो अगले कुछ वर्षों में बढ़कर $2.5 बिलियन तक पहुंच सकता है।
- समिट में AI4India और CPRG द्वारा ग्लोबल साउथ में AI के प्रभाव पर पैनल चर्चा आयोजित की गई। इसके माध्यम से यह सुनिश्चित किया गया कि AI का लाभ विकासशील देशों तक पहुंचे।
- फ्रांस ने ओपन-सोर्स AI मॉडल और स्वच्छ ऊर्जा समाधान को बढ़ावा देने का प्रस्ताव दिया।
- समिट का उद्देश्य फ्रांस और यूरोप को AI के क्षेत्र में संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बराबरी पर लाना था।
- समिट का अंतिम दिन स्टेशन F में आयोजित “बिजनेस डे” के रूप में मनाया गया, जिसमें AI स्टार्टअप्स और बड़ी कंपनियों ने अपने विचार और नवाचार साझा किए।
AI एक्शन समिट 2025 के प्रमुख विषय
AI एक्शन समिट में पांच महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की गई, जो वैश्विक AI परिदृश्य को आकार दे रहे हैं:
- जनहित में AI का उपयोग: समिट में यह चर्चा की गई कि AI को सार्वजनिक सेवाओं में कैसे उपयोग किया जा सकता है ताकि सामाजिक चुनौतियों का समाधान किया जा सके और स्वास्थ्य, शिक्षा, और पर्यावरणीय स्थिरता जैसे क्षेत्रों में सुधार हो सके।
- भविष्य में कामकाजी जीवन: समिट में AI के श्रम बाजार पर प्रभाव की गहरी चर्चा हुई। इसमें नए रोजगार के अवसरों के सृजन, पुनः कौशल और उन्नयन की आवश्यकता, और संभावित रोजगार विस्थापन से बचने के लिए रणनीतियों पर विचार किया गया। AI के साथ काम करने के नए तरीके खोजने पर भी ध्यान केंद्रित किया गया।
- नवाचार और संस्कृति: इस विषय में AI के नवाचार को बढ़ावा देने में भूमिका और कला, संस्कृति, और रचनात्मकता पर इसके प्रभाव पर चर्चा की गई। समिट ने AI को समावेशी नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के रूप में प्रस्तुत किया, जिससे सभी क्षेत्रों में सुधार की संभावना उत्पन्न हुई।
- AI में विश्वास: AI तकनीकों में विश्वास बनाना महत्वपूर्ण था, ताकि इनका व्यापक रूप से उपयोग किया जा सके। समिट में AI के नैतिक उपयोग, पारदर्शिता, जिम्मेदारी, और विश्वास-योग्य AI प्रणालियों के लिए मानकों और नियमों के विकास पर जोर दिया गया।
- वैश्विक AI शासन: समिट ने AI तकनीकों के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया। यह चर्चा की गई कि कैसे जिम्मेदार AI विकास के लिए वैश्विक दिशानिर्देश और ढांचे स्थापित किए जा सकते हैं, ताकि सभी देशों को समान रूप से लाभ मिल सके।
भारत की AI परिदृश्य में सक्रिय भागीदारी
भारत की सक्रिय भागीदारी AI एक्शन समिट में यह दर्शाता है कि देश वैश्विक AI एजेंडे को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए प्रतिबद्ध है।
- भारत ने मार्च 2024 में अपनी AI मिशन की घोषणा की थी। इस मिशन के तहत देश एक AI मॉडल पर काम कर रहा है, जिसका आरंभ 10,000 GPUs की कम्प्यूटेशनल सुविधाओं से हुआ है।
- यह AI मॉडल वैश्विक मॉडल्स की तुलना में आधे से भी कम खर्च पर उपलब्ध होगा, क्योंकि सरकार ने इसमें 40% की सब्सिडी दी है।
- इससे बाद भारत ने जुलाई 2024 में नई दिल्ली में ग्लोबल AI समिट का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया था, जहां भारत ने ग्लोबल पार्टनरशिप ऑन AI (GPAI) की अध्यक्षता की।
- इस समिट में भारत ने एथिकल AI प्रैक्टिसेस को बढ़ावा देने और समावेशी विकास के लिए AI का लाभ उठाने में अपनी नेतृत्व क्षमता को प्रदर्शित किया।
- इस समिट में 50 देशों से 12,000 से अधिक AI विशेषज्ञों और प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
- भारत अपनी युवा जनसंख्या और प्रशिक्षित तकनीकी विशेषज्ञों की बड़ी संख्या के कारण AI के विकास के लिए एक उर्वर भूमि के रूप में उभरा है।
- BCG के अनुसार, भारत का AI बाजार 25-35% की वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रहा है और 2027 तक यह लगभग $17 बिलियन तक पहुँचने का अनुमान है।
