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संदर्भ:
भारत में CAG की नियुक्ति: सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार की विशेषाधिकार प्राप्त राष्ट्रपति के माध्यम से नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की नियुक्ति करने की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा है।
- याचिका में तर्क दिया गया है कि जब कार्यपालिका अकेले नियुक्ति प्रक्रिया को नियंत्रित करती है, तो नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की स्वतंत्रता प्रभावित होती है।
- याचिकाकर्ता ने अधिक पारदर्शी और गैर–पक्षपाती चयन प्रक्रिया अपनाने का सुझाव दिया है।
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG):
CAG का मुख्य कार्य संघ, राज्य सरकारों और पंचायती राज संस्थाओं की वित्तीय जवाबदेही की निगरानी करना है।
संविधान संबंधी प्रावधान (Constitutional Provisions):
- अनुच्छेद 148 (Article 148):
- CAG की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और उसे हटाने की प्रक्रिया वही है जो सुप्रीम कोर्ट के जज के लिए होती है।
- CAG के वेतन, भत्ते और सेवा की शर्तें संसद द्वारा निर्धारित की जाती हैं और नियुक्ति के बाद इनके विरुद्ध कोई बदलाव नहीं किया जा सकता।
- CAG को अपने पद छोड़ने के बाद किसी भी अन्य पद के लिए अयोग्य माना जाता है।
- अनुच्छेद 149 (Article 149): CAG का कार्य संघ और राज्यों के खातों का ऑडिट करना है, जैसा कि कानून द्वारा निर्धारित किया गया है। यह वही कार्य जारी रखता है जो संविधान के लागू होने से पहले भारत के महालेखापरीक्षक द्वारा किया जाता था।
- अनुच्छेद 150 (Article 150): संघ और राज्यों के खातों को किस रूप में रखा जाएगा, इसका निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा CAG की सलाह पर किया जाता है।
- अनुच्छेद 151 (Article 151): CAG की ऑडिट रिपोर्टें संघ के मामलों में राष्ट्रपति को सौंपी जाती हैं, जो उन्हें संसद के सामने प्रस्तुत करवाता है। राज्य मामलों में ये रिपोर्टें संबंधित राज्यपाल को सौंपी जाती हैं, जो उन्हें राज्य की विधानसभा के सामने प्रस्तुत करवाता है।
- अनुच्छेद 279 (Article 279): CAG करों और शुल्कों की “शुद्ध प्राप्ति” (Net Proceeds) को प्रमाणित करता है और उसका प्रमाण अंतिम होता है।
समस्याएँ और चिंताएँ (Issues and Concerns):
- CAG की नियुक्ति प्रक्रिया में समस्या:
- यह तर्क दिया जाता है कि कार्यपालिका (Executive) द्वारा नियंत्रित CAG की नियुक्ति प्रक्रिया संविधान का उल्लंघन करती है।
- कार्यपालिका, CAG की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकती है, जिससे इसे एक निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ निगरानीकर्ता (Neutral Watchdog) के रूप में कमजोर किया जा सकता है।
- CAG के कार्यों में हाल की समस्याएँ:
- ऑडिट में देरी, संघ सरकार के ऑडिट्स में कमी और भर्ती में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए हैं।
- ये समस्याएँ CAG की कार्यक्षमता और विश्वसनीयता पर सवाल उठाती हैं।
- सार्वजनिक निधि प्रबंधन में अनियमितताएँ: हाल की CAG रिपोर्टों में सार्वजनिक धन प्रबंधन में अनियमितताओं का खुलासा हुआ है, जैसे कि दिल्ली की आबकारी नीति और उत्तराखंड के प्रतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन से संबंधित मुद्दे।
- कार्यपालिका और CAG के बीच तनाव:
- इन रिपोर्टों के समय और प्रस्तुतीकरण को लेकर कार्यपालिका और CAG के बीच तनाव उत्पन्न हो गया है।
- कार्यपालिका के हस्तक्षेप से CAG की निष्पक्षता और स्वतंत्रता को खतरा हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ:
- न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने सवाल उठाया कि क्या न्यायिक दखल संविधान के अनुच्छेद 148 को बदलने जैसा होगा?
- संविधान में नियुक्ति प्रक्रिया स्पष्ट नहीं है, यह पूरी तरह से कार्यपालिका के हाथ में है।
- बेंच ने कहा कि संस्थानों पर विश्वास होना चाहिए, लेकिन याचिका पर विचार किया जाएगा।
आगे का रास्ता:
- यह मामला वित्तीय जवाबदेही को प्रभावित करने वाला ऐतिहासिक निर्णय साबित हो सकता है।
- यदि सुप्रीम कोर्ट सुधारों की सिफारिश करता है, तो संसद को नई नियुक्ति प्रक्रिया के लिए कानून बनाना पड़ सकता है।
- भले ही फैसला जो भी हो, यह बहस संवैधानिक संस्थाओं की स्वतंत्रता को मजबूत करने की जरूरत को उजागर करती है।