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उच्च न्यायालय में अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति

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संदर्भ:

अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालयों में आपराधिक मामलों के लंबित मामलों को कम करने के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की अस्थायी नियुक्ति (ad hoc basis) का प्रस्ताव रखा। इसके साथ ही, अदालत ने 2021 के अपने उस निर्णय पर पुनर्विचार करने का सुझाव दिया, जो अस्थायी नियुक्तियों को विशिष्ट परिस्थितियों तक सीमित करता था।

अनुच्छेद 224A: अस्थायी (Ad Hoc) न्यायाधीशों की नियुक्ति:

अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया

  • राष्ट्रपति की स्वीकृति:
    • उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति प्राप्त करने के बाद, किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए अनुरोध करते हैं।
    • यह नियुक्ति राष्ट्रपति से परामर्श के बाद की जाती है।
  • कार्यकाल:
    • इन अस्थायी न्यायाधीशों के लिए कोई निश्चित कार्यकाल नहीं होता।
    • नियुक्ति केवल न्यायाधीशों की कमी को दूर करने या मामलों के शीघ्र निपटान के लिए की जाती है।
  • भत्ते और सुविधाएँ: उन्हें राष्ट्रपति के आदेश द्वारा निर्धारित भत्ते प्राप्त होते हैं।
  • अधिकार और शक्तियाँ:
    • उन्हें सभी अधिकार, शक्तियाँ, और विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं, जो एक वर्तमान उच्च न्यायालय न्यायाधीश को मिलते हैं।
    • हालांकि, उन्हें एक पूर्णकालिक उच्च न्यायालय न्यायाधीश माना नहीं जाता।
  • सहमति: नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति और सेवानिवृत्त न्यायाधीश दोनों की सहमति आवश्यक होती है।

अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति की आवश्यकता:

  1. आपराधिक मामलों का लंबित रहना: कई उच्च न्यायालयों में भारी संख्या में आपराधिक मामले लंबित हैं।
  2. न्यायाधीशों के पदों की रिक्तियां: लगभग 40% पद उच्च न्यायालयों में रिक्त हैं, जिससे न्याय वितरण में देरी हो रही है।
  3. नियुक्ति में देरी: कॉलेजियम की सिफारिशों के बाद भी न्यायाधीशों की नियुक्ति में देरी होती है, जिससे न्याय प्रणाली प्रभावित हो रही है।
  4. विधि आयोग की सिफारिशें: विधि आयोग की 1979, 1988 और 2003 की रिपोर्टों में सुझाव दिया गया है कि अनुभवी सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की अस्थायी नियुक्ति लंबित मामलों का निपटारा करने का एक प्रभावी समाधान हो सकता है।

अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति के लाभ:

  1. अनुभवी न्यायाधीश: सेवानिवृत्त न्यायाधीशों का समृद्ध अनुभव और सिद्ध ट्रैक रिकॉर्ड होता है, जिससे मामलों के निपटारे में कुशलता आती है।
  2. त्वरित नियुक्ति: पूर्व न्यायाधीश होने के कारण गुप्तचर एजेंसियों की जांच की आवश्यकता नहीं, जिससे नियुक्ति प्रक्रिया तेजी से पूरी हो सकती है।
  3. लंबित मामलों में कमी: पांच वर्ष से अधिक पुराने मामलों को प्राथमिकता देकर न्याय प्रक्रिया को तेज किया जा सकता है।

चिंताएं और आलोचनाएं:

  1. सीमित उपयोग: संविधान में प्रावधान होने के बावजूद अस्थायी नियुक्तियों का न्यूनतम उपयोग हुआ है, जिससे यह प्रक्रिया अप्रभावी मानी जाती है।
  2. अल्पकालिक समाधान: न्यायिक रिक्तियों और नियुक्ति में देरी जैसी व्यवस्थित समस्याओं का यह स्थायी समाधान नहीं है।
  3. गुणवत्ता की चिंता: अस्थायी न्यायाधीशों की संस्थागत एकीकरण की कमी और न्यायपालिका के दीर्घकालिक कामकाज में रुचि की कमी, उनकी प्रभावशीलता को प्रभावित कर सकती है।
  4. स्पष्ट दिशानिर्देशों की कमी:
    • चयन मानदंड स्पष्ट न होने से नियुक्तियों में असंगति की संभावना बनी रहती है।
    • गैरनियमित नियुक्तियां जवाबदेही और प्रशिक्षण में भी बाधा उत्पन्न कर सकती हैं।

महत्वपूर्ण अस्थायी न्यायाधीश नियुक्तियां:

  1. 1972: सेवानिवृत्त न्यायाधीश को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनाव याचिकाओं की सुनवाई के लिए नियुक्त किया गया।
  2. 1982: न्यायमूर्ति पी. वेणुगोपाल को मद्रास उच्च न्यायालय में अस्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया।
  3. 2007: न्यायमूर्ति .पी. श्रीवास्तव को अयोध्या भूमि विवाद मामले की सुनवाई के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में नियुक्त किया गया।
  4. 2021 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब तक कोई नई नियुक्ति नहीं हुई है।

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