भारत में AI का इतिहास
- प्रारंभिक चरण (1960-1980):
- भारत में AI का विकास 1960 के दशक में शुरू हुआ था, जब टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) ने TIFRAC (टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च ऑटोमेटिक कैलकुलेटर) विकसित किया। इसके बाद, IIT कानपुर, IIT मद्रास और IISc जैसे संस्थानों में AI पर शोध शुरू हुआ।
- 1970 के दशक में AI पर पाठ्यक्रम की शुरुआत हुई, जैसे G. कृष्णा और B. L. दीक्षित ने AI और पैटर्न रिकग्निशन पर महत्वपूर्ण पाठ्यक्रम पेश किए।
- 1980 के दशक में, भारत ने अपनी पहली प्रमुख AI अनुसंधान परियोजनाओं की शुरुआत की, जैसे कि ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकग्निशन (OCR) और नैतिक भाषाशास्त्र (NLP) पर काम करना।
- संस्थागत विकास (1980-1990):
- 1986 में भारत ने ‘फिफ्थ जनरेशन कंप्यूटर सिस्टम’ कार्यक्रम शुरू किया, जिसके तहत AI आधारित कंप्यूटर प्रणालियाँ विकसित की गईं। साथ ही, C-DAC (सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग) ने सुपरकंप्यूटर PARAM विकसित किया।
- 1990 के दशक में C-DAC और IIT कानपुर ने व्यावसायिक क्षेत्र में AI के अनुप्रयोगों पर ध्यान केंद्रित किया, जैसे कि मशीन ट्रांसलेशन, भाषाई प्रसंस्करण और डेटा विश्लेषण।
- वृद्धि और प्रवर्धन चरण (2000-2020):
- 2000 के दशक में, भारत में कई AI रिसर्च ग्रुप्स स्थापित हुए, जैसे कि IIIT हैदराबाद में भाषाई प्रौद्योगिकी और कंप्यूटर विज़न के लिए, और C-DAC ने NLP और सूचना पुनर्प्राप्ति (Information Retrieval) जैसी तकनीकों में नवाचार किया।
- 2018 में, नीति आयोग ने “AI के लिए राष्ट्रीय रणनीति” प्रकाशित की, जिसका उद्देश्य AI को स्वास्थ्य, कृषि, शिक्षा, स्मार्ट शहरों और स्मार्ट गतिशीलता जैसे क्षेत्रों में लागू करना था।
- 2020 के बाद, भारत में AI अनुसंधान में कई निजी और सार्वजनिक संस्थानों का योगदान बढ़ा। IIT दिल्ली और IIT बॉम्बे ने AI और मशीन लर्निंग के क्षेत्र में महत्वपूर्ण शोध कार्य किए हैं।
- आधुनिक समय में AI की दिशा:
- 2023 में, भारत ने AI से जुड़े और अधिक केंद्रों की स्थापना की, जैसे कि IIT रोपर में कृषि, IIT कानपुर में सतत शहरों, और AIIMS और IIT दिल्ली में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए AI केंद्र।
- भारत ने 2024 में 1.25 बिलियन डॉलर के निवेश के साथ ‘INDIAai‘ पहल को बढ़ावा दिया और डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के तहत AI के क्षेत्र में सुपरकंप्यूटरों की संख्या बढ़ाई गई।
- भविष्य की दिशा
- भारत के AI क्षेत्र के विकास के लिए कई योजनाएं बनाई गई हैं। इसमें “नैशनल मिशन ऑन इंटरडिसिप्लिनरी साइबर-फिजिकल सिस्टम्स” (NM-ICPS) जैसी पहलें शामिल हैं, जो AI, रोबोटिक्स, और साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देती हैं।
- इसके अलावा, AI के लिए प्रशिक्षण और कौशल विकास कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं।
- भारत में AI का विकास तेज़ी से हो रहा है, और सरकार, उद्योग और शैक्षिक संस्थान मिलकर इस क्षेत्र में नई संभावनाएँ तलाश रहे हैं।
AI विकास में प्रौद्योगिकी संप्रभुता और पर्यावरणीय चिंता
आज के समय में, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) तकनीक ने दुनियाभर में कई उद्योगों और समाजों में बदलाव लाया है। इस तेजी से बढ़ते क्षेत्र में, दो प्रमुख मुद्दे सामने आ रहे हैं—प्रौद्योगिकी संप्रभुता और पर्यावरणीय चिंताएं। इन दोनों का AI के भविष्य और उसके प्रभाव पर गहरा असर पड़ता है।
- प्रौद्योगिकी संप्रभुता: आजकल कई देश अपनी AI तकनीक को स्वतंत्र रूप से विकसित करने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। यह विचारधारा देश के आर्थिक, सुरक्षा और सामाजिक हितों की रक्षा करने के लिए जरूरी बन गई है। प्रौद्योगिकी संप्रभुता का मतलब केवल अपनी AI क्षमता को बढ़ाना नहीं है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि देश विदेशी तकनीकी निर्भरता से बाहर निकल सके। इस संदर्भ में, आधिकारिक डिजिटल अवसंरचना, स्थानीय डेटा संरक्षण और राष्ट्रीय कौशल विकास पर जोर दिया जा रहा है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि देश अपनी तकनीकी आवश्यकताओं को खुद पूरा कर सके।
- पर्यावरणीय चिंताएँ: AI के विकास से जुड़ी पर्यावरणीय चिंताएँ भी बढ़ रही हैं। AI का प्रसार भारी डेटा प्रोसेसिंग और शक्तिशाली कंप्यूटिंग संसाधनों की आवश्यकता होती है, जिससे ऊर्जा की खपत बहुत बढ़ जाती है। अत्यधिक ऊर्जा खपत और कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन AI के पर्यावरणीय प्रभाव को बढ़ा सकते हैं, जो जलवायु परिवर्तन के प्रति हमारी संवेदनशीलता को और भी अधिक बढ़ाता है। इसके अतिरिक्त, AI में इस्तेमाल होने वाली तकनीकें, जैसे कि जेनरेटिव AI और मशीन लर्निंग, के लिए बड़े डेटा सेंटर और सर्वर फार्म्स की आवश्यकता होती है, जो पर्यावरणीय दृष्टिकोण से चुनौती बन सकते हैं।
AI का रोजगार बाजार पर प्रभाव: भविष्य के अवसर और चुनौतियाँ
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) वर्तमान समय में नौकरी बाजार को अत्यधिक प्रभावित कर रहा है। यह तकनीक न केवल नए अवसरों का सृजन कर रही है, बल्कि साथ ही कुछ पारंपरिक नौकरियों के लिए चुनौतियाँ भी पेश कर रही है।
- AI का सकारात्मक प्रभाव
- नई नौकरी के अवसर: AI के विकास और इसके अनुप्रयोग के लिए विशेषीकृत कौशल की आवश्यकता होती है, जैसे डेटा वैज्ञानिक, मशीन लर्निंग इंजीनियर, AI शोधकर्ता, और एथिकल AI विशेषज्ञ। इन क्षेत्रों में तेज़ी से वृद्धि हो रही है और इसके साथ ही उच्च मांग वाले करियर विकल्प भी उत्पन्न हो रहे हैं।
- निर्णय लेने में सुधार: AI बड़ी मात्रा में डेटा का विश्लेषण करने में सक्षम है, जो विभिन्न उद्योगों में बेहतर निर्णय लेने में सहायक होता है। यह रणनीतिक योजना और कार्यकुशलता में सुधार लाने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण बन चुका है।
- उत्पादकता में वृद्धि: AI के द्वारा दोहराए जाने वाले कार्यों को स्वचालित करने से श्रमिकों को अधिक रचनात्मक, जटिल और रणनीतिक कार्यों पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर मिलता है। यह न केवल व्यक्तिगत उत्पादकता बढ़ाता है, बल्कि समग्र रूप से उद्योगों में भी कार्यकुशलता बढ़ाता है।
- भर्तियों में सुधार: AI एल्गोरिदम यह सुनिश्चित करने में मदद कर सकते हैं कि भर्तियों में केवल संबंधित कौशल और योग्यताओं पर ध्यान दिया जाए, न कि व्यक्तिगत विशेषताओं पर, जिससे भर्तियों में निष्पक्षता बढ़ सकती है।
- AI द्वारा उत्पन्न चुनौतियाँ
- नौकरी का विस्थापन: AI के द्वारा स्वचालित होने वाले कार्यों के कारण उन नौकरियों को खतरा हो सकता है, जो आसानी से मशीन द्वारा करवाए जा सकते हैं, जैसे डेटा एंट्री या असेंबली लाइन कार्य। इससे ऐसे क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों के लिए बेरोजगारी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- कौशल अंतर: AI और डेटा विश्लेषण से संबंधित नए कौशल को प्राप्त करना श्रमिकों के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य हो सकता है, विशेषकर उन लोगों के लिए जिनके पास प्रशिक्षण तक पहुंच नहीं है या जो ऐसे उद्योगों में काम कर रहे हैं।
- आर्थिक विषमताएँ: AI का प्रभाव पहले से मौजूद आर्थिक असमानताओं को बढ़ा सकता है, क्योंकि उच्च-कुशल श्रमिक AI से अधिक लाभान्वित हो सकते हैं, जबकि निम्न-कुशल श्रमिकों को नौकरी में असुरक्षा का सामना करना पड़ सकता है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के क्षेत्र में आगे की राह
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के क्षेत्र में भारत की स्थिति और भविष्य की दिशा को लेकर कुछ महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर विचार किया जा सकता है, जिन्हें मजबूत करने के लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है:
- हार्डवेयर विनिर्माण में वृद्धि: भारत में AI के विकास के लिए उपयुक्त हार्डवेयर और सेमीकंडक्टर का होना अत्यंत आवश्यक है। PLI योजना जैसे प्रोत्साहन कार्यक्रम, जो घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं, उनको और अधिक विस्तारित किया जा सकता है। इससे AI के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे की मजबूत नींव तैयार की जा सकती है, साथ ही तकनीकी आत्मनिर्भरता भी प्राप्त की जा सकती है।
- स्टार्ट-अप और नवाचार को बढ़ावा: AI के क्षेत्र में उभरते हुए स्टार्ट-अप्स को प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय सहायता, मेंटरशिप, और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की आवश्यकता है। इस दिशा में तेलंगाना का T-हब जैसे AI केंद्रित इनक्यूबेटर्स की भूमिका अहम हो सकती है। इनकी स्थापना से न केवल नए विचारों को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि AI में नवाचार को भी गति मिलेगी।
- डेटा पारिस्थितिकी तंत्र का विकास: AI के प्रभावी उपयोग के लिए डेटा एक महत्वपूर्ण संसाधन है। एक राष्ट्रीय डेटा प्लेटफॉर्म का निर्माण करना, जो गोपनीयता और सुरक्षा के साथ डेटा साझा करने में सक्षम हो, आवश्यक है। इसमें डेटा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए उच्च-स्तरीय एन्क्रिप्शन तकनीकों और क्यूरेशन प्रक्रियाओं को अपनाना होगा। यह प्लेटफॉर्म डेटा को सही तरीके से प्रोसेस और एनालाइज करने के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण होगा।
- नैतिक AI: AI के विकास में नैतिक मुद्दों पर विशेष ध्यान देना जरूरी है। इसके लिए स्पष्ट नैतिकता दिशानिर्देशों और विनियमों की आवश्यकता है। स्वतंत्र AI नैतिकता बोर्ड की स्थापना, पारदर्शिता को बढ़ावा देना, और AI सिस्टम्स में पूर्वाग्रहों को कम करने के लिए नियमित ऑडिट करने से हम एक जिम्मेदार और मानवता के अनुकूल AI प्रणाली विकसित कर सकते हैं।
- सतत और ऊर्जा-कुशल AI: जैसे-जैसे AI के उपयोग में वृद्धि हो रही है, इसके ऊर्जा खपत पर भी ध्यान देना जरूरी है। ऊर्जा-कुशल एल्गोरिदम, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल और डेटा केंद्रों में ऊर्जा अनुकूलन जैसी पहलों को बढ़ावा देने से हम AI के सतत और पर्यावरण अनुकूल विकास की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं।
- AI में कौशल विकास और प्रतिभा का निर्माण: AI क्षेत्र में प्रशिक्षण और कौशल विकास को बढ़ावा देने के लिए इंटर्नशिप, शोध परियोजनाओं, और अंतरराष्ट्रीय साझेदारी की आवश्यकता है। साथ ही, भारत में AI विशेषज्ञों को बनाए रखने और विदेशी प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए उचित वेतन और शोध वातावरण को बढ़ावा देना चाहिए।
UPSC पिछले वर्षों के प्रश्न (PYQs) प्रश्न (2020): विकास की वर्तमान स्थिति में, कृत्रिम बुद्धिमत्ता(Artificial Intelligence), निम्नलिखित में से किस कार्य को प्रभावी रूप से कर सकती है?
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1,2, 3 और 5 (b) केवल 1,3 और 4 (c) केवल 2,4 और 5 (d) 1,2,3,4 और 5 उत्तर: (b) प्रश्न (2020): “चौथी औद्योगिक क्रांति (डिजिटल क्रांति) के प्रादुर्भाव ने ई-गवर्नेंस को सरकार अविभाज्य अंग बनाने में पहल की है।” विवेचना कीजिये। प्रश्न (2022): भारत के प्रमुख शहरों में आई.टी. उद्योगों के विकास से उत्पन्न होने वाले मुख्य सामाजिक-आर्थिक प्रभाव क्या हैं ? |
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